सम्राट विक्रमादित्य एक महान व्यक्तित्व और शक्ति का प्रतीक थे लेकिन, आज उनसे जूड़े सबूतों की अनुपस्थिति का मतलब यह नहीं है कि राजा विक्रमादित्य का कोई अस्तित्व ही नहीं था। जबकि, आज भी उनके कुछ ऐसे उदाहरण और सबूत हैं जिनको सारी दुनिया मानती है। महाराजा विक्रमादित्य से जुड़े इतिहास का दुर्भाग्य यह रहा कि मुगलों और अंग्रेजों को यह सिद्ध करना जरूरी था कि उस काल में दुनिया अज्ञानता में जी रही थी। विक्रमादित्य केवल भारत की प्राचीन और धार्मिक नगरी उज्जयिनी के ही राजा नहीं थे।
सम्राट कोई नाम नहीं बल्कि एक उपाधि है और इसीलिए विक्रमादित्य को सम्राट की उपाधि दी जाती है। सम्राट यानी वह व्यक्ति या वह राजा जो संपूर्ण विश्व में या संपूर्ण पृथ्वी पर सबसे अधिक भूमि का पालनहार या राजा करने वाला व्यक्ति। दरअसल, विक्रमादित्य का शासन अरब और मिस्र तक फैला हुआ था और संपूर्ण धरती के लोग उनके नाम से परिचित थे।विक्रमादित्य अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे।
सम्राट विक्रमादित्य एक महान व्यक्तित्व और शक्ति का प्रतीक थे लेकिन, हमारे इतिहास का यह दुर्भाग्य रहा कि ऐसे महान व्यक्तित्व को षड़यंत्रों और साजिशों के तहत इतिहास के पन्नों से हटा दिया गया। पहला षड़यंत्र यह कि अकबर से महान कोई नहीं हो सकता, इसी बात को स्थापित करने के लिए सिर्फ विक्रमादित्य ही नहीं बल्कि और भी अनेकों इतिहास पुरुषों को भारतीय इतिहास से काटना जरूरी हो गया था। यही कारण था कि इतिहास में विक्रमादित्य को नहीं पढ़ाया जाता है।
महाराजा विक्रमादित्य का सविस्तार वर्णन भविष्य पुराण और स्कंद पुराण तक में भी मिलता है। विक्रमादित्य ईसा मसीह के समकालीन थे और उस समय उनका शासन अरब के देशों तक में फैला हुआ था। प्राचीन अरब के साहित्य में भी विक्रमादित्य के बारे में वर्णन मिलता है। महाराजा विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्न रहते थे इसलिए नौ रत्नों की परंपरा विक्रमादित्य से ही शुरू होती है।
विक्रमादित्य 5 साल की उम्र में ही तपस्या के लिए जंगल में चले गए थे, जहाँ उन्होंने 12 साल तक तपस्या की थी। तपस्या से वापस आने के बाद जब उनके बड़े भाई राजा भर्तृहरि राजपाट छोड़कर योगी बन गये तो उनके राजपाट का भार विक्रमादित्य ने सँभाल लिया। उन्होंने मात्र उज्जैनी ही नहीं बल्कि संपूर्ण जगत में अपने पराक्रम से देश का नाम रोशन किया है।
राजा विक्रमादित्य भारतीय इतिहास ही नहीं बल्कि विश्व इतिहास के सबसे ज्ञानी और सबसे महान राजा माने जाते थे। बल्कि यह कहा जा सकता है कि विक्रमादित्य के नाम पर एक युग है। अपने शासन काल में उन्होंने समय की गणना के लिए विक्रम संवत् आरंभ किया था, जिसे आज भी काल की गणना के लिए प्रयोग किया जाता है। विक्रमादित्य देवी हरसिद्धि के परम भक्त थे।विक्रमादित्य को अलौकिक और देवीय शक्तियाँ प्राप्त थीं। राजा विक्रमादित्य से जुड़ी विक्रम-बेताल की कहानियों को पढ़ने से उनकी शक्तियों के विषय में पता चलता है। उन कहानियों के अनुसार, विशाल सिद्धवट वृक्ष के नीचे बेताल साधना द्वारा विक्रमादित्य ने अलौकिक प्राकृतिक शक्तियाँ प्राप्त की थी।वेताल कथाओं के अनुसार विक्रमादित्य ने अपने साहसिक प्रयत्न से अग्निवेताल को वश में कर लिया था। इसलिए वह अदृश्य रूप से उनको अद्भुत कार्यों को संपन्न करने में सहायता देता था। विक्रमादित्य ने वेताल की सहायता से कई असुरों, राक्षसों और दुराचारियों को नष्ट किया। विक्रमादित्य के साथ कई लोक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। उन्होंने माँ हरसिद्धि को प्रसन्न करने के लिए अपना शीष अर्पित कर दिया था।
ज्योतिर्विदाभरण नामक एक ग्रंथ जो 34 ईसा पूर्व में लिखा गया था, उससे इस बात की पुष्टि होती है, कि विक्रमादित्य ने 3044 कलि अर्थात 57 ईसा पूर्व विक्रम संवत चलाया था। नेपाली राजवंशावली के अनुसार नेपाल के राजा अंशुवर्मन के समय यानी कि ईसापूर्व पहली शताब्दी में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नेपाल आने का उल्लेख मिलता है। यानी, देश में अनेकों ऐसे विद्वान हुए हैं, जो विक्रम संवत को उज्जैन के राजा विक्रमादित्य द्वारा ही प्रवर्तित मानते हैं।
