सतसंग से ही जीवत्मा
           का कल्याण होता है..

FB IMG

एक बार शुकदेव जी के पिता भगवान वेदव्यास जी महाराज कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक कीड़ा बड़ी तेजी से सड़क पार कर रहा था। वेदव्यास जी ने अपनी योग शक्ति देते हुए उससे पूछा:-“इतनी जल्दी सड़क क्यों पार कर रहा है?क्या तुझे किसी काम से जाना है। तू तो नाली का कीड़ा है। इस नाली को छोड़कर दूसरी नाली में ही तो जाना है, फिर इतनी तेजी से क्यों भाग रहा है?”
कीड़ा बोला-“बाबाजी बैलगाड़ी आ रही है। बैलों के गले में बँधे घुँघरु तथा बैलगाड़ी की पहियों की आवाज में सुन रहा हूंँ। यदि मैं धीरे-धीरे सड़क पार कर करुँगा तो बैलगाड़ी आकर मुझे कुचल डालेगी।”
वेदव्यासजी:”कुचलने दे।कीड़े की योनि में जी कर भी क्या करना?”
कीड़ाः”महर्षि!प्राणी जिस शरीर में होता है उसको उसमें भी ममता होती है।अनेक प्राणी नाना प्रकार के कष्टों को सहते हुए भी मरना नहीं चाहते।” वेदव्यास जीः” बैलगाड़ी आ जाए और तू मर जाए तो घबराना मत। मैं तुझे योगशक्ति से महान बनाऊँगा। जब तक ब्राह्मण शरीर में न पहुंँचा दूंँ, अन्य सभी योनियों से शीघ्र छुटकारा दिलाता रहूंँगा।” उस कीड़े ने बात मान ली और बीच रास्ते पर रुक गया और मर गया। फिर वेदव्यास जी की कृपा से वह क्रमशःकौआ,सियार आदि योनियों में जब-जब भी उत्पन्न हुआ,वेदव्यास जी ने जाकर उसे पूर्व जन्म का स्मरण दिला दिया। इस तरह क्रमशः मृग,पक्षी, जातियों में जन्म लेता हुआ क्षत्रिय जाति में उत्पन्न हुआ।उसे वहांँ भी वेदव्यास जी दर्शन दिये। थोड़े दिनों में रणभूमि में शरीर त्याग कर उसने ब्राह्मण के घर में जन्म लिया।
भगवान वेदव्यास जी ने उसे पाँच वर्ष की उम्र में आत्मज्ञान की दीक्षा दी। जिसका ध्यान-सुमिरण, करते-करते उसे आनन्द आने लगा।उसकी बुद्धि बड़ी विलक्षण होने पर वेद, शास्त्र व धर्म का रहस्य समझ में आ गया। सात वर्ष की आयु में वेदव्यास जी ने उसे कहाः”कार्तिक क्षेत्र में कई वर्षों से एक ब्राह्मण नंदभद्र तपस्या कर रहा है।तुम जाकर उसकी शंका का समाधान करो।”
मात्र सात वर्ष का ब्राह्मण कुमार कार्तिक क्षेत्र में तप कर रहे उस ब्राह्मण के पास पहुंँचकर बोलाःहे ब्राह्मणदेव! आप तप क्यों कर रहे हैं?” ब्राह्मणः”हे ऋषिकुमार मैं यह जानने के लिए तप कर रहा हूंँ कि जो अच्छे लोग हैं, सज्जन लोग हैं,वे सहन करते हैं, दुखी रहते हैं और पापी आदमी सुखी रहते हैं। ऐसा क्यों है?”
