भगवान मे समाना

हम भक्ति करना चाहते हैं भक्ति के लिए लक्ष्य का निर्धारित करना आवश्यक है। लक्ष्य क्या है मै भगवान के दर्शन करना चाहता हूं भगवान को देखना चाहता हूं। भगवान मे समा जाना चाहता हूँ। भगवान का बन जाना चाहता हूँ। लक्ष्य  बाहर का विषय नहीं है।  अपने भीतर भक्ति के बीज का रोपण  है। भक्ति वृक्ष है
भक्ती का बीज रोपित करे। भक्ती वृक्ष राम नाम कृष्ण नाम जल से सिचाई करते हुए वृक्ष फैलता फुलता है। भगवान नाम जङ है। अध्यात्म फल है।
बीज का गहराई से रोपण ही भक्ति की स्टेज है। जिस दिन बीज का रोपण हुआ उसी दिन भक्त शरीर तत्व से ऊपर उठ जाता है प्रभु चरणों मे समर्पित हो जाता है भीतर ही भीतर हृदय रो रहा है। प्रभु से प्रार्थना कर है कैसे प्रभु भगवान नाथ श्री हरि के दर्शन हो। रात दिन प्रार्थना करता है दिल ही दिल में प्रभु से बात करता है बाहर से मौन है भीतर की आंख से निहारता है। कुछ भी करना नहीं आता है बहुत कुछ कर रहा है। शरीर तत्व से ऊपर उठने का अर्थ है शरीर कुछ भी करे शरीर के अधीन नहीं है परमात्मा से बात करने के लिए कर्म की रूकावट नहीं रही सबकुछ करते हुए परमात्मा के विनय भाव मे  है। एक बार दर्शन का भाव हृदय में बैठ गया भक्त  परमात्मा के चरणों मे जीवन समर्पित कर देता है। विरह अग्नि हृदय में प्रज्वलित हो जाती है। फिर भगवान ही सब मार्ग पुरण कराते हैं भक्त निमित मात्र रह गया। भक्ति करते हुए भगवान आनंद का मार्ग देते हैं। भक्त जानता है आनंद का मार्ग सच्चा नहीं है। आंनद को प्राप्त करना नहीं चाहता है नाम जप चल रहा है विनती स्तुति कर रहा है भगवान की पुकार लगाता है हे प्रभु प्राण नाथ क्या मै तुम्हे देख पाऊँगी। भक्त  एक निष्ठ होकर भक्ति करना चाहता हैं।
हम समझते हैं बस एक बार मे ही सब कुछ पा ले।  साधना में अनेक विघ्न आते हैं।  मन ही मन हम गुस्सा होते हैं। ऋषि मुनियों की कथा पढते है वे भी एक निष्ठ होकर साधना नहीं कर पाए हैं । हम देखते हैं कुछ दिन बहुत अच्छे से होता है भक्ती भाव मे होते हैं फिर गिर जाते हैं। एक साधक जानता है यह पथ तलवार की धार पर चलने के समान है। अनेक रूकावटो मे भी तुझे भीतर से चलना है यह बाहर का मार्ग नहीं है। हम समझते हैं बाहर से भक्ति कर लेंगे भक्ति बाहर का विषय नहीं है बाहर से जो किया जाता है उसे पुजा कहां गया है। धर्य के कपाट के बैगर कोई चल नहीं सकता है।
भक्ति अन्तर्मन का विषय है। अन्तर्मन से तुम कितनी वन्दना करते हो। प्रभु से बात करते हुए कितना समय बिताते हो। न कोई पाठ न मंत्र जप फिर भी भगवान नाथ श्री हरि से बात चल रही है।  भीतर से जुड़े बैगर शरीर तत्व से ऊपर  उठ नहीं सकते है तब तक पुरणता आ नहीं सकती है। हमे देखना यह है नाम जप प्रार्थना करते हुए हम कितने गौण हुए । हम अपने भीतर कितने झांके अपने भीतर की बुराई को तु कितना देखती है। बाहर का संसार सम्बंधी भक्ति में रूकावट नहीं डालते हैं हमारा मन ही रूकावट डालता है। कुछ भी करते हुए अधिक गहरे उतर गए तब बाहर से द्वार पर दस्तक होगी। भक्ति की शुद्धता होगी तब अमुक व्यक्ति मे परमात्मा के दर्शन हो जायेगे। अहम तत्व बढा हुआ होगा तब दुखी हो जाओगे। अमुक व्यक्ति मेरे मार्ग की रूकावट है। वो समय बहुत पवित्र सात्विक होता है जब कोई द्वार खटका कर जगा जाता है। एक भक्त कहता है भगवान ने मुझे इस योग्य समझा वही मेरे लिए बहुत कुछ है मै अमुक आत्मा को हृदय से आभार व्यक्त करते हुए प्रणाम करती हूँ।

