हम जननी कहते धरती को।
यह धरती बसने रहने को।
जगत सँवार सनेह दुलारे।
हलधर के हित नेह सँवारे।
हर पल भू फिरती चलती है।
दिन महिने ऋतुएँ बनती है।
जग जननी कहते हम भाई।
यह धरती सन प्रीत मिताई।
सृजन सनेह धरा सन माने।
खनिज अनेक धरा तन जाने।
सत उपकार करे जग माता।
नमन करे कर जोरि विधाता।
फसल किसान अनाज उगाता।
हमसब का बन जीवन दाता।
तरुवर भूधर शोभित नीके।
शशि सम दीपक है रजनी के।
सहज प्रदूषण रोक धरा के।
अवनति रोक अनीति जहां के।
सरल स्वभाव सुधीर सुमाता।
जनम मनुष्य सुकर्मन पाता।
हम धरती ऋण सोच उतारें।
वन तरु सागर नीर विचारें।
सजल रहे नदियाँ, सब सारे।
सरस बहे कविता पद न्यारे।
खग पशु जीव बसे जन प्यारे।
नभ तल भारत देश हमारे।
सुजन स्वदेश प्रदेश विदेशी।
रख निज मात उदार विशेषी।
जग जननी धरणी महतारी।
अविरल भक्ति करे हम सारी।
हसरत एक रहे मन मोरे।
अविचल मात रहे तन तोरे।
नभ सविता शशि मंडल तारा।
सर सरिता नद कूल किनारा।
जनम मिले मनवा तन धारूँ।
नित नित मात सुगीत उचारूँ।
सरस सनेह लिखूँ पद गाऊँ।
सजल सुरीत सुमात सुनाऊँ।