बालक:”पापी आदमी यदि सुखी है,तो पाप के कारण नहीं, वरन् पिछले जन्म का कोई पुण्य है ,उसके कारण सुखी है। वह अपने पुण्य खत्म कर रहा है।पापी मनुष्य भीतर से तो दुखी ही होता है,भले ही बाहर से सुखी दिखाई दे।अज्ञानी व्यक्ति को ठीक समझ नहीं होती ज्ञान दीक्षा नहीं मिलता इसलिए वह दुखी रहता है। वह धर्म के कारण दुखी नहीं होता, अपितु समझ की कमी के कारण दुखी होता है।समझदार जिज्ञासु को यदि कोई ज्ञानी सतगुरु मिल जाए तो वह नर में से नारायण बन जाए इसमें क्या आश्चर्य है?”
ब्राह्मण:”मैं इतना बूढ़ा हो गया, इतने बरसों से कार्तिक क्षेत्र में तप कर रहा हूंँ। मेरे तप का फल यही है कि तुम्हारे जैसे सात वर्ष के योगी के मुझे दर्शन हो रहे हैं। मैं तुम्हें प्रणाम करता हूंँ।”
बालक- नहीं….नहीं महाराज! आप तो भूदेव हैं। मैं तो बालक हूंँ।मैं आपको प्रणाम करता हूंँ।” उसकी नम्रता देखकर ब्राह्मण और खुश हुआ। तप छोड़कर वह परमात्मा चिंतन में लग गया अब उसे कुछ जानने की इच्छा नहीं रही। जिससे सब कुछ जाना जाता है उसी परमात्मा में विश्रांति पाने लग गया। इस प्रकार नन्दभद्र ब्राह्मण को उत्तर मिल गया।
निःशंक होकर सात दिनों तक निराहार रहकर वह बालक सूर्य मंत्र का ध्यान करता रहा और वही बहूदक तीर्थ में उसने  शरीर त्याग दिया। वहीं बालक दूसरे जन्म में कुषारू पिता एवं मित्रा माता के यहांँ प्रकट हुआ। उसका नाम मैत्रेय पड़ा। इन्होंने व्यास जी के पिता पाराशर जी से “विष्णु पुराण” तथा ‘बृहद पाराशर होरा शास्त्र’ का अध्ययन किया था।
‘पक्षपात रहित अनुभवप्रकाश’ नामक ग्रन्थ में मैत्रेय तथा पाराशर ऋषि का सम्वाद आता है ।कहांँ तो सड़क से गुजर कर नाली में गिरने जा रहा कीड़ा और कहांँ संत के सानिध्य से वह मैत्रेय ऋषि बन गया। सतसंग की बलिहारी है!
इसलिए तुलसीदास जी कहते हैं:-
तात स्वर्ग अपवर्ग सुख
धारिअ तुला एक अंग।
तुल न ताहि सकल मिली
जो सुख लव सतसंग।।
यहांँ एक शंका हो सकती है कि वह कीड़ा ही मैत्रेय ऋषि क्यों नहीं बन गया?
अरे भाई!यदि आप पहली कक्षा के विद्यार्थी हो और आपको एम ए. में बिठाया जाए तो क्या आप पास हो सकते हो…? नहीं…। दूसरी, तीसरी, चौथी..,दसवीं…,बारवीं..,बी ए आदि पास करके ही आप एम ए. में प्रवेश कर सकते हो।
किसी चौकीदार पर कोई प्रधानमंत्री अत्यधिक प्रसन्न हो जाए तब भी वह उसे सीधा कलेक्टर जिलाधीश नहीं बना सकता। ऐसे ही नाली में रहने वाला कीड़ा सीधा मनुष्य तो नहीं हो सकता बल्कि विभिन्न योनियों को पार करके ही मनुष्य बन सकता है। हांँ इतना अवश्य है कि संत कृपा से उसका मार्ग छोटा हो सकता है। संत समागम की, संत पुरुषों से संग की महिमा का कहांँ तक वर्णन करें, कैसे बयान करें?एक सामान्य कीड़ा उनके सतसंग को पाकर महान ऋषि बन सकता है तो फिर यदि मानव को किसी सद्गुरु का सानिध्य मिल जाये…
