आओ बसाये मन मंदिर में,
झांकी सीताराम की,
जिसके मन में राम नहीं वो,
काया है किस काम की
आओ बसाये मन मंदिर में,
झांकी सीताराम की,
गौतम नारी अहिल्या तारी,
श्राप मिला अति भारी था,
शिला रूप से मुक्ति पाई,
राम ने चरण रज को स्पर्श किया
मुक्ति मिली तब वो बोली,
जय जय सीताराम की,
जिसके मन में राम नहीं वो,
काया है किस काम की
आओ बसाये मन मंदिर में,
झांकी सीताराम की,
जात पात का तोड़ के बंधन,
शबरी मान बढ़ाया था,
हंस हंस खाते बेर प्रेम से,
राम ने ये फ़रमाया था,
प्रेम भाव का भूखा हूं मैं,
चाह नहीं किसी काम की,
आओ बसाये मन मंदिर में,
झांकी सीताराम की,
सागर में लिख राम नाम,
नल नील ने पत्थर तेराये,
इसी नाम से हनुमान जी,
सीता जी की सुधि लाये,
भक्त विभीषण के मन में तब,
ज्योत जगी श्री राम की,
जिसके मन में राम नहीं वो,
काया है किस काम की
आओ बसाये मन मंदिर में,
झांकी सीताराम की,
भोले बनकर मेरे प्रभु ने,
भक्तो का दुःख टाला था,
अवतार धर श्री राम ने,
दुष्टों को संहारा था,
व्यास प्रभु की महिमा गाये,
जय हो सीताराम की,
जिसके मन में राम नहीं वो,
काया है किस काम की
आओ बसाये मन मंदिर में,
झांकी सीताराम की,