सुखी जीवन

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सुख को प्राप्त करने के लिए हम दौडते रहते हैं। हमे जंहा से भी सुख की प्राप्ति होती है हम उसी मार्ग पर चल देते हैं कुछ समय सुख मिलता है सुख की प्राप्ति ही दुख का कारण है। सुख को प्राप्त करने के लिए अनेक साधन बनाते हैं। सुख के लिए जीवन को ढालते है। हर वह कार्य जिसमें सुख निहित है करते हैं। जीवन सुख दुख के तराजू में घुमता रहता है कभी सुख का पलङा भारी होता है तब हमे लगता है अब जीवन में खुशियां आई है। कुछ दिन में कुछ पल में पलङा बदल जाता है फिर वही सुबह और शाम होती है।
अब प्रश्न उठता है ऐसा क्यों होता है। हम भौतिक सुखों में  जीवन की खूशी  को ढुढते है। भौतिक सुख स्थायी नहीं है। हम भोग मे नींद में संसारिक वस्तुओं में सुख की खोज करते हैं। हम रिस्तेदारो में कोई थोड़ा अपनापन दिखाता है हम खुश हो जाते हैं। कोई थोड़ा टकराता है। दुखी हो जाते हैं ऐसे ही जीवन की संध्या हो जाती है। परमात्मा ने मन को ऐसा बनाया है कोई एक बार खुश होकर बोलता है हम उस के माध्यम से खुश होने के साधन ढुढते है। हम दुसरे में कमीया ढुढते है। ऐसा इसलिए होता है हमारे अन्दर पुराने विचार भरे हुए होते हैं। वे हमे पुरण सुख ग्रहण करने नही देते हैं। हम जन्म मरण के फेर में चक्की की तरह पीसते है। हमारे अन्दर अनेक जन्मों से सुख दुख के संस्कार भरे हुए हैं हमे इन सब कचरे को बाहर निकालना आना चाहिए जब हम अन्दर के कचरे को बाहर निकल देंगे तब हमे वास्तविक सुख शांति प्रेम की प्राप्ति होगी।आन्तरिक आनंद प्रेम और शांति के लिए हमे वह सब कार्य जिनसे क्षणीक आनंद मिलता है। उन्हे कुछ समय छोङ देने चाहिए अपने में स्थित हो जाते हैं। मुख खोलकर बोल कर राम-राम कृष्ण भजना भी छोड़ कर जीभ बैगर हिलाये राम राम कृष्ण कृष्ण भजते हुए अन्तर्मन से गुरु की शरण होते हैं। तब हमारे मुख के द्वार से कुछ भी प्रवेश नहीं करेगा। बाहर का द्वार बन्द होते ही अन्तर्मन के परमानंद का द्वार खुल जाता है। यह आनंद क्षणिक आनंद नहीं है शरीर तत्व से ऊपर उठने का मार्ग है। शरीर नहीं है तब सब कुछ परम तत्व है। यह स्थल से सुक्ष्म की यात्रा है यह परम पिता परमात्मा के सानिध्य को महसुस करने की यात्रा है। हमे मानव जीवन मे स्थायी आनंद की और बढना है। इस यात्रा में कोई नियम नहीं है हम कुछ शरीर से करते हैं तब नियम का बन्धन है। अन्तर्मन में दिल मे परमात्मा का वास है हम दिल के नजदीक आते ही परमतत्व मे लिन होने लगेंगे। हमारी हर किरया प्रभु की बन गई। हमारी दृष्टि अन्दर की ओर मुङ जाती है तब हम अन्तर्मन मे झांक झांक कर देखते हैं अन्दर क्या नाम बज रहा है। भगवान नाम को लेना और नाम ध्वनि अन्दर बजना दो अलग भाव है। नाम को अन्दर बिठाने पर नाम ओर प्रार्थना एक साथ होने लगती हैं। अन्तर्मन के अन्दर प्रार्थना के बोल अपने आप प्रकट होने लगेंगे। जय श्री राम अनीता गर्ग



