अक्सर तर्कवान अपनी बात को इस प्रकार रखते है। की जिंदगी भर आस्था रखने वाले की बुद्धि भी धोखा खा जाती है। ऐसे लोगो की बातों में आकर कई भक्त दुविधा में पड़ जाते है। की मूर्ति पूजा करनी चाहिए या नहीं।
कोई भी आस्तिक भक्त मूर्तिकी पूजा नहीं करता, वह तो मूर्तिमें अपने इष्टदेवकी पूजा करता है, इसलिये जबतक अपना भास रहे, तबतक अपने इष्टदेवकी पूजा करते रहना चाहिये ।
जब मनुष्य किसी पुस्तक या चिट्ठीको पढ़ता है, तब कागज या स्याहीको नहीं पढ़ता; किंतु उसमें लिखे हुए संकेतके द्वारा उसके अर्थको पढ़ता है। कागज, स्याही और अक्षर तो उस अर्थको समझनेके लिये चिह्नमात्र हैं। अर्थ तो पढ़नेवालेकी बुद्धिमें परम्परासे विद्यमान है। इसी प्रकार भक्त मूर्तिको संकेत बनाकर अपने इष्टकी पूजा करता है, मूर्तिकी पूजा नहीं करता ।
इसी तरह गीता आदिमें समझ लेना चाहिये । पढ़नेवाला उसे भगवान्की वाणी समझकर पढ़ता है और उसी भावसे उसका आदर करता है ।
श्री तुलसीदासजी राम – नामका जप करते थे तो उनके भावमें परमेश्वर और उनके पूर्ण ऐश्वर्य, माधुर्य आदि समस्त गुण नाममें भरे हुए थे, वे राम और ब्रह्म दोनोंसे नामको बढ़कर मानते थे । उनके विषयमें कोई भी यह नहीं कह सकता कि वे परमेश्वरका स्मरण नहीं कर रहे थे, शब्दमात्रका जप कर रहे थे। इससे साधकको यह समझ लेना चाहिये कि कोई भी साधन नीचे दर्जेका नहीं है।
जिस साधकको जो साधन प्रिय हो, अपनी योग्यताके अनुसार जिस साधनको वह सुगमतासे कर सके, जिसमें उसका पूर्ण विश्वास हो, किसी प्रकारका भी सन्देह न रहे, वही साधन उसके लिये सर्वश्रेष्ठ है। किसी प्रकारका सन्देह न रहनेसे साधककी बुद्धि साधनमें लग जाती है । प्रेम होनेसे हृदय द्रवित हो जाता है। विश्वास होनेके कारण मनमें किसी प्रकारका विकल्प नहीं उठता। उसमें मन लग जाता है। अतः साधनमें कोई छोटा-बड़ा नहीं है।
किसी भी साधक को यह नहीं समझना चाहिये कि ‘मुझे अमुक प्रकारकी योग्यता प्राप्त नहीं है, इसलिये मुझे भगवान् नहीं मिल सकते।’ यह मानना भगवान्की महिमाको न जानकर उनकी कृपाका अनादर करना है; क्योंकि भगवान् अपनी कृपासे प्रेरित होकर ही साधकको मिलते हैं। उनकी कृपा प्राप्त करनेका एकमात्र उपाय उनसे मिलने की उत्कण्ठा, उनके प्रेमकी अतिशय लालसा ही है। धन, बल, सुन्दरता या किसी प्रकारके साधनके बलसे भगवान् नहीं मिल सकते । साधन उनका या उनके प्रेमका मूल्य नहीं है । साधन तो अपने बनाये हुए दोषों को मिटानेके लिये है, जो भगवान्द्वारा दी हुई योग्यताका सदुपयोग करनेमात्र से होता है ।
मनुष्य चाहे कैसा ही दीन-हीन मलिन क्यों न हो, कितना ही बड़ा पातकी क्यों न हो, वह जैसा और जिस परिस्थितिमें है, उसीमें यदि विश्वासपूर्वक भगवान्का हो जाय और उनको पानेके लिये व्याकुल हो उठे, भगवान्के वियोगमें उसे किसी प्रकार चैन न पड़े, तो भगवान् अवश्य मिल जाते हैं ।
भगवान् उसी पतितको मिलते हैं, जो पतित नहीं रहना चाहता अर्थात् पुनः पाप नहीं करना चाहता। ऐसे साधकको भगवान् परम पवित्र बनाकर अपना लेते हैं, परंतु जिसको अपने पापोंका पश्चात्ताप नहीं है, जो उनको छोड़ना नहीं चाहता, उसे भगवान् नहीं मिलते। वैसे ही जिसको अपने गुणोंका अभिमान होता है, उसे भी नहीं मिलते। साथ ही यह बात भी है कि जबतक साधकके मनमें किसी दूसरी वस्तुकी चाह रहती है, तबतक भगवान् नहीं मिलते। किंतु उसकी चाह के अनुरूप वस्तु और परिस्थिति, यदि उसके पतनमें हेतु न हो तो प्रदान कर देते हैं।
भगवान्की यह शर्त है कि मुझसे मिलनेके बाद अन्य किसीसे साधक नहीं मिल सकता, परंतु ऐसा साधक कोई बिरला ही होता है, जो हर समय एकमात्र उन्हींसे मिलनेके लिये इच्छुक रहता हो, जिसके समस्त काम पूरे हो चुके हों, जिसके मन में अन्य किसी प्रकार के संयोग की चाह नहीं रही हो ।
जय श्री राधे कृष्ण जी
