एक भक्त का भगवान के चरण स्पर्श का भाव प्रकट करती हूँ।भक्त भगवान के चरणों में समर्पित है। कभी शिश नवाकर प्रणाम करता है। तब कभी शांशटांग प्रणाम करता है।कार्य करते हुए अन्तर्मन से वन्दन करता है ।
रात के ग्यारह बज रहे हैं। भक्त बैड पर बैठा हुआ है । मन ही मन परम पिता परमात्मा को प्रणाम है स्वामी भगवान् नाथ को प्रणाम है।श्री राम राम राम टीवी चल रहा है।भक्त गृहस्थ है। भक्त के हदय में उत्कंठा जाग जाती है भगवान मेरे सामने हो मै प्रभु प्राण नाथ को देखना चाहता हूँ चरणों में समर्पित होना चाहता हूं। भगवान के भाव मे डुबा जाना चाहता हूं। प्रभु प्राण नाथ के दर्शन की उत्कंठा जब जागृत होती है। होश भक्त को रहता नहीं। खो जाता है प्रभु में कब कैसे उन्हें निहारूं। भक्त का प्रभु दर्शन मुर्ति और मदिंर में ही नहीं है प्रेम मे छुपा हुआ है। प्रेम कब प्रगट हो प्रेमी नहीं जानता है। खुली और बन्द आंखों में प्रभु भगवान समा जाते हैं। हर सांस भगवान श्री हरि की पुकार लगाती है
दिल अभी इसी समय परमात्मा का बन जाना चाहता है ।भगवान् श्री हरि के चरणों का स्पर्श करना चाहता है। दिल मे हलचल मच जाती है। मेरे पास भगवान का इस समय मुर्ति रूप में रूप नहीं है ।
कैसे मेरे स्वामी के चरणों को निहारूं अभी चरण वन्दन कर लूं । भक्त के भगवान भक्त मे समा जाते हैं तब हर ओर प्रभु प्राण नाथ ही दिखाई देते हैं। भक्त को ऐसा अहसास होता है। स्वामी मेरे सामने खङे है। मै बैठी हुई धीरे-धीरे बैड पर हाथ से स्पर्श करती। नैनो से नीर बहने लगता है मानो गंगा और यमुना नैनो में समा गई हो धीरे से स्पर्श करती और प्रणाम कर देती हूँ। ये मेरे प्रभु प्राण प्यारे के चरण है। चरणों का स्पर्श पाकर अपने आप को भुल जाती हूँ।हम मदिंर में दर्शन करे एक भाव है। भक्त भगवान से मिलन की इच्छा जाग्रत होने पर एक पल भी रह नहीं सकता है। हृदय भगवान का बन जाता है तब भक्त और भगवान एक हो जाते हैं
भगवान श्री हरि के चरणों के स्पर्श का आभास होता है। दिल की दशा को शब्दों में पिरो नहीं सकती हूँ।यह भाव है एक भक्त भगवान का बन जाता है तब दिल भगवान को हर क्षण पुकारता है।
भक्त के पास बाहरी पठन पाठन कुछ नहीं है। भक्त भगवान के भाव मे मेरे भगवान आएगे ।श्रीहरि हर वस्तु विशेष में विराजमान है। दिल प्रभु प्राण नाथ को पुकारता है तुम चले आओ। भक्त के भगवान् दिल में हर क्षण बैठे हैं। भक्त अपने अन्तर्मन के भाव भगवान को अर्पण करता है ।जय श्री राम
अनीता गर्ग