अनेक प्राचीन मंदिर ऐसे स्थलों या पर्वतों पर बनाए गए हैं, जहां से चुंबकीय तरंगें घनी होकर गुजरती हैं। इस तरह के स्थानों पर बने मंदिरों में प्रतिमाएं ऐसी जगह रखी जाती थीं, जहां चुंबकत्व का प्रभाव ज्यादा हो।
यहीं पर तांबे का छत्र और तांबे के पाट रखे होते थे और आज भी कुछ स्थानों पर रखे हैं। तांबा बिजली और चुंबकीय तरंगों को अवशोषित करता है।
इस प्रकार जो भी व्यक्ति मंदिर जाकर इस मूर्ति की घड़ी के चलने की दिशा में परिक्रमा करता है, वह इस एनर्जी को अवशोषित कर लेता है। इससे उसको मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य लाभ मिलता है। हालांकि यह एक धीमी प्रक्रिया मानी जा सकती है लेकिन इससे मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है।
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मंदिर में प्रतिमा के समक्ष प्रज्वलित दीपक ऊष्मा की ऊर्जा का वितरण करता है एवं शंख-घंटियों की ध्वनि तथा लगातार होते रहने वाले मंत्रोच्चार से एक ब्रह्मांडीय नाद बनता है तो मन और मस्तिष्क को नियंत्रित कर ध्यानपूर्ण बना देता है और इस वातावरण में व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो जाता है, यह मंत्रमुग्धता आनंद उल्लास और मानसिक शांति प्रदान करता है।
👉 मंदिरों में तांबे के एक पात्र में तुलसी और कपूर-मिश्रित जल भरा होता है जिसका सेवन करने से जहां रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है वहीं इससे ब्रह्म-रन्ध्र में शांति मिलती है।
👉 मंदिरों में यदि आप पवित्र होकर पवित्र भावना से जाएं और प्रार्थना करेंगे तो आपकी मांग जरूर पूरी होगी।
मंदिर में शिखर होते हैं। शिखर की भीतरी सतह से टकराकर ऊर्जा तरंगें व ध्वनि तरंगें व्यक्ति के ऊपर पड़ती हैं। ये परावर्तित किरण तरंगें मानव शरीर आवृत्ति बनाए रखने में सहायक होती हैं। व्यक्ति का शरीर इस तरह से धीरे-धीरे मंदिर के भीतरी वातावरण से सामंजस्य स्थापित कर लेता है। इस तरह मनुष्य असीम सुख का अनुभव करता है।
सबसे बड़ी बात जो प्राचीन मंदिर वो ऋषि मुनियों ने धरती के ऐसे जगह पर बनाए हैं जहां सबसे ज्यादा उर्जा मिलती है उदाहरणार्थ उज्जैन का महाकाल मंदिर कर्क रेखा पर स्थित है। ऐसे धनात्मक ऊर्जा के केंद्र पर जब व्यक्ति मंदिर में नंगे पैर जाता है तो इससे उसका शरीर अर्थ हो जाता है और उसमें एक ऊर्जा प्रवाह दौड़ने लगता है। वह व्यक्ति जब मूर्ति के आगे हाथ जोड़ता है तो शरीर का ऊर्जा चक्र चलने लगता है। जब वह व्यक्ति सिर झुकाता है तो मूर्ति से परावर्तित होने वाली पृथ्वी और आकाशीय तरंगें मस्तक पर पड़ती हैं और मस्तिष्क पर मौजूद आज्ञा चक्र पर असर डालती हैं। इससे शांति मिलती है तथा सकारात्मक विचार आते हैं जिससे दुख-दर्द कम होते हैं और भविष्य उज्ज्वल होता है।
हमारा सनातन धर्म पूर्ण रूप से विज्ञान पर आधारित है। हां यह जरूर हो सकता है कि उसका ज्ञान वर्तमान वैज्ञानिकों को ना हो पाया हो।
पूरे विश्वास व श्रद्धा के साथ मंदिर जरूर जाना चाहिए, क्योंकि वहां पर एक सुखद सकारात्मक तरंगे विद्यमान रहती है और यह तरंगे मनुष्य के शरीर, मन व आत्मा के लिए उतनी ही जरूरी है, जितनी हमें हवा, पानी, भोजन की जरूरत है..।।।