नित्त ध्यान धरूँ चित्त से हित से,
उर गोविन्द के गुण गाया करूँ।
वृंदावन धाम में श्याम सखा,
मन ही मन में हरषाया करूँ।
नन्द यशोमती गुवालन को,
शिवदीन यूं भाग्य सराया करूँ।
श्री राधिका कृष्ण ही कृष्ण रटूँ,
ब्रज की रज शीश चढ़ाया करूँ।
संतन मीत से प्रीत करूँ,
उर में अति प्रेम जगाया करूँ।
ब्रज में यमुना तट जाकर के,
वहीं घाट पे ठाठ से नहाया करुँ।
श्रीराधिका कृष्ण को नित्त है ये,
येहीं छंद सवैया सुनाया करूँ।
शिवदीन रटू नट नागर को,
ब्रज की रज शीश चढ़ाया करूं।
ब्रज बालन में वे गुवालन में,
बन कुंजन में नित जाया करूँ।
गाय चरे जहे कानन में,
हरि के संग गाय चराया करूँ।
पाकर मौका मैं राधिका को,
वह कृष्ण को हाल सुनाया करूँ।
शिवदीन यकीन भयो उर में,
ब्रज की रज शीश चढ़ाया करूँ।
नन्द यशोदा के आँगन में,
जहें खेलत कृष्ण मैं जाया करूं।
गुवाल सखा संग में मिल के,
कछु गान सुनो कछु गाया करूँ।
माखन रोटी कन्हैया जी पावत,
भोग उठाय मैं पाया करूँ।
शिवदीन करूं विनती सुनलो,
ब्रज की रज शीश चढ़ाया करूँ।
जय श्री राधे