पथ पाकर जैसे जल दौड़ पड़ता है, वैसे ही मीराकी भाव-सरिता भी शब्दोंमें ढलकर पदोंके रूपमें उद्दाम होकर बह चली।
मेरे नयना निपट बंक छवि अटके।
देखत रूप मदन मोहन को पियत पीयूख न भटके।
बारिज भवाँ अलक टेढ़ी मनो अति सुगन्ध रस अटके।।
टेढ़ी कटि टेढ़ी कर मुरली टेढ़ी पाग लर लटके।
मीरा प्रभु के रूप लुभानी गिरधर नागर नट के।
मीराको प्रसन्न देखकर मिथुला समीप आयी और उसने गलीचेको थोड़ा समेटते हुए सम्मानपूर्वक घुटनोंके बल बैठकर धीमे स्वरमें कहा– “जीमण पधराऊँ (भोजन लाऊँ)?”
‘अहा मिथुला, अभी ठहर जा अभी प्रभुको रिझा लेने दे। कौन जाने ये परम स्वतंत्र कब निकल भागें। आज प्रभु पधारे हैं तो यहीं क्यों न रख लें? किसी प्रकार जाने न दें-
ऐसो प्रभु जाण न दीजे हो।
तन मन धन करि बारणे हिरदे धरि लीजे हो।।
आव सखी! मुख देखिये नैणा रस पीजै हो।
जिण जिण बिधि रीझे हरि सोई कीजे हो।।
सुन्दर श्याम सुहावणा मुख देख्याँ जीजे हो।
मीरा के प्रभु श्यामजी बड़भागण रीझे हो।
मीरा जैसे धन्यातिधन्य हो उठी। लीला चिन्तनके द्वार खुल गये और अनुभव की अभिव्यक्ति के भी। दिनानुदिन उसके भजन-पूजनका चाव बढ़ने लगा। वह नाना भाँतिसे गिरधरका श्रृंगार करती कभी फूलोंसे, कभी मोतियोंसे, कभी जरीके जगमगाते वस्त्रोंसे और कभी पतले हल्के मलमलके सादे वस्त्रोंसे। भाँति-भाँति की भोजन सामग्री बनवाकर भोग लगाती, आरती करती और गा-नाचकर उन्हें रिझाती। शीतकाल की रात में उठ-उठ करके उन्हें ओढ़ाती और गर्मियों में रातको जागकर पंखा झलती। तीसरे-चौथे दिन कोई-न-कोई उत्सव होता ही रहता।
सगाई की चर्चा…..
मीराकी भक्ति और भजनमें बढ़ती रुचि देखकर रनिवासमें चिन्ता व्याप्त हो गयी। एक दिन वीरमदेवजी से उनकी पत्नी राणावतजी (श्रीगिरिजाजी) ने कहा ‘मीरा दस वर्षकी हो गयी है। इसकी सगाई-सम्बन्धकी चिन्ता नहीं करते आप?’
‘एक-दो बार विचार तो हुआ था, किन्तु कौन जाने दाता हुकम पसन्द करें कि नहीं?’
‘क्या फरमाते हैं आप? अन्नदाता हुकम पसंद न करें, ऐसा भी कहीं हो सकता है? क्या उनकी और पोतियों का विवाह नहीं हुआ?’
‘हुआ क्यों नहीं, पर वे मीरा नहीं थीं राणावतजी! उसकी जैसी शिक्षा-दीक्षा हुई हैं और जैसी उसकी बुद्धि है, उसके अनुसार वह साधारण बालिका नहीं है।’
‘साधारण हो या असाधारण, विवाह तो करना ही पड़ेगा न?’ ‘रतनसिंहकी भी तो रुचि होगी, उससे तो कहो।’
‘आज आपको क्या हुआ है? आपके रहते वे बेटी की सगाई करेंगे? बिचले लालजीसा की बेटी का सम्बन्ध उन्होंने किया था?’
