युगल मूर्त्ति श्रीहित लाड़िली-लाल अनुपम शोभा

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अब तौ क्या इस छबि पर वारौं,
यही सोच उर आवै है ।
पल-पल रोम-रोम पर तन मन,
कोटिनु तुच्छ दिखावै है ॥
कोटि विश्व इक रोम निछावर,
तउ संतोष न आवै है ।
करना दूर बनैं न मनोरथ,
‘भोरी’ मन पछतावै है ॥

श्रीहित भोरीसखी जी कहती हैं कि मैं हमेशा यही सोचती रहती हूँ कि प्रेम की अद्वय युगल मूर्त्ति श्रीहित लाड़िली-लाल के अद्भुत सौन्दर्य सम्पन्न रूप की अनुपम शोभा पर क्या न्यौछावर किया जाय ।

क्योंकि उनके रोम-रोम पर प्रतिक्षण अपने कोटि-कोटि तन-मन को न्यौछावर करना तो अत्यन्त तुच्छ प्रतीत होता है ?

यदि उनके एक रोम पर करोड़ों विश्व की सुन्दरता को भी न्यौछावर कर दिया जाय, तो भी हृदय को सन्तुष्टि नहीं मिल पाती है ।

ऐसा करना तो बहुत दूर की बात है, मन में ऐसा करने का विचार भी उत्पन्न नहीं होता है, इसलिये मन को अत्यन्त पछतावे का अनुभव हो रहा है ।



Now what about this image? That’s what you think. Body and mind on every moment, Kotinu is a frivolous show. koti world i rom nichavar, Then there is no satisfaction. Don’t be distant to do, ‘Bhori’ mind is remorse.

Shrihit Bhorisakhi ji says that I always keep thinking that what should be sacrificed on the unique beauty of the wonderfully beautiful form of Shrihit Ladili-Lal, the unique couple idol of love.

Because it seems very insignificant to sacrifice one’s body and mind every moment on their hair and hair?

Even if the beauty of crores of worlds is sacrificed on one of his hairs, even then the heart does not get satisfaction.

It is a very distant thing to do this, the thought of doing so does not even arise in the mind, so the mind is feeling very remorseful.

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