सुख को प्राप्त करने के लिए हम दौडते रहते हैं। हमे जंहा से भी सुख की प्राप्ति होती है हम उसी मार्ग पर चल देते हैं कुछ समय सुख मिलता है सुख की प्राप्ति ही दुख का कारण है। सुख को प्राप्त करने के लिए अनेक साधन बनाते हैं। सुख के लिए जीवन को ढालते है। हर वह कार्य जिसमें सुख निहित है करते हैं। जीवन सुख दुख के तराजू में घुमता रहता है कभी सुख का पलङा भारी होता है तब हमे लगता है अब जीवन में खुशियां आई है। कुछ दिन में कुछ पल में पलङा बदल जाता है फिर वही सुबह और शाम होती है। अब प्रश्न उठता है ऐसा क्यों होता है। हम भौतिक सुखों में जीवन की खूशी को ढुढते है। भौतिक सुख स्थायी नहीं है। हम भोग मे नींद में संसारिक वस्तुओं में सुख की खोज करते हैं। हम रिस्तेदारो में कोई थोड़ा अपनापन दिखाता है हम खुश हो जाते हैं। कोई थोड़ा टकराता है। दुखी हो जाते हैं ऐसे ही जीवन की संध्या हो जाती है। परमात्मा ने मन को ऐसा बनाया है कोई एक बार खुश होकर बोलता है हम उस के माध्यम से खुश होने के साधन ढुढते है। हम दुसरे में कमीया ढुढते है। ऐसा इसलिए होता है हमारे अन्दर पुराने विचार भरे हुए होते हैं। वे हमे पुरण सुख ग्रहण करने नही देते हैं। हम जन्म मरण के फेर में चक्की की तरह पीसते है। हमारे अन्दर अनेक जन्मों से सुख दुख के संस्कार भरे हुए हैं हमे इन सब कचरे को बाहर निकालना आना चाहिए जब हम अन्दर के कचरे को बाहर निकल देंगे तब हमे वास्तविक सुख शांति प्रेम की प्राप्ति होगी।आन्तरिक आनंद प्रेम और शांति के लिए हमे वह सब कार्य जिनसे क्षणीक आनंद मिलता है। उन्हे कुछ समय छोङ देने चाहिए अपने में स्थित हो जाते हैं। मुख खोलकर बोल कर राम-राम कृष्ण भजना भी छोड़ कर जीभ बैगर हिलाये राम राम कृष्ण कृष्ण भजते हुए अन्तर्मन से गुरु की शरण होते हैं। तब हमारे मुख के द्वार से कुछ भी प्रवेश नहीं करेगा। बाहर का द्वार बन्द होते ही अन्तर्मन के परमानंद का द्वार खुल जाता है। यह आनंद क्षणिक आनंद नहीं है शरीर तत्व से ऊपर उठने का मार्ग है। शरीर नहीं है तब सब कुछ परम तत्व है। यह स्थल से सुक्ष्म की यात्रा है यह परम पिता परमात्मा के सानिध्य को महसुस करने की यात्रा है। हमे मानव जीवन मे स्थायी आनंद की और बढना है। इस यात्रा में कोई नियम नहीं है हम कुछ शरीर से करते हैं तब नियम का बन्धन है। अन्तर्मन में दिल मे परमात्मा का वास है हम दिल के नजदीक आते ही परमतत्व मे लिन होने लगेंगे। हमारी हर किरया प्रभु की बन गई। हमारी दृष्टि अन्दर की ओर मुङ जाती है तब हम अन्तर्मन मे झांक झांक कर देखते हैं अन्दर क्या नाम बज रहा है। भगवान नाम को लेना और नाम ध्वनि अन्दर बजना दो अलग भाव है। नाम को अन्दर बिठाने पर नाम ओर प्रार्थना एक साथ होने लगती हैं। अन्तर्मन के अन्दर प्रार्थना के बोल अपने आप प्रकट होने लगेंगे। जय श्री राम अनीता गर्ग

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