यदि दुख का स्वाद आनंददाई हो जाय तो सुख की लालसा ही नही होगी
दुःख में सुख की खोज हमारी यात्रा यंहा तक है एक दिन भक्त भक्ति करते करते दुःख को पढना सीख जाता है दुःख दुःख नही रहता है।
दुःख को जब साधक पढता है तब वह असली आनंद की खोज कर पाता है। दुःख में बाहरी दरवाजे सब अपने आप बन्द हो जाते हैं दरवाजे बन्द करके प्रभु प्राण नाथ से लो लगाने का मार्ग है। दुख में साथी किनारा कर जाते हैं।
खान पान शुद्ध हो जाता है बार बार प्रभु की पुकार लगाते हैं प्रार्थना करते हैं मस्तक नवाते हैं मन ही मन परमात्मा के नाम का चिन्तन करते हैं। नाम भगवान रक्षक बन जाते हैं।
कङा परिश्रम करते हुए सभी इच्छाएं शान्त हो जाती है ऐसे में नव निर्माण होता है मन एक बार कार्य करने लगता है तब करता ही जाता है कठिन परिश्रम सफलता की कुंजी है यही सच्चे रूप में आनंद है। आनन्द खान पान मे नही जीवन को समझने में आनंद है। जय श्री राम अनीता गर्ग
If the taste of sorrow becomes pleasurable then there will be no desire for happiness. Searching for happiness in sorrow, our journey is till here, one day the devotee learns to read the sorrow while doing devotion, sorrow does not remain sorrow.
When a seeker studies sorrow then he is able to discover real happiness. In sorrow, all the external doors close automatically. Closing the doors is the way to pray to Lord Pranath. Friends move aside in sorrow.
The food and drinks become pure, we call upon God again and again, we pray, we bow our heads and we think of the name of God in our mind. Name God becomes protector.
By working hard, all the desires are calmed, in such a situation a new creation takes place, once the mind starts working then it keeps on working, hard work is the key to success, this is happiness in true form. Happiness is not in eating and drinking, happiness is in understanding life. Jai Shri Ram Anita Garg