भगवान कहते हैं जो तुम्हे मिला है वो न जाने किस किस की कृपा से मिला है सो जो भी हम पाते हैं उसे अन्य में बांटने का प्रयत्न करो।पढिये अति ज्ञानवर्धक कथा राजा भोज वन में शिकार करने गए लेकिन घूमते हुए अपने सैनिकों से बिछुड़ गए और अकेले पड़ गए।
.वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे। तभी उनके सामने से एक लकड़हारा सिर पर बोझा उठाए गुजरा।
.वह अपनी धुन में मस्त था। उसने राजा भोज को देखा पर प्रणाम करना तो दूर, तुरंत मुंह फेरकर जाने लगा।
.भोज को उसके व्यवहार पर आश्चर्य हुआ। उन्होंने लकड़हारे को रोककर पूछा,
.तुम कौन हो ?
.लकड़हारे ने कहा, मैं अपने मन का राजा हूं।
.भोज ने पूछा, अगर तुम राजा हो तो तुम्हारी आमदनी भी बहुत होगी। कितना कमाते हो ?
.लकड़हारा बोला, मैं छह स्वर्ण मुद्राएं रोज कमाता हूं और आनंद से रहता हूं।
.भोज ने पूछा, तुम इन मुद्राओं को खर्च कैसे करते हो ?
.लकड़हारे ने उत्तर दिया, मैं प्रतिदिन एक मुद्रा अपने ऋणदाता को देता हूं। वह हैं मेरे माता पिता। उन्होंने मुझे पाल पोस कर बड़ा किया, मेरे लिए हर कष्ट सहा।
.दूसरी मुद्रा मैं अपने ग्राहक असामी को देता हूं, वह हैं मेरे बालक। मैं उन्हें यह ऋण इसलिए देता हूं ताकि मेरे बूढ़े हो जाने पर वह मुझे इसे लौटाएं।
.तीसरी मुद्रा मैं अपने मंत्री को देता हूं। भला पत्नी से अच्छा मंत्री कौन हो सकता है, जो राजा को उचित सलाह देता है, सुख दुख का साथी होता है।
.चौथी मुद्रा मैं खजाने में देता हूं।
.पांचवीं मुद्रा का उपयोग स्वयं के खाने पीने पर खर्च करता हूं क्योंकि मैं अथक परिश्रम करता हूं।
.छठी मुद्रा मैं अतिथि सत्कार के लिए सुरक्षित रखता हूं क्योंकि अतिथि कभी भी किसी भी समय आ सकता है। उसका सत्कार करना हमारा परम धर्म है।
.राजा भोज सोचने लगे, मेरे पास तो लाखों मुद्राएं है पर जीवन के आनंद से वंचित हूं।
.लकड़हारा जाने लगा तो बोला, राजन् मैं पहचान गया था कि तुम राजा भोज हो पर मुझे तुमसे क्या सरोकार। भोज दंग रह गए। जय जय श्री राधेकृषणा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।
God says that what you have got, do not know by whose grace you have got it, so whatever we get, try to distribute it among others. and fell alone. .He sat down under a tree and started resting. Just then a woodcutter passed in front of him carrying a load on his head. .He was mesmerizing in his tune. He saw Raja Bhoj, but far from bowing down, he immediately turned his face away. Bhoj was surprised at his behavior. He stopped the woodcutter and asked, .Who are you ? The woodcutter said, I am the king of my mind. Bhoj asked, if you are the king then your income will also be very high. How much do you earn? The woodcutter said, I earn six gold coins daily and live happily. Bhoj asked, how do you spend these currencies? The woodcutter replied, I give one currency every day to my lender. They are my parents. He brought me up and brought me up, endured every hardship for me. .The second currency I give to my client, Asami, is my child. I give this loan to them so that they can return it to me when I am old. .The third currency I give to my minister. Who can be a better minister than a wife, who gives proper advice to the king, is a companion of happiness and sorrow. I give the fourth currency to the treasury. . I spend the fifth currency on my own food and drink because I work tirelessly. .Sixth currency I reserve for hospitality because guest can come at any time. Honoring him is our ultimate religion. King Bhoj started thinking, I have lakhs of coins but I am deprived of the joy of life. When the woodcutter started going, he said, Rajan, I knew that you are King Bhoj, but what do I have to do with you. Bhoj was stunned. Jai Jai Shri Radhekrishna ji. May Shri Hari bless you.