केवल चाहने मात्र से जीवन कभी भी सम्मानीय एवं अनुकरणीय नहीं बन जाता है। सहनशीलता का गुण ही किसी जीवन को सत्कार के योग्य बना देता है। सम्मानपूर्ण जीवन के लिए इच्छा से अधिक तितिक्षा की आवश्यकता होती है। यदि जीवन में सहनशीलता होगी तो व्यक्ति घर-परिवार अथवा समाज में स्वतः ही सबका प्रिय बन जाता है।
महान वो नहीं जिसके जीवन में सम्मान हो अपितु वो है, जिसके जीवन में सहनशीलता हो क्योंकि सहनशीलता ही तो साधु पुरुषों का आभूषण है। सम्मान मिलना गलत भी नहीं लेकिन मन में सम्मान की चाह रखना अवश्य श्रेष्ठ पुरुषों के स्वभाव के विपरीत है। किसी के जीवन की श्रेष्ठता का मूल्यांकन इस बात से नहीं होता कि उसे कितना सम्मान मिल रहा है अपितु इस बात से होता है कि वह व्यक्ति कितने सम्मान से जी रहा है!
Life never becomes respectable and exemplary just by wishing. It is the quality of tolerance that makes a life worthy of respect. A respectable life requires more determination than desire. If there is tolerance in life, then the person automatically becomes loved by everyone in the family or society.
Great is not the one who has respect in his life but he who has tolerance in his life because tolerance is the ornament of sages. It is not wrong to get respect, but having a desire for respect in the mind is definitely contrary to the nature of great men. The excellence of someone’s life is not evaluated by how much respect he is getting but by how respectfully that person is living.