श्री गुरु महाराज जी के वचना अनुसार यानि आज्ञा में चल पड़े तो मुक्ति का अनुभव करके जीवन मुक्त भी बन सकता है।



एक बार शुकदेव जी के पिता भगवान वेदव्यास जी महाराज कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक कीड़ा बड़ी तेजी से सड़क पार कर रहा था। वेदव्यास जी ने अपनी योग शक्ति देते हुए उससे पूछा:-“इतनी जल्दी सड़क क्यों पार कर रहा है?क्या तुझे किसी काम से जाना है। तू तो नाली का कीड़ा है। इस नाली को छोड़कर दूसरी नाली में ही तो जाना है, फिर इतनी तेजी से क्यों भाग रहा है?” कीड़ा बोला-“बाबाजी बैलगाड़ी आ रही है। बैलों के गले में बँधे घुँघरु तथा बैलगाड़ी की पहियों की आवाज में सुन रहा हूंँ। यदि मैं धीरे-धीरे सड़क पार कर करुँगा तो बैलगाड़ी आकर मुझे कुचल डालेगी।” वेदव्यासजी:”कुचलने दे।कीड़े की योनि में जी कर भी क्या करना?” कीड़ाः”महर्षि!प्राणी जिस शरीर में होता है उसको उसमें भी ममता होती है।अनेक प्राणी नाना प्रकार के कष्टों को सहते हुए भी मरना नहीं चाहते।” वेदव्यास जीः” बैलगाड़ी आ जाए और तू मर जाए तो घबराना मत। मैं तुझे योगशक्ति से महान बनाऊँगा। जब तक ब्राह्मण शरीर में न पहुंँचा दूंँ, अन्य सभी योनियों से शीघ्र छुटकारा दिलाता रहूंँगा।” उस कीड़े ने बात मान ली और बीच रास्ते पर रुक गया और मर गया। फिर वेदव्यास जी की कृपा से वह क्रमशःकौआ,सियार आदि योनियों में जब-जब भी उत्पन्न हुआ,वेदव्यास जी ने जाकर उसे पूर्व जन्म का स्मरण दिला दिया। इस तरह क्रमशः मृग,पक्षी, जातियों में जन्म लेता हुआ क्षत्रिय जाति में उत्पन्न हुआ।उसे वहांँ भी वेदव्यास जी दर्शन दिये। थोड़े दिनों में रणभूमि में शरीर त्याग कर उसने ब्राह्मण के घर में जन्म लिया। भगवान वेदव्यास जी ने उसे पाँच वर्ष की उम्र में आत्मज्ञान की दीक्षा दी। जिसका ध्यान-सुमिरण, करते-करते उसे आनन्द आने लगा।उसकी बुद्धि बड़ी विलक्षण होने पर वेद, शास्त्र व धर्म का रहस्य समझ में आ गया। सात वर्ष की आयु में वेदव्यास जी ने उसे कहाः”कार्तिक क्षेत्र में कई वर्षों से एक ब्राह्मण नंदभद्र तपस्या कर रहा है।तुम जाकर उसकी शंका का समाधान करो।” मात्र सात वर्ष का ब्राह्मण कुमार कार्तिक क्षेत्र में तप कर रहे उस ब्राह्मण के पास पहुंँचकर बोलाःहे ब्राह्मणदेव! आप तप क्यों कर रहे हैं?” ब्राह्मणः”हे ऋषिकुमार मैं यह जानने के लिए तप कर रहा हूंँ कि जो अच्छे लोग हैं, सज्जन लोग हैं,वे सहन करते हैं, दुखी रहते हैं और पापी आदमी सुखी रहते हैं। ऐसा क्यों है?” बालक:”पापी आदमी यदि सुखी है,तो पाप के कारण नहीं, वरन् पिछले जन्म का कोई पुण्य है ,उसके कारण सुखी है। वह अपने पुण्य खत्म कर रहा है।पापी मनुष्य भीतर से तो दुखी ही होता है,भले ही बाहर से सुखी दिखाई दे।