ना स्वर हे ना सरगम हे,ना लय ना तराना हे,
हनुमान के चरणों में एक फूल चढ़ाना हे,
ना स्वर हे ना सरगम हे……
तुम बाल समय में प्रभु, सूरज को निगल डाले,
अभिमानी सुरपति के, सब दर्प मसल डाले,
बजरंग हुए तब से संसार ने माना हे,
ना स्वर हे ना सरगम हे……
सब दुर्ग डहा कर के,लंका को जलाये तुम,
सीता की खबर लाये,लक्ष्मण को बचाये तुम,
प्रिय भरत सरिस तुमको श्रीराम ने माना हे,
ना स्वर हे ना सरगम हे……
जब राम नाम तुमने पाया ना नगीने में,
तुम फाड् दिए सीना सिया राम थे सीने में,
विस्मित जग ने देखा कपि राम दीवाना हे,
ना स्वर हे ना सरगम हे……
हे अजर अमर स्वामी तुम हो अन्तर्यामी,
हे दिन हिन् चंचल अभिमानी अज्ञानी,
टुमने जो नजर फेरी, फिर कौन ठिकाना हे,
ना स्वर हे ना सरगम हे……
There is neither tone nor sargam, nor rhythm nor tarana,
A flower is to be offered at the feet of Hanuman,
Neither the tone nor the sargam is there……
Lord in time you swallow the sun,
Of the arrogant sarpati, mashed all the pains,
The world has believed since Bajrang happened.
Neither the tone nor the sargam is there……
By burning all the forts, you burn Lanka,
Bring the news of Sita, you save Lakshman,
Dear Bharat Saris, Shri Ram has accepted you,
Neither the tone nor the sargam is there……
When you found the name of Ram in the necklace,
You tore your chest, Siya Ram was in your chest,
The astonished world saw that Ram is crazy,
Neither the tone nor the sargam is there……
O Ajar immortal lord, you are Antaryami,
O day, the fickle arrogant ignorant,
The eyes that you turned, then who is the place,
There is neither tone nor sargam.