श्रीरामजी द्वारा श्रीरामेश्वरमकी स्थापना

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🚩जय श्री सीताराम जी की🚩
आप सभी सीताराम जी के भक्तों को प्रणाम

श्री रामचरितमानस लंका काण्ड
नल-नील द्वारा पुल बाँधना,
श्रीरामजी द्वारा श्रीरामेश्वरमकी स्थापना

सैल बिसाल आनि कपि देहीं ।
कंदुक इव नल नील ते लेहीं ।।
देखि सेतु अति सुन्दर रचना ।
बिहसि कृपानिधि बोले बचना।।1।।

भावार्थ ÷
वानर बड़े-बड़े पहाड़ ला- लाकर देते हैं और नल-नील उन्हे गेंदकी तरह ले लेते हैं । सेतुकी अत्यन्त सुन्दर रचना देखकर कृपासिन्धु श्रीरामजी हँसकर बचन बोले ।।1।।

परम रम्य उत्तम यह धरनी ।
महिमा अमित जाइ नहिं बरनी ।।
करिहउँ इहाँ संभु स्थापना ।
मोरे हृदयँ परम कलपना ।।2।।

भावार्थ ÷
यह ( यहाँकी ) भूमि परम रमणीय और उत्तम है । इसकी असीम महिमा वर्णन नहीं की जा सकती । मैं यहाँ शिवजीकी स्थापना करूँगा । मेरे हृदयमें यह महान संकल्प है ।।2।।

सुनि कपीस बहु दूत पठाए।
मुनिबर सकल बोलि लै आए।।
लिंग थापि बिधिवत कर पूजा ।
सिव समान प्रिय मोहि न दूजा ।।3।।

भावार्थ ÷
श्रीरामजीके बचन सुनकर वानरराज सुग्रीवने बहुतसे दूत भेजे , जो सब श्रेष्ठ मुनियोंको बुलाकर ले आये । शिवलिंगकीस्थापना करके बिधि पूर्वक उसका पूजन किया । ( फिर भगवान् बोले ) शिवजीके समान मुझको दूसरा कोई प्रिय नहीं है ।।3।।

सिव द्रोही मम भगत कहावा ।
सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा।।
संकर बिमुख भगति चह मोरी ।
सो नारिकी मूढ़ मति थोरी ।।4।।

भावार्थ ÷
जो शिवसे द्रोह रखता है और मेरा भक्त कहलाता है , वह मनुष्य स्वप्नमें भी मुझे नहीं पाता । शंकरजीसे बिमुख होकर ( बिरोध करके ) जो मेरी भक्ति चाहता है , वह नरकगामी, मूर्ख और अल्पबुद्धि है ।।4।।

दोहा ÷
संकरप्रिय मम द्रोही ,
सिव द्रोही मम दास ।
ते नर करहिं कलप भरि,
घोर नरक महुँ बास ।।2।।

भावार्थ ÷
जिनको शंकरजी प्रिय हैं ,।परन्तु जो मेरे द्रोही हैं , एवं जो शिवजीके द्रोही हैं और मेरे दास ( बनना चाहते ) हैं , वे मनुष्य कल्पभर घोर नरकमें निवास करते हैं ।।2।।

जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं ।
ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं ।।
जो गंगा जलु आनि चढ़ाइहिं।
सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहिं ।।1।।

भावार्थ ÷
जो मनुष्य ( मेरे स्थापित किये हुए इन ) रामेश्वरजीका दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोकको जायँगे । और जो गंगाजल लाकर इनपर चढ़ावेगा, वह मनुष्य साजुज्य मुक्ति पावेगा ( अर्थात् मेरे साथ एक हो जायेगा ) ।।1।।

होइ अकाम जो छल तजि सेइहिं ।
भगति मोरि तेहिं संकर देइहिं ।।
मम कृत सेतु जो दरसनु करिही ।
सो बिनु श्रम भवसागर तरिही।।2।।

भावार्थ ÷
जो छल छोड़कर और निष्काम होकर श्रीरामेश्वरजीकी सेवा करेंगे, उन्हें शंकरजी मेरी भक्ति देंगे । और जो मेरे बनाये सेतुका दर्शन करेगा, वह बिना ही परिश्रम संसाररूपी समुद्रसे तर जायेगा ।।2।।

राम बचन सब के जिय भाए।
मुनिबर निज निज आश्रम आए।।
गिरिजा रघुपति कै यह रीती ।
संतत करहिं प्रनत पर प्रीती ।।3।।

भावार्थ ÷
श्रीरामजीके वचन सबके मनको अच्छे लगे । तदनन्तर वे श्रेष्ठ मुनि अपने-अपने आश्रमोंको लौट आये । ( शिवजी कहते हैं ) हे पार्वती! श्रीरघुनाथजीकी यह रीति है कि वे शरणागतपर सदा प्रीति करते हैं ।।3।।

बाँधा सेतु नील नल नागर ।
राम कृपाँ जसु भयउ उजागर ।।
बूड़हिं आनहि बोरहि जेई ।
भए उपल बोहित सम तेई ।।4।।

