दक्षिण भारत से किसी समय एक कृष्ण भक्त वैष्णव साधु वृंदावन की यात्रा के लिए आए थे । एक बार वे गोवर्धन (गिरिराज) की परिक्रमा के लिए गए । हाथ में करमाला लेकर जप करते हुए परिक्रमा मार्ग पर मंद गति से चल रहे थे। दोपहर हो गई । बाबा की भिक्षा शेष थी , परंतु परिक्रमा मार्ग पर भिक्षा मिलना संभव नहीं है , यह मानकर वे चलते रहे ।*
थोड़ी देर तक इस प्रकार चलने के बाद सामने से आती हुई एक किसान स्त्री दिखाई दी । वह अपने घर से खेत में जा रही थी । उसके सिर पर टोकरी में भोजन था । दोपहर का समय है , और बाबा भूखे होंगे , यह सोचकर उसने बाबा से पूछा— बाबा भोजन पाओगे (करेंगे ) ? दोपहर का समय था , बाबा को भूख भी लगी थी और यह भोजन तो अनायास ही सामने आया था। बाबा ने भोजन के निमंत्रण को स्वीकार किया ।
उस स्त्री ने खाद्य सामग्री से भरा टोकरा सिर से उतार कर नीचे रखा । गेहूं की रोटी , सब्जी और दाल इत्यादि से टोकरा पूरा भरा हुआ था । सारी सामग्री एक कपड़े से ढकी हुई थी । उस कपड़े पर उस स्त्री ने अपनी चप्पले रखी थी । गांव की औरतें की आदत होती है कि कई बार वे अपनी चप्पले सिर पर रखे टोकरे में रख देती है , और खुद नंगे पर चलती है । इसने भी अपनी चप्पले भोजन के टोकरे पर रखी थी ।
बाबा जी की स्वीकृति पाकर चप्पले नीचे रखकर उसने भोजन पर ढका हुआ कपड़े का टुकड़ा हटाया और भोजन परोसने की तैयारी करने लगी। यह देखकर वैष्णव संस्कार में पले बढ़े साधु महाराज चौक उठे , उन्होंने लगभग गर्जना करते हुए कहा — अरे तुमने अपनी धूल से सनी जूतियां भोजन पर रखी हैं । और ऐसा अशुद्ध भोजन मुझे दे रही हो ? क्या ऐसा धूल वाला भोजन हम ग्रहण करें ? बिल्कुल बेवकूफ हो । तुम्हारी ऐसी धूल वाली गंदी जूतियों ने भोजन अशुद्ध कर दिया है । रखो अपना भोजन अपने पास।
अप्रसन्न साधु भोजन का त्याग करके चल दिए , परंतु वह बृजवासनि स्त्री तनिक भी विचलित हुई बिना मुस्कुराने लगी । बृजवासिनी देवी ने बाबा को मर्म वेदी उत्तर दिया— अरे ! तेरे को बाबा किसने बनाया ? तू सच्चा बाबा नहीं है । अरे यह धूल नहीं है , यह तो ब्रजरज है । ब्रजरज तो राधा- कृष्ण की चरणरज है । ब्रजरज को कौन धूल कहता है ? तू बाबा बना है और तुझे इतना भी मालूम नहीं है ?
