माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को पूरे देशभर में बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करने का प्रावधान है। वहीं बसंत पंचमी की कई पौराणिक व्रत कथाएं भी हैं। सरस्वती पूजा की कहानी ब्रह्मा वैवराता पुराण और मत्स्य पुराण से संबंधित हैं।
लोक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी थरती पर विचरण करने निकले और उन्होंने मनुष्यों और जीव-जंतुओं को देखा तो सभी नीरस और शांत दिखाई दिए। यह देखकर ब्रह्मा जी को कुछ कमी लगी और उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर पृथ्वी पर छिड़क दिया। जल छिड़कते ही 4 भुजाओं वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई जिसके एक हाथ में वीणा, एक में माला, एक में पुस्तक और एक हाथ में वर मुद्रा थी। चतुरानन ने उन्हें ज्ञान की देवी मां सरस्वती के नाम से पुकारा। ब्रह्मा जी की आज्ञा के अनुसार सरस्वती जी ने वीणा के तार झंकृत किए, जिससे सभी प्राणी बोलने लगे, नदियां कलकल कर बहने लगी हवा ने भी सन्नाटे को चीरता हुआ संगीत पैदा किया। तभी से बुद्धि व संगीत की देवी के रुप में सरस्वती की पूजा की जाने लगी।
पौराणिक कथानुसार, एक बार देवी सरस्वती ने भगवान श्रीकृष्ण को देख लिया था और वह उन पर मोहित हो गई थी। वह उन्हें पति के रूप में पाना चाहती थी, लेकिन जब भगवान कृष्ण को पता चला तो उन्होंने कहा कि वह केवल राधारानी के प्रति समर्पित हैं। लेकिन सरस्वती को मनाने के लिए उन्होंने वरदान दिया कि आज से माघ के शुक्ल पक्ष की पंचमी को समस्त विश्व तुम्हारी विद्या व ज्ञान की देवी के रुप में पूजा करेगा। उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने सबसे पहले देवी सरस्वती की पूजा की तब से लेकर निरंतर बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा लोग करते आ रहे हैं।
अन्य किदवंतियों के मुताबिक, ज्ञान की देवी मां सरस्वती का इस दिन जन्म हुआ था। ऋष्टि की रचयिता ब्रह्मा जी के मुख से सरस्वती विकसित हुई थी। वहीं पश्चिमी भारत में मां सरस्वती को भगवान सूर्य की बेटी के रूप में माना जाता है। मान्यता है कि सरस्वती की शादी कार्तिकेय से हुई थी। दूसरी ओर पूर्वी भारत में सरस्वती को पार्वती की पुत्री माना जाता है। उन्होंने भगवान विष्णु की तीन पत्नियों(सरस्वती, गंगा औ लक्ष्मी) में से एक कहा जाता है।
The festival of Basant Panchami is celebrated across the country on the fifth day of Shukla Paksha of Magh month. On this day there is a provision to worship Goddess Saraswati, the goddess of knowledge. There are also many mythological fasting stories of Basant Panchami. The story of Saraswati Puja is related to Brahma Vaivarata Purana and Matsya Purana.
According to the folk tale, once Brahma ji went out to roam the earth and when he saw humans and animals, all looked dull and calm. Seeing this, Brahma ji felt some deficiency and he took out water from his kamandal and sprinkled it on the earth. As soon as the water was sprinkled, a beautiful woman with four arms appeared, holding a veena in one hand, a garland in one, a book in one hand and a boar mudra in one hand. Chaturanan called her by the name of Goddess Saraswati, the goddess of knowledge. According to the orders of Brahma ji, Saraswati ji trumped the strings of the veena, due to which all the living beings started speaking, the rivers started flowing and the wind also created the music that broke the silence. Since then Saraswati was worshiped as the goddess of wisdom and music.
According to legend, once Goddess Saraswati saw Lord Krishna and she was fascinated by him. She wanted to have him as a husband, but when Lord Krishna came to know, he said that he was devoted only to Radharani. But to convince Saraswati, he gave a boon that from today on the fifth day of Shukla Paksha of Magha, the whole world will worship you as the goddess of learning and knowledge. At the same time, Lord Krishna first worshiped Goddess Saraswati, since then people have been worshiping Goddess Saraswati continuously on the day of Basant Panchami.
According to other legends, Goddess Saraswati, the goddess of knowledge, was born on this day. Saraswati evolved from the mouth of Brahma, the creator of Rishi. In western India, Goddess Saraswati is considered as the daughter of Lord Surya. It is believed that Saraswati was married to Kartikeya. On the other hand, in eastern India, Saraswati is considered the daughter of Parvati. She is said to be one of the three wives (Saraswati, Ganga and Lakshmi) of Lord Vishnu.
Uploader – Lalit Gera Jhajjar