भावार्थ ÷
चतुर नल और नीलने सेतु बाँधा । श्रीरामजीकी कृपासे उनका यह ( उज्ज्वल ) यश सर्वत्र फैल गया । जो पत्थर आप डूबते हैं और दूसरोंको डुबा देते हैं , वे ही जहाजके समान ( स्वयं तैरनेवाले और दूसरोंको पार ले जानेवाले ) हो गये ।।4।।

महिमा यह न जलधि कइ बरनी ।
पाहन गुन न कपिन्ह कइ करनी ।।5।।

भावार्थ ÷
यह न तो समुद्रकी महिमा वर्णन की गयी है , न पत्थरोंका गुण है और न वानरोंकी ही कोई करामात है ।।5।।

दोहा ÷
श्री रघुबीर प्रताप ते ,
सिन्धु तरे पाषान ।
ते मतिमंद जे राम तजि,
भजहिं जाइ प्रभु आन ।।3।।

भावार्थ ÷
श्रीरघुवीरके प्रतापसे पत्थर भी समुद्र में तैर गये । ऐसे श्रीरामजीको छोड़कर जो किसी दूसरे स्वामीको जाकर भजते हैं वे ( निश्चय ही ) मंदबुद्धि हैं ।।3।।
🚩जय श्री सीताराम जी की🚩



🚩Jai Shri Sitaram ji🚩 Salutations to all you devotees of Sitaram ji. Shri Ramcharitmanas Lanka incident Building a bridge through tap-neel, Establishment of Shri Rameshwaram by Shri Ramji

Sal bisal aani kapi dehi. Kanduk and tap neel te lehi. See, the bridge is a very beautiful creation. Bihasi Kripanidhi said, refrain..1..

meaning ÷ The monkeys bring huge mountains and Nal-Nil takes them like a ball. Seeing the very beautiful structure of the bridge, Sri Ramji, blessed with grace, said with a smile: 1.

This earth is very beautiful and beautiful. Mahima Amit Jai Nahi Barni. Let us establish Sambhu here. My heart’s ultimate imagination.2.

meaning ÷ This land is very beautiful and beautiful. Its immense glory cannot be described. I will establish Lord Shiva here. This is a great resolution in my heart.2.

Listen Kapis sent many messengers. Munibar came with a gross quote. Worship after applying the linga in the prescribed manner. There is no one else who is equally dear to me.3.

meaning ÷ Hearing the words of Shri Ramji, the monkey king Sugriva sent many messengers, who called all the best sages and brought them. After installing Shivalinga, he worshiped it properly. (Then God said) There is no one else as dear to me as Lord Shiva.

Siv drohi mam bhagat kahawa. So I am a man of dreams, I am not able to seduce you. Sankar Bimukh Bhagti Chah Mori. So the woman became a fool. 4.

meaning ÷ The person who is disloyal to Shiva and calls himself my devotee does not find me even in his dreams. The one who wants to worship me by turning away from Shankarji, is hell-bound, foolish and short-witted. 4.

Doha ÷ Sankarpriya mam drohi, Siv drohi mam das. I will do this throughout my life, I am in a severe hell.2.

meaning ÷ Those who are dear to Lord Shankar, but those who are my traitors, and those who are traitors to Lord Shiva and want to become my slaves, those people reside in severe hell for the entire Kalpa. 2.

J Rameshwar Darsanu Karihin. Te tanu taji mam lok sidharihihin. The one who offers water to Ganga. So Sajujya Mukti Nar Paihin..1..

meaning ÷ The people who visit Rameshwarji (established by me) will leave their body and go to my world. And the person who brings Ganga water and offers it on them will attain liberation (that is, he will become one with me). 1.

There is no work which is done by deceit. Bhagti Mori Tehi Sankar Dehi. The bridge built by my mother, which I can see. So without hard work the ocean of life becomes clear.2.

meaning ÷ Shankarji will give me devotion to those who will give up deceit and serve Shri Rameshwarji selflessly. And whoever sees the bridge built by me will cross the ocean of the world without any effort.2.

May everyone live by the words of Ram. Munibar came to his own ashram. This is the tradition of Girija Raghupati. I will continue to give birth to love for each other..3.

meaning ÷ Everyone liked Shri Ramji’s words. Thereafter those great sages returned to their respective ashrams. (Shivji says) O Parvati! It is the tradition of Shri Raghunathji that he always loves those who surrender to him.3.

Bandha Setu Neel Nal Nagar. Ram kripan jasu bhayau ujagar ।। Boodhin aanhi borhi jei. Bhe upal bohit sam tei ।।4।।

meaning ÷ Clever Nala and Nila built a bridge. By the grace of Shri Ramji, his (bright) fame spread everywhere. The very stones which you sink and cause others to sink, have become like ships (which float themselves and carry others across). 4.

Glory does not rain this quickly. 5.

meaning ÷ Neither the glory of the ocean, nor the qualities of stones, nor any feat of monkeys has been described in this.5.

Doha ÷ Mr. Raghubir Pratap, Stones in Sindhu. Te Matimand Je Ram Taji, Bhajahin Jai Prabhu Aaan..3..

meaning ÷ Due to the greatness of Shri Raghuveer even the stones floated in the sea. Those who leave Shri Ramji and worship any other lord are (definitely) retarded. 3. 🚩Jai Shri Sitaram ji🚩

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