‘नहीं, पर रायसल ने किसीसे कहलवाया था कि लक्ष्मी के सम्बन्धमें इस लड़केका भी विचार कर लिया जाय। इसी प्रकार यदि रतनसिंहके भी ध्यानमें कोई पात्र हो तो कहलवा दे, यही अभिप्राय था मेरा।’
‘एक पात्र तो मेरे ध्यानमें भी हैं।’
‘तुम्हारे! बताओ कौन है वह, हम भी जान लें?’
‘मेरे भतीजे भोजराज।’
‘क्या कहती हो! मेदपाटका महाराजकुमार! हँसी तो नहीं कर रही हो न?’
‘नहीं, सत्य ही कह रही हूँ।’
‘वे करेंगे यहाँ सम्बन्ध ? मेड़ता का राज्य है ही कितना? फिर मीरा तो छुटभाई की बेटी है। वैसे मीरा है उसी घर के योग्य। अँधेरे घरका दीपक है वह।’
‘वाह, करेंगे क्यों नहीं? इसी अदने से मेड़ते में उन्होंने अपनी बहिन दी है। ले जाने में क्या आपत्ति होगी भला?’
‘उन्होंने बहिन दी, सो तो हमारे भाग खुल गये न?’– वीरमदेवने मुस्कराकर पत्नीके कंधेपर हाथ रखा-
-‘मेवाड़ की बेटियाँ पट्टमहिषी का भाग लिखाकर आती हैं। भला हमारी बेटियों की तुमसे क्या समता है?’
‘अहा, बहुत ईर्ष्या है आपको मेवाड़ की बेटियों से? यदि यह छुट भाईकी बेटी मेदपाटकी स्वामिनी बन जाय तो?’
‘सच कह रही हो न?”
‘सरकारकी शपथ!’
गिरजाजी ने पतिकी छाती पर हाथ रखते हुए कहा ‘करना-कराना तो सब चारभुजानाथ और एकलिंगनाथके हाथ है, पर प्रयत्न करना मेरा काम है, सो मैं करूँगी, किन्तु आप इतने आशंकित क्यों हैं? अरे, इन रणबंका राठौड़ों में भी दूदावतों की धीयड़ियोंको कौन वापस फेरेगा? जिनके रक्तमें वीरता और भक्ति समान रूपसे समायी हुई है।’
‘तब और कहीं कुछ खोज-ढूँढ़ नहीं करनी है। तुम दीवानजी (चित्तौड़ अर्थात मेवाड़ के शासक जोकि अपने आप को एकलिंगनाथ जी का दीवान मानते थे) से पूछ लेना।’
मीराकी सगाई मेवाड़के महाराज कुँवर से होनेकी चर्चा रनिवासमें चलने लगी। मीरा ने भी सुना। वह पत्थर की मूर्ति की भाँति स्थिर हो गयी थोड़ी देर तक। वह सोचने लगी-
‘भाबूने ही तो मुझे बताया था तेरा वर गिरधर गोपाल है। आज उन्ही भाबू के हिये में मेवाड़ के महाराजकुमार के नाम से जब हरख (हर्ष) समा नहीं रहा है तब और किससे पूछूँ ?’ वह धीमे पदों से दूदाजी के महलकी ओर चली।
पलंगपर बैठे दूदाजी जप कर रहे थे। मीरा जाकर पलंगके पास खड़ी हो गयी। उन्होंने दृष्टि उठाकर उसकी ओर देखा-
‘देहलता मानो रूपके भार से दबकर कसमसा रही हो, साँचेमें ढली मूर्ति अथवा कि लक्ष्मी ही बालिकाका रूप धा करके खड़ी हो। नहीं, नहीं, दबनेसे लता कुम्हला जाती है, मूर्तिमें प्राण नहीं होते। और लक्ष्मीमें स्थिरता नहीं रहती। यह तो यही है…. यही है।’
एकाएक वे मन-ही-मन चौंक गये—’क्या बात है? आज मीरा प्रसन्न नहीं दिखायी देती। सदाकी भाँति उछल करके पलंगपर नहीं चढ़ गयी?’