Often rationalists keep their point in this way. Even the intellect of a person who has faith throughout his life gets deceived. Many devotees get confused after coming to the words of such people. Idol should be worshiped or not. Any theist devotee does not worship an idol, he worships his presiding deity in an idol, so as long as he has his senses, he should continue worshiping his presiding deity.
When a man reads a book or a letter, he does not read the paper or the ink; But reads its meaning by the sign written in it. Paper, ink and letters are just symbols to understand that meaning. The meaning is present in the mind of the reader by tradition. Similarly, a devotee worships his beloved by making an idol a sign, he does not worship an idol.
Similarly, the Gita etc. should be understood. The reader reads it considering it to be the voice of God and respects it in the same spirit.
When Shri Tulsidasji used to chant the name of Ram, then in his feelings, all the qualities of God and his full opulence, sweetness etc. were filled in the name, he used to consider the name more than both Ram and Brahma. No one can say about him that he was not remembering the Supreme Lord, but was merely chanting words. From this the seeker should understand that no means is inferior.
The Sadhak who likes the Sadhan, according to his ability, which he can easily do, in which he has full faith, without any kind of doubt, that Sadhan is the best for him. Due to the absence of any kind of doubt, the intellect of the seeker gets engaged in the means. Being in love melts the heart. Because of having faith, no alternative arises in the mind. The mind gets engaged in it. That’s why there is no big or small in means.
No seeker should think that ‘I do not have a certain type of qualification, therefore I cannot find God’. To believe this without knowing the glory of God is to disrespect his grace; Because God meets the seeker only after being inspired by his grace. The only way to get His grace is the eagerness to meet Him, the great longing for His love. God cannot be attained by money, power, beauty or any kind of means. Means is not their value or their love. The means are to remove the defects created by oneself, which is done only by making good use of the ability given by God.
No matter how humble a man may be, no matter how big a scoundrel he may be, if he faithfully belongs to God in whatever condition he is in and is anxious to get Him, he will not feel any rest in separation from God, So God is definitely found.
God meets only the fallen, who does not want to remain fallen, that is, does not want to commit sin again. God accepts such a seeker by making him pure, but the one who does not repent of his sins, who does not want to leave them, does not get God. Similarly, the one who is proud of his qualities, he also does not get them. Along with this, it is also a matter that as long as there is a desire for something else in the heart of the seeker, God is not found. But according to his wish, things and circumstances provide him, if there is no reason for his downfall.
It is the condition of God that after meeting me, a seeker cannot meet anyone else, but such a seeker is very rare, who is always desirous of meeting only Him, whose all work has been completed, who does not have any other kind of thoughts in his mind. You are not wishing for coincidence. Jai Shri Radhe Krishna