जब तें रामु ब्याहि घर आए।
नित नव मंगल मोद बधाए।
भुवन चारिदस भूधर भारी।
सुकृत मेघ बरषहिं सुख बारी
।
रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई।
उमगि अवध अंबुधि
कहुं आई॥
राम सिया राम सिया राम जय जय राम
मनिगन पुर नर नारि सुजाती।
सुचि अमोल सुंदर सब
भांति ॥
कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।
जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी।
राम सिया राम सिया राम जय जय राम
रामचंद मुख चंदु निहारी॥
मुदित मातु सब सखीं सहेली।
फलित बिलोकि मनोरथ बेली॥
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ।
प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ
॥
भावार्थ, जब से श्री रामचन्द्रजी विवाह
करके घर आए, तब से अयोध्या में नित्य
नए मंगल हो रहे हैं और आनंद के
बधावे बज रहे हैं। चौदहों लोक रूपी
बड़े भारी पर्वतों पर पुण्य रूपी मेघ
सुख रूपी जल बरसा रहे हैं॥
राम सिया राम सिया राम जय जय राम
रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई।
उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई॥
मनिगन पुर नर नारि सुजाती।
सुचि अमोल सुंदर सब भातीं॥
भावार्थ, ऋद्धि-सिद्धि और सम्पत्ति रूपी सुहावनी नदियां उमड़-उमड़कर
अयोध्या रूपी समुद्र में आ मिलीं।
नगर के स्त्री-पुरुष अच्छी जाति के
मणियों के समूह हैं, जो सब प्रकार
से पवित्र, अमूल्य और सुंदर हैं॥
कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।
जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी।
रामचंद मुख चंदु निहारी॥
भावार्थ, नगर का ऐश्वर्य कुछ कहा नहीं जाता। ऐसा जान पड़ता है, मानो ब्रह्माजी की
कारीगरी बस इतनी ही है। सब नगर
निवासी श्री रामचन्द्रजी के मुखचन्द्र
को देखकर सब प्रकार से सुखी हैं॥
मुदित मातु सब सखीं सहेली।
फलित बिलोकि मनोरथ बेली॥
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ।
प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ॥
भावार्थ, सब माताएं और सखी-सहेलियां अपनी मनोरथ रूपी बेल को फली हुई
देखकर आनंदित हैं। श्री रामचन्द्रजी के
रूप, गुण, शील और स्वभाव को देख
सुनकर राजा दशरथजी बहुत ही
आनंदित होते हैं॥
राम सिया राम सिया राम जय जय राम
जय श्री राम