उन्होंने मालाके सुमेरुको आँखों से लगाकर गोमुखी से हाथ बाहर निकाला—’क्या बात है। बेटा! कुछ कहना है तो कहो?’
‘बाबोसा’
‘हाँ, हाँ, कहो।’– उन्होंने स्नेहसे उसके सिरपर हाथ रखा।
‘एक बेटीके कितने बींद होते हैं?”
दूदाजी हँस पड़े—’क्यों पूछती हो बेटी! वैसे एक बेटी के एक ही बींद होता है। एक बींदके बहुत-सी बीनणियाँ तो हो सकती हैं। जैसे तेरे चार बड़ी माँ हैं, किन्तु किसी भी तरह एक कन्याके एक से अधिक वर नहीं होते।’
‘किसी भी तरह एकसे अधिक नहीं हो सकते?’– मीराने थोड़ा सोचकर फिर पूछा।
‘बात क्या है बेटा! ऐसा नहीं होता, यह पाप है। तू अभी समझती नहीं, किन्तु नारीके ऊपर रक्तकी शुद्धताका भार है। पितरोंको तारनेका उत्तरदायित्व नारी का है। क्यों पूछ रही है, यह तो बता?’
‘बाबोसा! एक बार बारातको देखकर मैंने भाबूसे पूछा था कि मेरा बींद कौन है? उन्होंने फरमाया कि तेरा बींद गिरधर गोपाल है। आज….आज….।’ – उसने अपने दोनों हासे मुख ढाँप लिया और हिलकियों के मध्य अपनी बात पूरी की -‘आज, आज भीतर सब मुझे मेवाड़के राजकुँवरको ब्याहने की बात कर रहे हैं।’
क्रमशः
Just like water rushes after finding a path, similarly Meera’s emotion-stream also flowed boisterously in the form of verses by pouring into words.
Mere Naina Nipat Bunk Image Atke. Seeing the form of Madan Mohan, Piyukh should not go astray. Barij Bhavan alak terdi mano very fragrant juice stuck. The murli hanged in a crooked way, in a crooked way. Meera Prabhu’s form of Lubhani Girdhar Nagar Nat K.
Seeing Meera happy, Mithula came near and while folding the rug a little, she respectfully knelt down and said in a low voice – “Jeeman padhraoon (bring food)?”
‘Ah Mithula, wait now and let the Lord be pleased. Who knows when this ultimate freedom will run away. Today the Lord has come, so why not keep him here? Do not let go
May God not give you such knowledge. Body, mind, wealth, you have taken it. Come friend! Look at your face, Naina is drinking juice. Jin Jin Bidhi Rijhe Hari Soi Kije Ho. Have you seen the beautiful black and pleasant face brother? Meera’s Lord Shyamji has accepted Badbhagan.
Got blessed like Meera. Leela opened the doors of contemplation and also of expression of experience. Day by day the fervor of his bhajan-worship started increasing. She adorns Girdhar in various ways, sometimes with flowers, sometimes with pearls, sometimes with shining zari clothes and sometimes with plain clothes of thin light muslin. By making various food items, she used to offer bhog, perform aarti and pacify them by singing and dancing. She used to get up and cover them in the winter night and in the summer she used to wake up at night and light the fan. On the third-fourth day, one or the other festival would take place.
Talk of engagement….
Seeing Meera’s devotion and increasing interest in bhajan, concern spread in Ranivas. One day his wife Ranavatji (Shrigirijaji) said to Veeramdevji, ‘ Meera has turned ten years old. Don’t you worry about his engagement?’