भक्ति का अर्थ है मुसीबतों मे भी चलते जाना है।  दुख में भी आनन्द का अनुभव होना। भक्त दुख की गहराई को जिस दिन पढना सिख जाता है। दुख घङत है  भक्त की परीक्षा दुख के समय है। क्या उस समय तुम ठहर गए अन्य को दोष देने लगे या फिर मन के विचारों को पढते हुए धीरे-धीरे चलते रहे। अन्य मे ईश्वर को देखते रहे। अपने आप को ही दोषी मानते रहे। अपने आप मे बुराई को देखना सबसे बड़ी साधना है। अपने आप की घङत है
गुरु तत्व, आत्मज्ञान  परम तत्व प्रार्थना भाव के बैगर भक्ति और साधना की पुरणता हो नहीं सकती है एक एक तत्व की जागृति के लिए भक्त वर्षों तक एक पर ही टिका रहता है दर्शन का भाव भी नहीं चाहता। परमात्मा अनेक रूप में दर्शन का अहसास कराते हैं खोया हुआ है। समझ नहीं पाता है।भक्ति करते हुए भगवान से मिलन की तङफ ज्ञान और वैराग्य प्रकट हो जाता है। भक्त की भक्ति में एक निष्ठता का होना आवश्यक है प्रभु का प्रेम तङफ और विरह भाव को प्रकट करता है ।भक्त की भक्ति दृढ होगी तब अनेक रूकावटे भी पैदा होगी। पक्के खिलाड़ी ही कठिन समय पर टिक पाते हैं।
भक्ति आनंद का मार्ग है आनंद का प्याला भर जाता है तब चारो और से आन्नद को छीनने के लिए खङे होते हैं। गुरु आगे बढाने के लिए आते हैं। आनन्द है वंहा भक्ति की पुरणता नहीं है आनंद के साथ अंहकार का भी जन्म है। आनंद बाहर का विषय है। भक्त को भक्ति की राह दिखाने के लिए भगवान अन्य किसी को भेजते हैं । कई बार भक्त दर्शन का निश्चय कर लेता है। भगवान आए तब भगवान के साथ होली मनाऊं। तङफ रहा है पुकार लगाता है कैसे दर्शन हो प्रार्थना भाव मे है। गृहस्थ जीवन के प्रत्येक जिम्मेदारी वैसे ही निभाते हुए भीतर से भगवान नाथ श्री हरि से जुड़ा हुआ है। बारह दिन बीत जाते हैं होली आकर चली जाती है भक्त की होली अभी शेष है।संत द्वार खटकाते है निश्चय को खुलवाने के लिए संत ईश्वर रूप में आ जाते हैं भक्त को संत मे ईश्वर के दर्शन होते हैं। अन्तर्मन से संत का वन्दन करता है मौन है

भक्त की भक्ति मे अनेक देवी देवता सहायक भी है विघ्न भी देने वाले हैं। भक्ती और साधना मै तत्व से उपर उठ कर  हैं तब किसी को दोष नहीं दे सकते हैं कि अमुक सदस्य मुझे भक्ति साधना करने नहीं देता है। भक्त कहता है। यह मुझ से भी अधिक शुद्ध हृदय आत्मा है यह परमात्मा का रूप है इसकी वाणी इसकी नहीं परमात्मा की वाणी है। परमात्मा ही आए हैं तु समर्पित हो जा फिर चाहे भक्ति मे कितनी ही रूकावटे पैदा हो वह धीरे-धीरे चलता जाता है। धीरे-धीरे चलते हुए ही मार्ग को तय कर सकते हैं। प्रभु प्रेम प्रभु से मिलन की तङफ मे वर्षों तक भक्त गिरता उठता है तब कंही भगवान के दर्शन का अहसास है। एक समय के पश्चात भक्त दर्शन भी नहीं चाहता। भगवान का बन जाना चाहता है।
