चार दिनों की प्रीत जगत में चार दिनों के नाते हैं।
पलकों के पर्दे पडते ही सब नाते मिट जाते हैं।
जिनकी चिन्ता में तू जलता वे ही चिता जलाते हैं।
जिन पर रक्त बहाये जलसम जल में वही बहाते हैं।
घर के स्वामी के जाने पर घर की शुद्धि कराते हैं।
पिंड दान कर प्रेत आत्मा से अपना पिंड छुडाते हैं।
चौथे से चालीसवें दिन तक हर एक रस्म निभाते हैं।
म्रतक के लौटआने का कोई जोखिम नही उठाते हैं।
आदमी के साथ उसका खत्म किस्सा हो गया।
आग ठण्डी हो गई चर्चा भी ठण्डा हो गया।
चलता फिरता था जो कल तक।
बनके वो तस्वीर आज लग गया दीवार पर मजबूर कितना हो गया।
Shaan दुबे
९७५२५४३९६२
Four days of love are like four days in the world.
As soon as the curtains of the eyelids fall, all relations disappear.
Those in whose concern you burn, they light the pyre.
Those on whom blood is shed, they shed water in water.
When the owner of the house leaves, they purify the house.
By donating the body, the phantoms get rid of their body from the soul.
Every ritual is performed from the fourth to the fortieth day.
They do not take any risk of returning the deceased.
Her affair with the man was over.
The fire has cooled down, the discussion has also cooled down.
Which used to walk till yesterday.
That picture was made today, how much it was forced on the wall.
Shaan Dubey