‘It was thought of once or twice, but who knows whether the giver will like the order or not?’ ‘What do you say? Can the food giver not like the order, it can also happen somewhere? Didn’t his other granddaughters get married?’ ‘Why didn’t it happen, but she was not Meera, Ranavatji! According to the way she has been educated and according to her intelligence, she is not an ordinary girl. ‘Ordinary or extraordinary, one has to get married, right?’ ‘Ratan Singh would also be interested, at least tell him.’
‘What happened to you today? Will they get the daughter engaged while you are there? Did he have a relationship with the daughter of the middle class Laljisa?’
‘No, but Raisal had told someone that this boy should also be considered in relation to Lakshmi. Similarly, if there is any character in Ratan Singh’s attention, then he should be told, this was my intention.’
‘A character is also in my mind.’
‘Your! Tell me who he is, we can also know?’
‘My nephew Bhojraj.’
‘What do you say! Medpatka Maharajkumar! You are not laughing, are you?’ ‘No, I am telling the truth.’
‘Will they have sex here? How much is the kingdom of Merta? Then Meera is the daughter of Chhutbhai. By the way Meera is eligible for the same house. He is the lamp of a dark house. ‘Wow, why not? He has given his sister in exchange for this. What would be the objection in taking it?
‘She gave us a sister, so our parts are open, isn’t it?’- Veeramdev smiled and put his hand on his wife’s shoulder. – ‘The daughters of Mewar come after writing the part of Pattamahishi. What do our daughters have in common with you?’
‘Aha, are you very jealous of the daughters of Mewar? What if this Chhut brother’s daughter becomes the mistress of Medpat?’
‘You’re telling the truth, aren’t you?’
‘Oath of the Government!’ Girjaji kept his hand on the husband’s chest and said, ‘It is in the hands of Charbhujanath and Eklingnath to do, but it is my job to try, so I will do it, but why are you so apprehensive? Arey, even among these Ranbanka Rathores, who will return the messengers’ hearts? Whose blood contains valor and devotion equally.
Then there is no need to search anywhere else. You ask Diwanji (the ruler of Chittor i.e. Mewar who considered himself the Diwan of Eklingnathji).’
The discussion about Meera’s engagement to Maharaj Kunwar of Mewar started going on in Ranivas. Meera also heard. She stood still like a stone statue for a while. She started thinking ‘Bhabune had told me that your groom is Girdhar Gopal. Today, when Harakh (joy) is not contained in the name of Maharajkumar of Mewar, then whom else should I ask? She slowly walked towards Dudaji’s palace.
Dudaji was chanting while sitting on the bed. Meera went and stood near the bed. He raised his gaze and looked at her- ‘Dehlata is cursing under the weight of form, a statue cast in a mold or that Lakshmi herself is standing in the form of a girl. No, no, the creeper withers when pressed, there is no life in the idol. And there is no stability in Lakshmi. This is it…. That’s it.’
All of a sudden they were startled in their mind – ‘What’s the matter? Meera doesn’t look happy today. Didn’t you jump up on the bed like usual?’
He took out his hand from Gomukhi by touching Malake Sumeruko to his eyes – ‘What’s the matter. Son! If you want to say something then say it?’
‘babosa’
‘Yes, yes, say it.’- He gently put his hand on her head.
‘How many bindas are there in a daughter?”
Grandfather laughed – ‘Why do you ask daughter! By the way, a daughter has only one bindu. There can be many bininis of one drop. Like you have four big mothers, but somehow a girl does not have more than one groom.’
‘Can’t there be more than one anyway?’- Meera thought again and asked.
‘What’s the matter son! It does not happen, it is a sin. You do not understand now, but there is a burden of purity of blood on the woman. It is the responsibility of the woman to save the ancestors. Why is she asking, at least tell me?’ ‘Babosa! Once upon seeing the procession, I had asked Bhabu, who is my Bind? He said that your bind is Girdhar Gopal. Today….Today….. – He covered his face with both his hands and completed his talk in the middle of hiliks – ‘Today, today everyone inside is talking about marrying me to the prince of Mewar.’ respectively