आप सभी ने ये ध्यान दिया होगा कि जब भी हम भगवान विष्णु और उनके अवतारों के विषय में बात करते हैं तो हम उनके आगे “श्री” शब्द लगाते हैं, जैसे श्रीहरि, श्रीराम, श्रीकृष्ण इत्यादि।
किन्तु ऐसा हम भगवान ब्रह्मा, महादेव अथवा अन्य देवताओं के साथ नहीं करते। तो क्या इसका अर्थ ये है कि श्री बोल कर भगवान विष्णु को सम्मान दिया जाता है और अन्य देवताओं को नहीं? ऐसा बिलकुल भी नहीं है।
आइये इसे समझते हैं।
ईश्वर, विशेषकर भगवान विष्णु के सम्बन्ध में एक भ्रान्ति ये है कि उनके नाम के आगे लगने वाला शब्द “श्री” सम्मान सूचक है। यही कारण है कि हम ये अपेक्षा करते हैं कि हम सभी देवताओं के आगे उसी सम्मान के रूप में श्री लगाएं। आज के परिपेक्ष्य में अवश्य श्री एक सम्मान सूचक शब्द है किन्तु आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि भगवान विष्णु के नाम के आगे लगने वाला श्री केवल सम्मान के लिए नहीं है।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश ईश्वर हैं इसी कारण सम्मान पर उनका अधिकार निर्विवाद है। श्री लगाएं अथवा ना लगाएं, उनका सम्मान कम नहीं होता। किन्तु वास्तव में श्रीहरि के आगे लगने वाले “श्री” का अर्थ है “लक्ष्मी”। आप सभी को ये तो पता ही होगा कि माता लक्ष्मी का एक नाम श्री भी है। श्री का अर्थ होता है ऐश्वर्य प्रदान करने वाली। तो वास्तव में हम श्रीहरि कह कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को एकाकार करते हैं। ये ठीक वैसा ही है जैसे भगवान शंकर का अर्धनारीश्वर स्वरुप।
अब श्रीहरि तक तो ठीक है किन्तु क्या श्रीराम और श्रीकृष्ण के आगे जो “श्री” लगता है वो सम्मान सूचक नहीं है? उत्तर है हाँ, है किन्तु इन दोनों के नाम के साथ लगने वाले श्री का अर्थ भी माता लक्ष्मी का ही रूप है। जब हम श्रीराम कहते हैं तो वास्तव में हम “सीता-राम” कह रहे होते हैं। जब हम श्रीकृष्ण कहते हैं तो वास्तव में हम “रुक्मिणी-कृष्ण” कह रहे होते हैं। तो इस प्रकार दोनों के नाम में श्री लगाने का वास्तविक तात्पर्य इनकी अर्धांगिनी के नाम को भी इनके साथ जोड़ना है।
अब एक प्रश्न और आता है कि भगवान विष्णु के अवतारों – राम और कृष्ण के अवतारों को ही माता लक्ष्मी के “श्री” सम्बोधन के साथ क्यों जोड़ा जाता है? भगवान शंकर के अवतारों के साथ क्यों नहीं। इसका कारण ये है कि भगवान विष्णु के अवतारों की एक विशेष बात ये है कि नारायण के साथ-साथ हर अवतार में माता लक्ष्मी भी अवतार लेती हैं। जैसे श्रीराम के अवतार के साथ में माता लक्ष्मी देवी सीता और श्रीकृष्ण के अवतार के साथ में माता लक्ष्मी देवी रुक्मिणी के रूप में अवतरित हुई।
बहुत कम लोगों को ये पता है कि भगवान विष्णु के अन्य अवतारों के साथ भी माता लक्ष्मी ने अवतार लिया। जैसे भगवान वराह के साथ माता वाराही, भगवान नृसिंह के साथ माता नारसिंही, भगवान वामन के साथ माता पद्मा और भगवान परशुराम के साथ माता धारिणी। तो इन सबके साथ भी श्री का तात्पर्य माता लक्ष्मी के इन्ही अवतारों से है। भविष्य में होने वाले भगवान कल्कि के अवतार में भी माता लक्ष्मी देवी पद्मावती के रूप में अवतरित होंगी।
अतः ये बात सदैव स्मरण रखें कि श्रीहरि, श्रीराम, श्रीकृष्ण इत्यादि के साथ लगने वाला “श्री” केवल सम्मान सूचक ही नहीं बल्कि माता लक्ष्मी का भी प्रतिनिधित्व करता है।
जय श्रीहरि।