|| श्री हरि: ||
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आज आपको बहुत लाभ की बात बतायी जाती है | जो परमात्मा की प्राप्ति के मार्ग में चलता है, जो साधनावस्था में है, उससे भूल होना स्वाभाविक ही है | मनुष्य अज्ञ है, अज्ञानता में दोष आ ही जाता है | जितने भी सिधान्त हैं, मान्यतायें हैं या मत-मतान्तर हैं सभी भ्रम में भी डालने वाले हैं और मुक्ति भी देने वाले हैं | एक-से-एक अलग है, इस तरह से भ्रम में डालने वाले हैं और किसी एक को मानकर उसके अनुसार आचरण करें तो मुक्ति हो जाय | आप लोगों को बड़ी महत्व की बात बतायी जाती है, समझने की आवश्यकता है | हमारी जो भावना रुपयों की प्राप्ति है, वह नहीं होनी चाहिये, अपितु भगवान् की प्राप्ति की नीयत होनी चाहिये | नीयत असली होनी चाहिये, फिर साधन में कोई भूल हो भी जाती है तो भगवान् स्वयं क्षमा कर देते हैं | उसे भगवान् स्वयं सँभाल लेते हैं | हमें चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं | हमारी नीयत में दोष नहीं होना चाहिये | परमात्मा को प्राप्त करना सच्ची नीयत है | फिर बीच में मान-बड़ाई तथा शरीर के आराम को आदर देता है तो वह नीयत का दोष है | जहाँ मान-बड़ाई प्राप्त हुई, भले ही भगवान् नाराज हों उसको आदर न दे | यदि आदर देता है तो वह साधन परमात्मा की प्राप्ति के लिये नहीं, अपितु मान-प्रतिष्ठा के लिये है; क्योंकि जब मान-प्रतिष्ठा मिलती है तो फूल जाते हैं और भगवान् को भूल जाते हैं | यह भगवान् की प्राप्ति में विघ्न है – ऐसा मानकर तिरस्कार कर देना चाहिये | जो भगवान् की प्राप्ति में बाधक है उसे लात मारकर निकाल देना चाहिये |
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शेष आगामी पोस्ट में |
गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “परम सेवा“ १९४४ से |
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, Sri Hari: ||
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Today you are told something very beneficial. It is natural for one who walks in the path of attaining God, who is in spiritual practice, to commit mistakes. Man is ignorant, fault comes in ignorance. All the principles, beliefs or opinions, all of them are going to put you in confusion as well as give freedom. One is different from the other, in this way they are misleading and if one believes one and behaves accordingly, then there will be liberation. You people are being told something very important, it is necessary to understand it. Our feeling should not be to get money, but the intention should be to get God. The intention should be genuine, then even if there is a mistake in the means, then God himself forgives. God himself takes care of it. We don’t need to worry There should be no fault in our intentions. Attaining God is the true intention. Then in the middle, if he respects pride and comfort of the body, then it is a fault of the intention. Where respect is received, even if God is angry, do not give respect to it. If he gives respect, then that means is not for the attainment of God, but for respect and prestige; Because when they get respect and prestige, they get puffed up and forget God. This is an obstacle in the attainment of God – considering it as such, it should be rejected. The one who is an obstacle in the attainment of God should be kicked out.
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Rest in upcoming post.
The book “Param Seva” published by Geetapress, Gorakhpur since 1944.
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