दूदाजीने पोती को छाती से लगा लिया–’तूने भाबूसे पूछा नहीं?
‘पूछा! वे तो कहती है कि वह तो तुझे बहलानेके लिये कहा था। पीतलकी मूरत भी भला किसी का पति होती है? अरे, बड़ी माँ के पैर पूज! यदि मेवाड़ की राजरानी बन गयी तो भाग्य खुल गया समझ। आप ही बताइये बाबोसा ! वे क्या केवल पीतलकी मूरत हैं? संतने कहा था कि ये प्रतीक हैं। प्रतीक वैसे ही तो नहीं बन जाता? कोई हो, तभी तो उसका प्रतीक बनाया जा सकता है। जैसे आपका चित्र कागज भले हो, पर उसे कोई भी देखते ही कह देगा कि ये दूदाजी राठौड़ हैं। आप हैं, तभी तो आपका चित्र बना है। यदि गिरधर नहीं तो फिर प्रतीक कैसा? भाबू कहती हैं- भगवान को किसने देखा है? कहाँ हैं? कैसे हैं? वे कहीं हों, कैसे भी हों, पर हैं, तभी न मूरत बनी है, चित्र बनते हैं। ये शास्त्र, संत सब क्या झूठे हैं? इतनी बड़ी उम्रमें आप क्यों राज्य का भार बड़े कुँवरसा पर छोड़कर माला फेरते हैं? क्यों मन्दिर पधारते हैं? क्यों सत्संग करते हैं? क्यों लोग अपने प्रियजनोंको छोड़कर उनको पानेके लिये साधु हो जाते हैं?’
राव दूदाजी अपनी दस वर्ष की पौत्री की बातें सुनकर चकित रह गये। उनसे कुछ क्षण बोला न गया।
‘आप कुछ तो कहिये बाबोसा! मेरा जी घबराता है। किससे पूछूँ यह सब? भाबू ने क्यों पहले ऐसी बात कही और अब क्यों उस पर पानी फेर रही हैं? जो नहीं हो सकता, उसका क्या उपाय? अब मैं क्या करूँ? अच्छा बाबोसा! आप ही बताइये क्या तीनों लोकोंके धणी (स्वामी) से भी मेवाड़का राजकुँवर बड़ा है? और यदि है तो होने दो, मुझे नहीं चाहिये।’
‘तू रो मत बेटा! धैर्य धर।’-उन्होंने दुपट्टे के छोर से मीरा का मुँह पोंछा ‘तू चिन्ता मत कर। मैं सभीसे कह दूँगा कि मेरे जीते जी मीराका विवाह नहीं होगा। तेरा वर गिरधर गोपाल हैं और वही रहेगें, किन्तु मेरी लाड़ली! मैं बूढ़ा हूँ। कै दिनका मेहमान? मेरे मरनेके पश्चात् भी यदि ये लोग तेरा ब्याह कर दें तो तू घबराना मत। सच्चा पति तो मन का ही होता है। तन का पति भले कोई बने, मन का पति ही पति है। गिरधर तो प्राणी मात्रका धणी है, अन्तर्यामी है वह। मनकी बात उससे छिपी तो नहीं है बेटा ! तू निश्चिन्त रह।’
‘सच फरमा रहे है बाबोसा?’
‘सर्व साँची बेटा’
‘तो फिर मुझे तन का पति नही चाहिए। मन का पति ही पर्याप्त है’
दूदा जी से आश्वासन पाकर मीरा के मन को राहत मिली।
प्रेम की पीर के नीर…….
दूदाजी की गोदसे उतरकर मीरा श्यामकुँज की ओर दौड़ गयी। कुछ क्षण अपने प्राणाराध्य गिरधर गोपाल की ओर एकटक देखती रही। फिर तानपूरा झंकृत होने लगा। आलाप लेकर वह गाने लगी-
आओ मनमोहना जी, जोऊ थांरी बाट।
खान पान मोहि नेक न भावे, नैणन लगे कपाट।
तुम आयाँ बिन सुख नहीं, मेरे दिल में बहुत उचाट।
मीरा कहे मैं भई रावरी, छाँड़ों नाहिं निराट।
भजन पूरा हुआ तो अधीरतापूर्वक नीचे झुककर दोनों भुजाओं में सिंहासन सहित अपने हृदयधन को बाँध चरणों में सिर टेक दिया। नेत्रों से झरती बूँदें उनका अभिषेक करने लगीं। हृदय चीख रहा था—’आओ, आओ, मेरे सर्वस्व! इस तुच्छ दासीकी आतुर प्रतीक्षा सफल कर दो। आज तुम्हारी साख और इसकी प्रतिष्ठा दाँव पर चढ़ गयी है। बचा लो…. इसे बचा लो। मुझे बताओ, मैं क्या करूँ?… क्या करूँ?… क्यों तुम मुझे इतने अच्छे लगते हो? क्यों?…. क्यों?…. क्यों तुमने मुझे अन्य लोगों जैसा नहीं बनाया?…. क्यों अच्छे लगते हो?…. क्यों अच्छे लगते हो…. क्यों अच्छे लगते हो….?’
