परम पिता परमेश्वर ही सृष्टि के सृजन हार,पालनहार और संहारक भी है।जब वह किसी भी कृति का सृजन करते है,तब उस कृति के पूर्व जन्म के कर्मफल के हिसाब से उसका भविष्य भी निर्धारित कर देते है।किंतु हम सदेव दूसरो के पास क्या है,इसी उधेड़बुन में अपनी ऊर्जा खत्म कर देते है। परमात्मा अगर हमारे किसी पड़ोसी या करीबी को कुछ देते है तो हम भी उसीको देखकर या तो उसकी खीचातानी करते हैं या जलन करते हैं, जबकि वह परमात्मा हमारे लिये भी बहुत कुछ लेकर हमारा इंतजार कर रहा है और हम उनकी दया की दृष्टि देख ही नही पाते। क्योंकि लालच के आवरण से हम उचित अनुचित का निर्णय ही नही कर पाते।
हमारी नजर दूसरों की झोली में क्या है? वह नही होनी चाहिये बल्कि *हमारे हिस्से में बहुत ज्यादा है * यह हमारी सोच होनी चाहिये।पढ़िए।
एक पक्षी को दाना डालने एक व्यक्ति हमेशा आता था।
वह पक्षी जहां रहता था उसी के पास एक गिलहरी भी रहती थी।
वह गिलहरी जब भी देखती कि वह व्यक्ति उस पक्षी के लिये कुछ लेकर आया है तो गिलहरी उसके आस पास मंडराने लगती।
और उस पक्षी को जो भी खाने को मिलता वह अपनी चोंच में उठा एकांत में जा बैठकर खाने लगता। पर वह गिलहरी उसका पीछा करती जाती ताकि वह उससे कुछ ले सके।
और जो कुछ उसकी चोंच से गिरता या खाते समय उसका चूरा गिर जाता वह खा लेती थी या कभी कभी छीन भी लेती थी।
यह देखकर उस व्यक्ति के मन में खयाल आया क्यों न आज गिलहरी को भी दे दिया जाये।
वह गिलहरी के लिये भी अलग से लेकर आया पर क्या देखता है, वह गिलहरी तब भी उसी पक्षी के पीछे पीछे ही भागे जा रही थी।
और वह व्यक्ति उसके इंतजार में खड़ा रहा कि वह गिलहरी आये तो उसे दे सके।
ठीक इसी प्रकार उचित समय पर जब परमात्मा हमे देना चाहते है,तो हम उसे ले नही पाते।
।श्री हरि आपका कल्याण करें।
दृष्टि देख नही पाते। क्योंकि लालच के आवरण से हम उचित अनुचित का निर्णय ही नही कर पाते।
हमारी नजर दूसरों की झोली में क्या है? वह नही होनी चाहिये बल्कि *हमारे हिस्से में बहुत ज्यादा है * यह हमारी सोच होनी चाहिये।पढ़िए।
एक पक्षी को दाना डालने एक व्यक्ति हमेशा आता था।
वह पक्षी जहां रहता था उसी के पास एक गिलहरी भी रहती थी।
वह गिलहरी जब भी देखती कि वह व्यक्ति उस पक्षी के लिये कुछ लेकर आया है तो गिलहरी उसके आस पास मंडराने
The Supreme Father, the Supreme Soul, is the creator, sustainer and destroyer of the universe. When he creates any creation, he also determines the future of that creation according to the results of its previous births. But we are always with others. What is it, in this turmoil, they waste their energy. If God gives something to any of our neighbors or close ones, then we also either resent him or get jealous on seeing him, while that God is waiting for us with a lot for us and we do not even see the sight of his mercy. Find it. Because under the cover of greed, we are not able to decide right and wrong. What do we have in the lap of others? It should not be there, but * there is too much in our part * it should be our thinking. Read on. A person always came to feed a bird. A squirrel also lived near where that bird lived. Whenever that squirrel saw that the person had brought something for that bird, the squirrel would start hovering around it. And whatever food that bird got to eat, he got up in his beak and sat in solitude and started eating. But the squirrel would follow him so that he could take something from him. And whatever fell from her beak or while eating, she used to eat or sometimes even snatch it. Seeing this, the thought came to the mind of that person why not give it to the squirrel today too. He also brought it separately for the squirrel, but what he sees, that squirrel was still running after the same bird. And the person stood waiting for him so that he could give it to the squirrel if it came. Similarly, when God wants to give to us at the right time, we cannot take it. May Shri Hari bless you.
Can’t see sight. Because under the cover of greed, we are not able to decide right and wrong. What do we have in the lap of others? It should not be there, but * there is too much in our part * it should be our thinking. Read on. A person always came to feed a bird. A squirrel also lived near where that bird lived. Whenever that squirrel saw that the person had brought something for that bird, the squirrel would hover around it.