अज्ञानी व्यक्ति को ठीक समझ नहीं होती ज्ञान दीक्षा नहीं मिलता इसलिए वह दुखी रहता है। वह धर्म के कारण दुखी नहीं होता, अपितु समझ की कमी के कारण दुखी होता है।समझदार जिज्ञासु को यदि कोई ज्ञानी सतगुरु मिल जाए तो वह नर में से नारायण बन जाए इसमें क्या आश्चर्य है?” ब्राह्मण:”मैं इतना बूढ़ा हो गया, इतने बरसों से कार्तिक क्षेत्र में तप कर रहा हूंँ। मेरे तप का फल यही है कि तुम्हारे जैसे सात वर्ष के योगी के मुझे दर्शन हो रहे हैं। मैं तुम्हें प्रणाम करता हूंँ।” बालक- नहीं….नहीं महाराज! आप तो भूदेव हैं। मैं तो बालक हूंँ।मैं आपको प्रणाम करता हूंँ।” उसकी नम्रता देखकर ब्राह्मण और खुश हुआ। तप छोड़कर वह परमात्मा चिंतन में लग गया अब उसे कुछ जानने की इच्छा नहीं रही। जिससे सब कुछ जाना जाता है उसी परमात्मा में विश्रांति पाने लग गया। इस प्रकार नन्दभद्र ब्राह्मण को उत्तर मिल गया। निःशंक होकर सात दिनों तक निराहार रहकर वह बालक सूर्य मंत्र का ध्यान करता रहा और वही बहूदक तीर्थ में उसने  शरीर त्याग दिया। वहीं बालक दूसरे जन्म में कुषारू पिता एवं मित्रा माता के यहांँ प्रकट हुआ। उसका नाम मैत्रेय पड़ा। इन्होंने व्यास जी के पिता पाराशर जी से “विष्णु पुराण” तथा ‘बृहद पाराशर होरा शास्त्र’ का अध्ययन किया था। ‘पक्षपात रहित अनुभवप्रकाश’ नामक ग्रन्थ में मैत्रेय तथा पाराशर ऋषि का सम्वाद आता है ।कहांँ तो सड़क से गुजर कर नाली में गिरने जा रहा कीड़ा और कहांँ संत के सानिध्य से वह मैत्रेय ऋषि बन गया। सतसंग की बलिहारी है! इसलिए तुलसीदास जी कहते हैं:- तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धारिअ तुला एक अंग। तुल न ताहि सकल मिली जो सुख लव सतसंग।। यहांँ एक शंका हो सकती है कि वह कीड़ा ही मैत्रेय ऋषि क्यों नहीं बन गया? अरे भाई!यदि आप पहली कक्षा के विद्यार्थी हो और आपको एम ए. में बिठाया जाए तो क्या आप पास हो सकते हो…? नहीं…। दूसरी, तीसरी, चौथी..,दसवीं…,बारवीं..,बी ए आदि पास करके ही आप एम ए. में प्रवेश कर सकते हो। किसी चौकीदार पर कोई प्रधानमंत्री अत्यधिक प्रसन्न हो जाए तब भी वह उसे सीधा कलेक्टर जिलाधीश नहीं बना सकता। ऐसे ही नाली में रहने वाला कीड़ा सीधा मनुष्य तो नहीं हो सकता बल्कि विभिन्न योनियों को पार करके ही मनुष्य बन सकता है। हांँ इतना अवश्य है कि संत कृपा से उसका मार्ग छोटा हो सकता है। संत समागम की, संत पुरुषों से संग की महिमा का कहांँ तक वर्णन करें, कैसे बयान करें?एक सामान्य कीड़ा उनके सतसंग को पाकर महान ऋषि बन सकता है तो फिर यदि मानव को किसी सद्गुरु का सानिध्य मिल जाये… श्री गुरु महाराज जी के वचना अनुसार यानि आज्ञा में चल पड़े तो मुक्ति का अनुभव करके जीवन मुक्त भी बन सकता है।

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *