जब से आई शरण श्याम की मै

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जब से आई शरण श्याम की मै,
मैंने मन की मति को छोड़ डाला,
खुद को कर डाला उसको ही अर्पण,
मैंने अपने खुदी को छोड़ डाला,

मुझको श्याम श्याम श्यामा
मुझको है श्याम की ही खुमारी,
उसको भी है मेरी जिमेवारी जिसने देखा है श्याम का घर
उसने अपनी गली को छोड़ डाला,

मेरे श्याम श्याम श्यामा
सब आते है मिले मिलाने,
हम भी आये है उनको मनाने,
इसी कारन से हमने हर जंगल हर बस्ती को छोड़ डाला,

मेरे श्याम श्याम श्यामा
कोई कमजोरी है न मज़बूरी अपनी मंजिल की,
न कोई दुरी बीच में ही रह जाये गा
वो जिसने भी तुझे छोड़ डाला,
जब से आई शरण श्याम की मै,

Ever since the refuge of Shyam I came,
I left the mind of the mind,
Surrendered himself to him,
I left my self
Shyam Shyam Shyama to me
I have only Shyam’s happiness,
He also has my responsibility who has seen Shyam’s house.
He left his street
my shy shyma
Everyone comes to meet,
We have also come to celebrate them,
For this reason we have left every forest, every habitation,
my shy shyma
There is no weakness nor compulsion of your destination,
no distance should remain in the middle
Whoever left you
Ever since the refuge of Shyam I came,

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