नाम जप,प्रार्थना मार्ग ज्ञान मार्ग आत्म तत्व, गुरु तत्व, समर्पण भाव परम तत्व अध्यात्मवाद कोई भी तत्व की जागृति के लिए हमे वर्षों लग जाते हैं। हर मार्ग को भक्त करके देखता है। एक समय के पश्चात भक्त भगवान को अपने भीतर खोज करता है।सब नियम को त्याग देता है प्रभु भगवान से सम्बन्ध मे नियम बाधा पैदा करते हैं। भाव नियमों में  बंध नहीं सकता है।
कभी दिन भर चिन्तन चल रहा है तो कभी हुआ ही नहीं। अनेक रूकावटो का सामना करते हुए हमें चलते रहना है।दुख को जिसने दुख मान लिया वह क्या भक्ति कर पाएगा। दुख रास्ते का पडाव है ही नहीं  ऊपर की स्टेज भी है। भक्त  सोचता है यह तो और भी अच्छा है अब एक निष्ठ होकर भीतर से भक्ति करूंगा । भीतर की एक निष्ठता वह है। जिसमें हम सामने वाले मे परमात्मा के दर्शन करते हैं।बाहर का द्वार बंद कर देते हैं विकार प्रवेश कर नहीं सकते हैं।कुछ दिन ही द्वार बंद कर सकते हैं कोई न कोई द्वार को खुलवाने आ जाता है। एक भक्त को ज्ञान है कि कुछ दिन ही तु लगतार भक्ति कर सकता है। भक्ती के रस से भरे हुए हैं तब कोई भिक्षुक भिक्षा लेने आ जाता है। भक्त जानता है इससे तु नीचे गिरेगा फिर भी भक्त भिक्षुक की झोली में प्याले को उडेल देता है। भक्त भिक्षुक में परमात्मा श्री हरि के दर्शन करता है।भक्त ने भक्ति की और देश राष्ट्र पर संकट आ गया साथी पर संकट आ गया तब भक्त प्रभु प्राण नाथ से प्रार्थना करता है हे नाथ आज तक मैंने तुम्हारी सच्चे रूप में सेवा की हो तब यह साधना तुम्हे समर्पित करती हूँ हे नाथ चाहे तुम मुझे कष्ट दे देना राष्ट्र की रक्षा कर देना। भक्त अपने कष्ट को राई के समान देखता है। यदि हमारे भीतर त्याग का मार्ग नहीं है प्राप्त करने के स्थान पर है आनंद को प्राप्त करना चाहते हैं। थोड़े से हवा के झोके से बिखर जाते हैं तब हम कच्चे ही है। एक भक्त को दुख तोड नहीं सकता है भक्त दुख मे निखरता है। भक्त दुख में परमात्मा की खोज कर लेता है।दुख का समय अति पवित्र है। साथी किनारा कर लेते हैं लोभ और मोह विकार जल जाते हैं अभिमान आ नहीं सकता है
भक्ती का अर्थ है आप ग्रथों से लिखी हुई प्रार्थना, पाठ से ऊपर उठ गए। कण-कण में भगवान का अहसास होने लगा। भगवान के भाव मे रहने लगे। भगवान को जंहा कही नमन कर लोगे। भक्ति के बैगर अध्यात्म ज्ञान रूपी औषधि सेवन नहीं कर सकते हैं। हमारे रोम रोम में भक्ति समा जाती तब ज्ञान का द्वार खुलता है। भक्ति मणी है मणी के प्रकाश के बैगर ज्ञान थोथा है कचा है। भक्ति मे भक्त स्वयं नहीं है भक्त और भगवान एक ही है भगवान भक्त की परिक्षा के द्वारा घङते हैं। भक्त परमात्मा के परम आनंद मे है ऐसा महसूस होता है परमात्मा आए हुए हैं अपने साथी को विकट परिस्थिति में देखता है भक्त साथी की झोली परम आनंद से भर देता है। भक्त को यह भी पता है तु प्रभु प्राण नाथ के बैगर कैसे रहेगा। फिर भी प्रभु आज्ञा समझ कर विरह भाव को अपना लेता है।
भक्त के लिए सब के विचार परमात्मा के विचार है।
जय श्री राम अनीता गर्ग

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