सच्चा सौंदर्य

दक्षिण में एक भक्त हुए उनका नाम धनुदास था। प्रारम्भ में वे हेमाम्बा नाम की वेश्या के रूप पर मुग्ध थे। भगवान में भक्ति बिल्कुल नहीं थी।
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शरीर हट्टा-कट्टा था उनका। लोग उन्हें पहलवान कहते थे।
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दिन बीत रहे थे। रंगजी के मंदिर में प्रतिवर्ष उत्सव हुआ करता था और वैष्णवचार्य श्री रामानुजजी महाराज मंदिर में आया करते थे। लाखों की भीड़ होती थी।
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पहलवान और वेश्या के मन में भी उत्सव देखने की इच्छा हुई। कीर्तन में लोग मस्त थे, भगवान की सवारी सजाई गई।
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हजारों आदमी आंनद में पागल होकर नाच रहे थे। पर पहलवानजी उस वेश्या के मुख की शोभा निहारने में मग्न थे।
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तभी, श्री रामानुजाचार्यजी की दृष्टि उन पर पड़ गई। भाग्य खुल गया, श्री रामानुजाचार्यजी बोले यह कौन है ?
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उनको दया आ गई, लोगों में यह बात प्रसिद्ध थी ही। सबने सारा हाल सुनाया।
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श्री रामानुजाचार्यजी ने पूछा- “भैया ! लाखों आदमी भगवान के आंनद में डूब रहे है, पर तुम्हारी दृष्टि भटक रही है, ऐसा क्यों ?
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पहलवान ने बोले, “महाराज जी, मुझे सुंदरता प्रिय है। हेम्मबा जैसी सुंदरता मैंने कहीं और नहीं देखी ! इसी लिए मेरा मन दिन-रात उसी में फंसा रहता है।
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आचार्यजी बोले, “यदि इससे भी सुंदर वस्तु तुम्हें दिखने को मिले तो इसे छोड़ दोगे ?”
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पहलवान बोला, “महाराजजी, इससे भी अधिक सुंदर कोई वस्तु है, यह मेरी समझ में नहीं आता।”
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आचार्यजी बोले- अच्छा संध्या को मंदिर की आरती खत्म होने के बाद आ जाना केवल मैं रहूंगा। पहलवान भी जी, अच्छा ! कहकर चले गए।
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श्री रामानुजाचार्यजी मंदिर में गए और भगवान से प्रार्थना की, “प्रभु ! आज एक अधम का उद्घार करो। एक बार के लिए उसे अपने त्रिभुवन मोहन रूप की एक हल्की सी झांकी तो दिखा दो।”
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प्रभु अपने भक्त को कभी निराश नहीं करते। संध्या के समय जब पहलवान आए, तब श्री रामानुजाचार्यजी पकड़कर भीतर ले गए और श्री विग्रह की ओर दिखा कर बोले- देखो, ऐसा सौंदर्य तुमने कभी देखा है।
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पहलवान ने दृष्टि डाली एक क्षण के लिए जन साधारण की दृष्टि में दिखने वाली मूर्ति, मूर्ति न रही स्वयं भगवान ही प्रकट हो गए और पहलवान उस अलौकिक सुंदरता को देखते ही बेहोश हो गया।
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बहुत देर के बाद होश आया। होश आने पर श्री रामानुजाचार्यजी के चरण पकड़ लिए और बोला,“प्रभु ! अब वह रूप निरंतर देखता रहूं, ऐसी कृपा कीजिए।
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फिर श्री रामानुजाचार्यजी ने उन्हें मंत्र दिया। आगे चलकर वह उनके बहुत प्यारे शिष्य तथा एक पहुंचे हुए महात्मा हुए। सच ही कहा है तुलसीदास जी ने-
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‘बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥’

🙏 जय जय श्री राधे 🙏



There was a devotee in the south, his name was Dhanudas. Initially he was infatuated with the form of a prostitute named Hemamba. There was no devotion in God at all. , His body was stout. People used to call him wrestler. , Days were passing by There used to be a festival every year in Rangji’s temple and Vaishnavacharya Shri Ramanujaji Maharaj used to visit the temple. There used to be a crowd of lakhs. , The wrestler and the prostitute also had a desire to see the festival. People were engrossed in kirtan, God’s ride was decorated. , Thousands of people were dancing madly in joy. But Pehelwanji was engrossed in admiring the beauty of that prostitute’s face. , Just then, Sri Ramanujacharyaji’s vision fell on him. Luck has opened, Shri Ramanujacharyaji said who is this? , He felt pity, this thing was famous among the people. Everyone narrated the whole situation. , Shri Ramanujacharyaji asked – “Brother! Lakhs of people are drowning in the bliss of God, but your vision is wandering, why so? , The wrestler said, “Maharajji, I love beauty. I have not seen beauty like Hemmaba anywhere else! That’s why my mind is stuck in it day and night. , Acharyaji said, “If you get to see something more beautiful than this, will you leave it?” , The wrestler said, “Maharajji, there is anything more beautiful than this, I do not understand it.” , Acharyaji said – Well, after the aarti of the temple is over in the evening, only I will be there. Wrestler too, okay! Said and left. , Sri Ramanujacharyaji went to the temple and prayed to the Lord, “Lord! Make an admonition today. For once show him a glimpse of your Tribhuvan Mohan Roop. , The Lord never disappoints his devotee. When the wrestlers came in the evening, Shri Ramanujacharya caught hold of him and took him inside and showing towards Shri Vigraha said – Look, have you ever seen such beauty. , The wrestler looked at the idol visible to the general public for a moment, the idol was no more, God himself appeared and the wrestler fainted on seeing that supernatural beauty. , I regained consciousness after a long time. On regaining consciousness, he held the feet of Shri Ramanujacharyaji and said, “Lord! May I continue to see that form, please bless me. , Then Sri Ramanujacharyaji gave him the mantra. Later on he became his very dear disciple and an accomplished Mahatma. Truth has been said by Tulsidas ji- , ‘Without Hari’s grace, there is no Santa.’

🙏 Jai Jai Shri Radhe 🙏

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