वह फूट-फूट करके रो पड़ी। मिथुलाने समीप बैठ धीरेसे पुकारा ‘बाईसा हुकम! बाईसा हुकम! थोड़ा धीरज धारण कीजिये। मैं नाचीज आपको क्या समझाऊँ ? दिन सदा एकसे नहीं रहते। ये अन्तर्यामी हैं; आपकी व्यथा इनसे छिपी तो नहीं है। मुँह खोलकर इनसे कहिये तो…. ।’
मीरा ने सिर उठाकर मिथुला की ओर देखा। हृदय को बेध देने वाली वह आँसू भरी दृष्टि… । मिथुला भीतर तक हिल गयी। उसने एक हाथसे मुख पोंछने लिये वस्त्र और दूसरे से तानपूरा उठाकर स्वामिनी की ओर बढ़ाया। उसकी अपनी आँखें छलछला आयीं तो नेत्र नीचे कर लिये।
‘मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता मिथुला।’
‘यही बात आप इनसे अर्ज करें बाईसा! ये सर्वसमर्थ हैं। यह दासी तो आपकी चरण-रज है। क्या आश्वासन दे पायेगी यह? यह तानपूरा लीजिये। कुछ तो मन हल्का होगा।’
उसके आग्रह पर मीरा ने तानपूरा थाम लिया—
सखी! म्हाँरो कानूड़ो कालजा री कोर।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे कुण्डल की झकझोर।
वृंदावन की कुँज गलिन में नाचत नंदकिशोर।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरण कँवल चितचोर।
मन थोड़ा हल्का हुआ तो उसने मिथुला की ओर देखा- ‘मिथुला! तुझे
क्या लगता है? क्या वे मेरी पीड़ा जानते हैं? मेरी प्रार्थना सुनकर कभी वे मेरी सुध लेंगे? वे बहुत….. बहुत…. बड़े…. हैं मिथुला ! मेरी क्या गिनती? मुझ जैसे करोड़ों जन बिलबिलाते रहते हैं किन्तु मिथुला ! मेरे तो केवल वही एक अवलम्ब हैं। न सुनें, न आयें, तब भी मेरा क्या वश है?’ उसने मिथुला की गोद में मुँह छिपा लिया।
‘आप क्यों भूल जाती हैं बाईसा! वे भक्तवत्सल हैं, करुणासागर हैं, दीनबंधु हैं। भक्तकी पीड़ा वे नहीं सह पाते, दौड़े आते हैं।’
‘किन्तु मैं भक्त कहाँ हूँ मिथुला?’- मीराने रोते हुए कहा- ‘भजन ! मुझसे बनता ही कहाँ है। मुझे तो केवल वे अच्छे लगते हैं बस ! वे मेरे पति हैं मिथुला। मैं उनकी हूँ, मैं उनकी हूँ। वे कभी अपनी इस सेविकाको अपनायेंगे क्या? उनके तो सोलह हजार एक सौ आठ पत्नियाँ हैं। और भी न जाने कहाँ कितने प्रेमैकप्राण उन्हें पुकारते होंगे! उनके बीच मेरी यह प्रेमहीन रूखी-सूखी क्षीण पुकार सुन पायेंगे वे? क्या लगता है मिथुला! कभी वे इसकी ओर देखेंगे भी? मुझे कोई कूल-किनारा दिखायी नहीं देता….।’
वह अचेत होकर मिथुला की गोदमें लुढ़क गयी।
श्रीकृष्णजन्माष्टमी का उत्सव….
आज जन्माष्टमी है। राजमन्दिर और श्यामकुँज में प्रातः से ही उत्सव की तैयारियाँ होने लगीं। मीरा का मन आज बहुत विकल है। वह स्वगत कहने लगी ‘दस जन्माष्टमियाँ निकल गई, सूनी ही गयीं सब… क्या आज भी? नहीं, नहीं ऐसा नहीं होगा। आज प्रभु अवश्य पधारेंगे।
क्रमशः
Grandfather hugged the granddaughter – ‘Didn’t you ask Bhabu? ‘Asked! She says that she said this to amuse you. Is a brass idol also someone’s husband? Arey, worship the feet of elder mother! If she becomes the queen of Mewar, then her luck has opened. You only tell Babosa! Are they just brass idols? The saint had said that these are symbols. The symbol doesn’t become just like that, does it? If someone exists, then only his symbol can be made. For example, your picture may be on paper, but on seeing it anyone will say that this is Dudaji Rathore. You are, that’s why your picture is made. If not Girdhar, then how is the symbol? Bhabu says – who has seen God? Where are you? How are you? Wherever they are, however they are, they are there, that’s why not an idol is made, pictures are made. Are all these scriptures and saints false? At such an old age, why do you leave the burden of the state on the elder Kunvarsa and turn the garland? Why do you visit the temple? Why do satsang? Why do people leave their loved ones and become saints to get them?’
