🙏हरे कृष्ण🙏
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🔸मंदिर तो आपने देखे ही होंगे। मंदिरों की छतों पर एक विशेष प्रकार की आकृति बनाई जाती है। यह आकृति ऊपर की तरफ नुकीली हो जाती है। प्रश्न यह है कि मंदिरों की छतों को इस प्रकार से क्यों बनाया जाता है। क्या इसके पीछे कोई साइंस है।
मंदिरों की छत कितने प्रकार की होती है?
विशेषज्ञों के अनुसार भारत मे 2 तरह की मंदिर निर्माण शैलियां है उत्तर भारत (नागर शैली) दक्षिण भारत (द्रविड़ शैली)। उत्तर भारत मे छत को मंदिर वास्तु की भाषा मे शिखर कहते है और दक्षिण भारत मे इसको विमान कहते है।
दक्षिण भारत मे शिखर सिर्फ ऊपर रखे पत्थर को बोलते जबकि उत्तर भारत मे सबसे ऊपर कलश रखा होता है। इसके अलावा इन से मिलती-जुलती कुछ और मंदिर निर्माण शैलियां भी होती है।
मंदिर की छत को पिरामिड जैसा क्यों बनाया जाता है
धार्मिक दृष्टि से बात करें तो ब्रह्मांड एक बिंदु के रूप में था अतः मंदिर का शिखर एक बिंदु के रूप में होता है जो ब्रह्मांड से सकारात्मक ऊर्जा को संचित करने का काम करता है।
विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि अंदर से खोखला इस तरह का पिरामिड बनाने से उस खाली स्थान में सकारात्मक ऊर्जा का मंडार एकत्रित हो जाता है। यदि कोई मनुष्य इस ऊर्जा केंद्र के नीचे आता है तो उसे भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
स्थापत्य कला के अनुसार जरूरी नहीं है कि सामने भगवान की प्रतिमा हो, लेकिन यदि आपके इष्टदेव की प्रतिमा है तो सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव मानसिक रूप से कई गुना बढ़ जाता है।
दूसरा प्रमुख कारण यह है कि इस तरह की आकृति के कारण सूर्य की किरणें उसे प्रभावित नहीं कर पाती और त्रिकोण के अंदर एवं नीचे वाला हिस्सा बाहर अधिक तापमान होने के बावजूद ठंडा रहता है। क्योंकि भारत में मंदिरों का निर्माण यात्रियों के विश्राम के लिए भी किया गया था अतः यात्रियों की थकान जल्दी से दूर हो सके इसलिए भी इस तरह की स्थापत्य कला का उपयोग किया गया।
मंदिर के शिखर के कारण उसे दूर से पहचाना जा सकता है क्योंकि नीचे भगवान की प्रतिमा स्थापित है इस प्रकार की आकृति के कारण कोई भी व्यक्ति प्रतिमा के ऊपर खड़ा नहीं हो सकता। मंदिरों का निर्माण पूर्ण वैज्ञानिक विधि से किया जाता है।
मंदिर का वास्तुशिल्प ऐसा होता है, जिससे वहां पवित्रता, शांति और दिव्यता बनी रहती है। मंदिर की छत ध्वनि सिद्धांत को ध्यान में रखकर बनाई जाती है, जिसे गुंबद कहा जाता है।
शिखर के केंद्र बिंदु के ठीक नीचे मूर्ति स्थापित होती है।
गुंबद के कारण मंदिर में किए जाने वाले मंत्रों के स्वर और अन्य ध्वनियां गूंजती हैं तथा वहां उपस्थित व्यक्ति को प्रभावित करती है। गुंबद और मूर्ति का केंद्र एक ही होने से मूर्ति में निरंतर ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है।
जब हम उस मूर्ति को स्पर्श करते हैं, उसके आगे सिर टिकाते हैं तो हमारे अंदर भी वह ऊर्जा प्रवेश करती है। इस ऊर्जा से शक्ति, उत्साह और प्रसन्नता का संचार होता है।
*🔸 जय_श्रीकृष्ण 🙏🏻
🙏 Hare Krishna 🙏
🔸 Question: Why are the roofs of temples not flat?
You must have seen the temple. A special type of shape is made on the roofs of temples. This shape becomes pointed at the top. The question is why the roofs of temples are made in this way. Is there any science behind it?
How many types of roof are there in temples?
According to experts, there are two types of temple building styles in India, North India (Nagar style) and South India (Dravidian style). In North India, the roof is called Shikhar in the language of temple architecture and in South India it is called Vimana.
In South India, only the stone placed on the top is called Shikhar, while in North India, the Kalash is placed at the top. Apart from this, there are some other temple construction styles similar to these.
Why is the roof of the temple made like a pyramid?
Talking religiously, the universe was in the form of a point, so the peak of the temple is in the form of a point which works to accumulate positive energy from the universe.
Science also accepts that by making such a pyramid hollow from inside, the atmosphere of positive energy gets collected in that empty space. If a person comes under this energy center then he also receives positive energy.
According to architecture, it is not necessary that there should be a statue of God in front, but if there is a statue of your presiding deity, then the effect of positive energy mentally increases manifold.
The second major reason is that due to this shape, the sun’s rays do not affect it and the inside and bottom part of the triangle remains cool despite the high temperature outside. Because temples in India were also built for the rest of the travelers, so this type of architecture was also used to relieve the fatigue of the travelers quickly.
Due to the shikhara of the temple, it can be identified from a distance because the idol of the Lord is installed below. Due to this type of shape, no person can stand on the idol. Temples are constructed with complete scientific method.
The architecture of the temple is such that it maintains purity, peace and divinity. The roof of the temple is made keeping in mind the sound principle, which is called Gumbad.
The idol is installed just below the center point of the shikhara.
Due to the dome, the voices of mantras and other sounds made in the temple resonate and affect the person present there. Due to the center of the dome and the idol being the same, energy flows continuously in the idol.
When we touch that idol, bow our head before it, that energy enters us too. This energy radiates strength, enthusiasm and happiness.
* 🔸 Jai _ Shri Krishna 🙏🏻