साधु महाराज का मर्म मानो बिंद गया । एक भोली भाली अनपढ़ किसान स्त्री के बिल्कुल सही शब्द साधु महाराज के दिल पर के आर पार उतर गए ।
इस सीधी-सादी ब्रिजनारी के ऐसे प्रेमयुक्त कथन सुनकर साधु बाबा की आंखों में से सावन भादो की बरसात होने लगी । चेहरा कृष्ण प्रेम से भाव विभोर हो गया । शरीर कांपने लगा । साधु महाराज हाथ जोड़कर अपने अपराध के लिए क्षमा मांगने लगे ।
मुझसे गलती हो गई , मैया, मुझे क्षमा कर दें । सच बताया, यह धूल नहीं है । यह तो ब्रजरज है , राधा कृष्ण की चरणरज है । तुमने मेरी आंखें खोल दी । मैया , मुझे क्षमा कर दो ।
बाबा बार-बार उस बृजवासिनी को साष्टांग प्रणाम करने लगे । फूट-फूट कर रोते हुए व्रज की रज को बार बार शरीर पर मलने लगे ।
बाबा की यह दशा देखकर उन्हें आश्वासन देते हुए उसने कहा — अरे कोई बात नहीं बाबा । हमारी राधा रानी बहुत बड़े दिलवाली हैं । वह सबको माफ करती रहती है । इतना शोक मत कर ।
यह कहकर उसने साधु महाराज को भोजन परोस दिया । बाबा ” राधे कृष्ण “राधे कृष्ण ” बोलते हुए भोजन करने लगे और गोवर्धन कि वह गोपी अपने खेत की ओर चल दी।
जय श्रीराधेकृष्ण प्रभु जी 🙏🙏
Sometime a Krishna devotee Vaishnava monk from South India had come to visit Vrindavan. Once he went for the circumambulation of Govardhan (Giriraj). While chanting with a karmala in his hand, he was walking on the parikrama route at a slow pace. It’s afternoon. Baba’s alms were left, but it is not possible to get alms on the parikrama route, assuming that he kept walking.
After walking like this for a while, a farmer woman appeared coming from the front. She was going from her house to the field. There was food in the basket on his head. It is noon, and thinking that Baba will be hungry, he asked Baba– Baba will get food (will it)? It was noon, Baba was also hungry and this food had come to the fore unintentionally. Baba accepted the invitation for the meal.
The woman took off the crate full of food items from her head and put it down. The crate was full with wheat bread, vegetables and pulses etc. All the material was covered with a cloth. The woman had kept her slippers on that cloth. The women of the village have a habit that sometimes they put their slippers in a crate placed on their heads, and walk themselves barefoot. He also kept his slippers on the food crate.
After getting Baba ji’s approval, putting the slippers down, she removed the piece of cloth covered over the food and started preparing to serve the food. Seeing this, Sadhu Maharaj, who grew up in Vaishnava rites, got up in the square, he almost roared and said – Oh you have put your dusty shoes on the food. And giving me such impure food? Should we eat such dusty food? Absolutely stupid Your dirty shoes with such dust have made the food impure. Keep your food with you.
The unhappy sadhus left the food and left, but that Brijwasani woman started smiling without being disturbed at all. Brijwasini Devi answered Baba the Marma vedi– Hey! Who made you Baba? You are not a real Baba. Oh this is not dust, it is Brajraj. Brajraj is the feet of Radha-Krishna. Who calls Brajraj as dust? You have become Baba and you do not even know this?
As if the heart of Sadhu Maharaj had disappeared. The right words of a naively illiterate peasant woman crossed the heart of Sadhu Maharaj.
Hearing such a loving statement of this simple Brijnari, it started raining Sawan Bhado from the eyes of Sadhu Baba. His face was filled with love for Krishna. The body started trembling. Sadhu Maharaj started asking for forgiveness for his crime with folded hands.
I made a mistake, my mother, please forgive me. Truth told, it’s not dust. This is Brajraj, Radha is Krishna’s feet. You opened my eyes My mother, please forgive me.
Baba started prostrate to that Brijwasini again and again. Weeping bitterly, he started rubbing the Raj of Vraj on his body again and again.
Seeing this condition of Baba, giving assurance to him, he said – Oh no problem, Baba. Our Radha Rani is very big hearted. She keeps on forgiving everyone. Don’t be so sad
Saying this he served food to Sadhu Maharaj. Baba started eating while saying “Radhe Krishna” Radhe Krishna and Govardhan that Gopi walked towards his farm.
Jai Shri Radhekrishna Prabhu ji