Rao Dudaji was astonished to hear the words of his ten year old granddaughter. He didn’t speak for a few moments.
‘You say something, Babosa! My heart gets scared. To whom should I ask all this? Why did Bhabu say such a thing earlier and why is she throwing water on him now? What is the solution for what cannot be done? What do I do now? Good boss! You tell me, is the prince of Mewar bigger than the rich (lord) of all the three worlds? And if it is, let it be, I don’t want it.’
Don’t cry son! Be patient.’ – He wiped Meera’s face with the end of the scarf ‘Don’t worry. I will tell everyone that Meera will not get married while I am alive. Your groom is Girdhar Gopal and will remain the same, but my dear! I am old. What day’s guest? Even after my death, if these people get you married, then don’t panic. A true husband is of the mind only. No matter who is the husband of the body, the husband of the mind is the husband. Girdhar is the only creature rich, he is antaryami. My mind is not hidden from him, is it? Rest assured.’ ‘Is Babosa telling the truth?’ ‘All true son’ ‘Then I don’t want a physical husband. The husband of the mind is enough. Meera’s mind was relieved after getting assurance from Duda ji.
The water of the pain of love…….
Meera got down from Dudaji’s lap and ran towards Shyamkunj. For a few moments she kept staring at her beloved Girdhar Gopal. Then the tanpura started tinkling. Taking alap she started singing-
Come Manmohana ji, Jou Thanri Baat. Khan Pan Mohi Nek Bhave nahi, Nainan lage kapat. There is no happiness without you coming, there is a lot of excitement in my heart. Meera says I am brother Ravari, don’t leave me alone.
When the bhajan was over, he bowed down impatiently and tied his heart’s wealth with the throne in both arms and bowed his head at the feet. The drops falling from the eyes started anointing them. The heart was crying out – ‘Come, come, my everything! Make the eager wait of this insignificant maid successful. Today your reputation and its reputation is at stake. save…. save it Tell me, what should I do?… What should I do?… Why do you like me so much? Why?…. Why?…. Why didn’t you make me like other people?…. Why do you look good? Why do you look good…. Why do you look good….?
She burst into tears. Sitting close to Mithul, he called softly ‘Baisa Hukam! Twenty two orders! Have some patience. What should I explain to you? Days are not always the same. They are intimate; Your pain is not hidden from them, is it? Open your mouth and tell them then…. ,
Meera raised her head and looked at Mithula. That tearful sight that pierces the heart…. Mithula was shaken to the core. He picked up a cloth to wipe his face with one hand and a tanpura with the other and moved it towards the mistress. When his own eyes started rolling, he lowered his eyes.
‘I don’t like anything, Mithula.’
‘You should apply the same thing to them, Baisa! He is omnipotent. This maid is your feet. What assurance can it give? Take this tanpura. At least the mind will be light.
On his request, Meera held the tanpura.
Friend! Mhanro Kanudo Kalja Ri Kor. Peacock crown, pitambar sohe jhakjhor of the coil. Nandkishore dancing in the grove of Vrindavan. Meera’s Lord Girdhar Nagar Charan Kanwal Chitchor.
When his mind became a little lighter, he looked at Mithula – ‘Mithula! You What do you think? Do they know my pain? Will they ever take care of me after listening to my prayers? They are very… very…. elder…. Hi Mithula! what is my count? Crores of people like me keep whining but Mithula! He is my only support. Don’t listen, don’t come, even then what is my control?’ He hid his face in Mithula’s lap.
‘Why do you forget Baisa! He is Bhaktavatsal, Karunasagar, Deenbandhu. They can’t bear the pain of the devotee, they come running.
‘But where am I the devotee, Mithula?’- Meera said crying- ‘Bhajan! Where is it possible for me? I just like them! He is my husband Mithula. I am his, I am his. Will he ever adopt this servant of his? He has sixteen thousand one hundred and eight wives. Don’t even know where so many loving souls would be calling out to him! Will they be able to hear this loveless dry cry of mine among them? What do you think Mithula! Will they ever even look at it? I do not see any cool edge…..’ She fainted and rolled on Mithula’s lap.
Celebrating Shri Krishna Janmashtami….
Today is Janmashtami. Preparations for the festival started in the Raj Mandir and Shyamkunj from the morning itself. Meera’s mind is very disturbed today. She started saying Swagat, ‘ten Janmashtamis have passed, everything has been heard… what even today? No, no it won’t. Today the Lord will definitely come. respectively