मेरा कसूर क्या है के मैं हु बेटी

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हारी हु दर्द की मारी हु किस को सुनाऊ मैं अपनी कहानी
दुनिया न समजा न अपनों ने जाना न लगती है बड़ी जिंदगानी
डर लगता है जख्म अपनों से मिलते है
आज कल नाम के है रिश्ते है सभी
मेरा कसूर क्या है के मैं हु बेटी
दुनिया को ये गिला है के मैं हु बेटी
बे बजा दर्द सहू किसी से कुछ न कहू
के मेरा मेरा कसूर ये है के मैं हु बेटी

अगर थोड़ी सी भी कदर जान लेते न छोटी सी बातो में दिल तोड़ ते,
समज लेते  वो जो दर्द हमारा कभी भी च्रस्ते यु न छोड़ ते
बरसातो में भीग के भी सूखे लगते है
जख्मो पे भी मरहम बेकसूर हुए
मेरा कसूर क्या है के मैं हु बेटी

बड़ा बे रहम सा हुआ है जमाना मेरा गम तो सब को है लगता बेगैना
है धुदलाई नज़रे है रुखा पड़ा दिल है शीशे  की तरह ये टुटा हुआ
अब रोटी हु तो अनसु भी मेरे जलते है किस हलात में है लाइ जिन्दगी
मेरा कसूर क्या है के मैं हु बेटी

To whom should I tell my story?
The world neither understood nor loved ones seem to know a big life
Afraid the wounds meet their loved ones
Aaj Kal is the name of the relationship, everyone is
What is my fault that I am daughter
The world is ashamed that I am the daughter
Do not say anything to anyone without pain
My fault is that I am daughter

If I had known a little bit, I would not have broken my heart in small matters,
Understand that the pain that never leaves us forever
Even in the rainy season, it seems dry
Even the ointment on the wound was innocent
What is my fault that I am daughter

It’s like a time of great mercy, everyone feels my sorrow
The eyes are dry, the heart is dry, it is broken like a glass
Now if I am bread, even Ansu is jealous of me, in what condition is life?
What is my fault that I am daughter

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