हिन्दू धर्म हमारा है धर्म की रक्षा हमारा कर्तव्य है। हिन्दू धर्म को हम कैसे बचाए। धर्म की रक्षा के लिए हमें हिन्दू संस्कृति का अध्ययन करना चाहिए। हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए पहले हमें अपने अन्दर हिन्दुत्व को स्थापित करना है। हिन्दुत्व क्या है। हिन्दू धर्म के गुण हिन्दुत्व है। यदि एक व्यक्ति अपने आप में हिन्दुत्व को अपनाता है। तब एक एक से समाज बनता है। हमे हिन्दूत्व के लिए अपने आप का निरिक्षण करना है। हम कुछ समय मनन करे क्या मेरे अन्दर हिन्दूत्व जीवीत है। क्या मै पुरण रूप से हिन्दू हूं। सनातन सस्कृति में व्यक्ति पहले स्वयं के अन्दर शुद्ध पवित्र विचार को जागृत करता है। हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए हमे अपने अन्दर की कटुता को मिटा कर घर में सुख शांति प्रेम बना कर रखे। हमारे विचार में पवित्रता सहनशीलता, नरमता दया भाव प्रेम समर्पित भाव होगे तब घर के एक एक सदस्य के विचारों में परिवर्तन होगा। आज हमारे पास सबकुछ है फिर भी हम शान्त नहीं है। क्योंकि हमने हमारे अन्दर के अध्यात्मवाद से दृष्टि हटाकर बाहरी पुजा पाठ के माध्यम से अधिक सुविधाएं मन बहलाव को ही पुजा समझ बैठे हैं। एक हिन्दू हर परिस्थिति से जुझने के लिए हर क्षण तैयार रहता था। वह भगवान को भजता है भगवान को पुकारता है भगवान के चरणों में नतमस्तक है। आज हमारा उद्देश्य सुख के साधन ढुढने से है। अधिक सुख ने हमारी काया और मन को मटमैला बना दिया है। हमने अन्दर की सहनशीलता ओर धर्य मेहनत के स्थान पर इमेज हमें अधिक प्यारी है। सेवा भाव के स्थान पर मै और मेरापन बङा है हम ग्रूप का पठन पाठन सीख गए हैं। हम मन को भक्ति में रंगेगे तब बात बने। हम राम कृष्ण हरि के भावो से ओतप्रोत हो। हम भगवान राम को शुद्धता पुरवक भजेगे तब हमारे धर्म की रक्षा हो सकती है। हमारे घरो में प्रातः काल भजन गुंजते थे। मात पिता घर के कार्य करते हुए एक दो घंटे स्तुति और प्रार्थनाएं गाते रहते थे। उन प्रार्थनाओ में दिखावट न होकर समर्पित भाव होता था। हम बाहर से सब्जी खरीद कर लाते तब मार्ग में अपने परिचित को वे भाव ही समाज में बांटते थे। वस्त्र और ऊपरी दिखावट के समान हमारी पहचान बन गई है। हम भगवान को भौतिक साधनों से रिझाना चाहते हैं भगवान जगत के पालन हार है। भगवान भक्ती प्रार्थना भाव पर रिझते है। भगवान को रिझाना मात पिता की सेवा में हिन्दू संस्कृति छूपी हुई है। भगवान राम राजसिंहासन को तिनके की तरह त्याग कर वन गमनं करते हैं दशरथ जी के परलोक गमन के बाद वशिष्ठ जी भरत जी को अयोध्या का राज सम्भालने को कहते हैं भरत जी के लिए राजसिंहासन शुल की तरह दिल में चुभता है और भरत जी त्याग देते हैं। जय श्री राम अनीता गर्ग
हिन्दू धर्म हमारा है धर्म की रक्षा हमारा कर्तव्य है। हिन्दू धर्म को हम कैसे बचाए। धर्म की रक्षा के लिए हमें हिन्दू संस्कृति का अध्ययन करना चाहिए। हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए पहले हमें अपने अन्दर हिन्दुत्व को स्थापित करना है। हिन्दुत्व क्या है। हिन्दू धर्म के गुण हिन्दुत्व है। यदि एक व्यक्ति अपने आप में हिन्दुत्व को अपनाता है। तब एक एक से समाज बनता है। हमे हिन्दूत्व के लिए अपने आप का निरिक्षण करना है। हम कुछ समय मनन करे क्या मेरे अन्दर हिन्दूत्व जीवीत है। क्या मै पुरण रूप से हिन्दू हूं। सनातन सस्कृति में व्यक्ति पहले स्वयं के अन्दर शुद्ध पवित्र विचार को जागृत करता है। हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए हमे अपने अन्दर की कटुता को मिटा कर घर में सुख शांति प्रेम बना कर रखे। हमारे विचार में पवित्रता सहनशीलता, नरमता दया भाव प्रेम समर्पित भाव होगे तब घर के एक एक सदस्य के विचारों में परिवर्तन होगा। आज हमारे पास सबकुछ है फिर भी हम शान्त नहीं है। क्योंकि हमने हमारे अन्दर के अध्यात्मवाद से दृष्टि हटाकर बाहरी पुजा पाठ के माध्यम से अधिक सुविधाएं मन बहलाव को ही पुजा समझ बैठे हैं। एक हिन्दू हर परिस्थिति से जुझने के लिए हर क्षण तैयार रहता था। वह भगवान को भजता है भगवान को पुकारता है भगवान के चरणों में नतमस्तक है। आज हमारा उद्देश्य सुख के साधन ढुढने से है। अधिक सुख ने हमारी काया और मन को मटमैला बना दिया है। हमने अन्दर की सहनशीलता ओर धर्य मेहनत के स्थान पर इमेज हमें अधिक प्यारी है। सेवा भाव के स्थान पर मै और मेरापन बङा है हम ग्रूप का पठन पाठन सीख गए हैं। हम मन को भक्ति में रंगेगे तब बात बने। हम राम कृष्ण हरि के भावो से ओतप्रोत हो। हम भगवान राम को शुद्धता पुरवक भजेगे तब हमारे धर्म की रक्षा हो सकती है। हमारे घरो में प्रातः काल भजन गुंजते थे। मात पिता घर के कार्य करते हुए एक दो घंटे स्तुति और प्रार्थनाएं गाते रहते थे। उन प्रार्थनाओ में दिखावट न होकर समर्पित भाव होता था। हम बाहर से सब्जी खरीद कर लाते तब मार्ग में अपने परिचित को वे भाव ही समाज में बांटते थे। वस्त्र और ऊपरी दिखावट के समान हमारी पहचान बन गई है। हम भगवान को भौतिक साधनों से रिझाना चाहते हैं भगवान जगत के पालन हार है। भगवान भक्ती प्रार्थना भाव पर रिझते है। भगवान को रिझाना मात पिता की सेवा में हिन्दू संस्कृति छूपी हुई है। भगवान राम राजसिंहासन को तिनके की तरह त्याग कर वन गमनं करते हैं दशरथ जी के परलोक गमन के बाद वशिष्ठ जी भरत जी को अयोध्या का राज सम्भालने को कहते हैं भरत जी के लिए राजसिंहासन शुल की तरह दिल में चुभता है और भरत जी त्याग देते हैं। जय श्री राम अनीता गर्ग