अजब हैरान हूं भगवन , तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं…
कोई वस्तू नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं…
करूं किस तौर आवाहन, कि तुम मौजूद हो हर जां,
निरादर है बुलाने को, अगर घंटी बजाऊं मैं…
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं…
तुम्हीं हो मूर्ति में भी, और तुम्हीं व्यापक हो फूलों में,
भला भगवान पर भगवान को क्यों कर चढाऊं मैं…
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं…
लगाना भोग कुछ तुमको, ये एक अपमान करना है,
खिलाता है जो सब जग को, उसे क्यों कर खिलाऊं मैं…
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं…
तुम्हारी ज्योति से रोशन हैं, सूरज, चांद और तारे,
महा अंधेर है कैसे, तुम्हें दीपक दिखाऊं मैं…
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं…
भुजाएं हैं, न सीना है, न गर्दन, है न पेशानी,
तू हैं निर्लेप नारायण, कहां चंदन लगाऊँ मैं…
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं
I am strangely surprised, Lord, how can I woo you…
There is no such thing, which I should bring in service…
How should I call that you are present, everyone knows,
It is disrespectful to call, if I ring the bell…
I am strangely surprised, Lord, how can I woo you…
You are also in the idol, and you are widespread in the flowers,
Why should I offer taxes to God on God?
I am strangely surprised, Lord, how can I woo you…
To indulge something to you, this is an insult,
Who feeds the whole world, why should I feed him…
I am strangely surprised, Lord, how can I woo you…
Illuminated by your light, the sun, the moon and the stars,
There is great darkness, how can I show you the lamp…
I am strangely surprised, Lord, how can I woo you…
No arms, no chest, no neck, no muscles,
You are Nirlep Narayan, where should I plant sandalwood?
Strangely surprised God, how can I please you