।।श्रीहरिः।।
रासलीला के श्रम से व्यथित राधाजी की भगवान् द्वारा यह सेवा किए जाने के कारण इस स्थान का नाम सेवाकुंज पडा. सेवाकुंज वृंदावन के प्राचीन दर्शनीय स्थलों में से एक है। राधादामोदर जी मन्दिर के निकट ही कुछ पूर्व-दक्षिण कोण में यह स्थान स्थित है।
स्थापना – गोस्वामी श्रीहितहरिवंश जी ने सन 1590 में अन्य अनेक लीला स्थलों के साथ इसे भी प्रकट किया था।
शेष री विग्रह – यहाँ एक छोटे-से मन्दिर में राधा जी के चित्रपट की पूजा होती है। लता दु्रमों से आच्छादित सेवाकुंज के मध्य में एक भव्य मंदिर है, जिसमें श्रीकृष्ण राधाजी के चरण दबाते हुए अति सुंदर रूप में विराजमान है। राधाजी की ललितादि सखियों के भी चित्रपट मंदिर की शोभा बढा रहे हैं। साथ में ललिता विशाखा जी भी दर्शन है।
सेवा कुंज में ललिता-कुण्ड है।जहाँ रास के समय ललिताजी को प्यास लगने पर कृष्ण ने अपनी वेणु(वंशी) से खोदकर एक सुन्दर कुण्ड को प्रकट किया।जिसके सुशीतल मीठे जल से सखियों के साथ ललिता जी ने जलपान किया था सेवाकुंज के बीचोंबीच एक पक्का चबूतरा है, जनश्रुति है कि यहाँ आज भी नित्य रात्रि को रासलीला होती है।
सेवाकुंज का इतिहास :
वृंदावन श्यामा जू और श्रीकुंजविहारीका निज धाम है।यहां राधा-कृष्ण की प्रेमरस-धाराबहती रहती है। मान्यता है कि चिरयुवाप्रिय-प्रियतम श्रीधामवृंदावन में सदैव विहार में संलग्न रहते हैं।
भक्त रसखान ब्रज में सर्वत्र कृष्ण को खोज खोज कर हार गये, अन्त में यहीं पर रसिक कृष्ण का उन्हें दर्शन हुआ। उन्होंने अपने पद में उस झाँकी का वर्णन इस प्रकार किया है –
देख्यो दुर्यों वह कुंज कुटीर में।
बैठ्यो पलोटत राधिका पायन ॥
मन्दिर में एक शय्या शयन के लिए है, जिसके विषय में कहा जाता है की रात्रि में प्रिया प्रितम साक्षात् रूप में आज भी इसपर विश्राम करते हैं । साथ ही सेवाकुंज के बीचोंबीच एक पक्का चबूतरा है, ब्रजवासियों का कहना है कि आज भी प्रत्येक रात्रि में श्री राधाकृष्ण-युगल साक्षात् रूप से यहाँ विहार करते हैं।