राजा विक्रमादित्य ने अपनी भक्ति से भगवान महाकाल और माता हरसिद्धि के दर्शन किये थे। भगवान महाकाल और माता हरसिद्धि विक्रमादित्य की भक्ति से इतना प्रसन्न हुए कि माता हरसिद्धि ने विक्रमादित्य को कई देविय शक्तियां प्रदान की। वहीं भगवान महाकाल ने भी उन्हें वरदान दिये। उन्हीं के आशीर्वाद से विक्रमादित्य चारों युगों के सबसे महान राजा बने। भारतीय इतिहास में राजा विक्रमादित्य भगवान परशुराम, श्री राम और श्री कृष्ण की स्मृतियों का समन्वय बन कर आये और राष्ट्र के हृदय में एक प्रेम तथा श्रद्धा को अलौकिक स्थान दिया।
राजा विक्रमादित्य का न्याय पूरे विश्व में प्रसिद्ध था। महाराज विक्रमादित्य की महानता इस बात से सिद्ध होती है कि स्वयं देवराज इंद्र भी उनसे सलाह लेते थे। विक्रमादित्य को देवराज इंद्र ने बत्तिस पुतलियोँ और सोने, हीरे और मणियों से सजा सिंघासन भेंट किया था।
कहते हैं कि विक्रमादित्य के पश्चात यह सिंहासन लुप्त हो गया था। लेकिन, राजा भोज ने तपस्या के बल पर इस सिहाँसन को फिर से प्राप्त किया और अपने शासनकाल में इसपर बैठने का प्रयास किया लेकिन, सिंहासन में विराजमान दैवीय शक्तियों ने राजा भोज की योग्यता को परखने के बाद ही उन्हें उस पर बैठने की अनुमति दी थी। ‘सिंहासन बत्तीसी’ में इससे संबन्धित कथाएँ भी हैं। कहा जाता है उज्जैन में हरसिद्ध माता मंदिर के सामने रुद्रसागर में आज भी कुछ ऐसे रत्न हैं, जो राजा विक्रमादित्य के सिंहासन के अवशेष कहे जाते हैं।
सम्राट विक्रमादित्य के उस गौरवशाली अतीत को याद करके आज भी भारतीयों का हृदय स्वाभिमान से खिल उठता है। आज से लगभग 2070 वर्ष पहले भारतीय इतिहास में नया युग का प्रारंभ करने वाले चक्रवर्ती सम्राट महाराज विक्रमादित्य ब्रह्मांड के महान राजा माने जाते हैं। कई बार तो देवता भी उनसे न्याय करवाने आते थे, विक्रमदित्य के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे, न्याय, राज सब धर्मशास्त्र के नियमों पर चलता था विक्रमदित्य का काल राम राज के बाद सर्वश्रेष्ठ राज माना गया है, जहाँ प्रजा धनि और धर्म पर चलने वाली थी। देवताओं की नजर में राजा विक्रमादित्य पृथ्वीलोक में सबसे महान और न्यायप्रिय राजा थे। इसलिए उनको सभी देवी-देवताओं ने दर्शन दिये थे।
विक्रम संवत के प्रणेता महाराज विक्रमादित्य’ का नाम 20 शताब्दियों से निरंतर भारतियों के लिए प्रेरणा प्रवाहित करता आ रहा है। उन्होंने न सिर्फ एक शक्तिशाली राज्य का निर्माण किया था बल्कि साहित्य और कला को प्रोत्साहन देकर धर्म की रक्षा की।
जिस महान सम्राट विक्रमादित्य का उल्लेख पुराणों में भी किया गया है, ऐसे महान राजा को कुछ इतिहासकारों द्वारा केवल एक काल्पनिक व्यक्ति माना जाता है, जबकि वे हमारे इतिहास का एक ऐसा हिस्सा है कि जिनके कारण ही आज ये देश और यहाँ की संस्कृति अस्तित्व में है।
रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थों के अलावा हमारे अन्य ग्रन्थ भी लगभग खोने के कगार पर आ गए थे। ऐसे में महाराज विक्रमदित्य ने ही उनकी खोज करवा कर स्थापित किया। विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया। विक्रमदित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम’ लिखा, जिसमें संपूर्ण भारत का इतिहास है। यदि राजा विक्रमादित्य न होते तो संभवतः आज हम भारत के इतिहास को तो खो ही चुके होते, साथ ही साथ भगवान् कृष्ण और राम भी भूल चुके थे। हिन्दू कैलंडर भी विक्रमदित्य का स्थापित किया हुआ है आज जो भी ज्योतिष गणना है जैसे, हिन्दी सम्वंत, वार, तिथियाँ, राशि, नक्षत्र, गोचर आदि विक्रमदित्य काल की ही देन है।
महाराज विक्रमदित्य ने केवल धर्म ही नहीं बचाया उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया भी बनाया। उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है विक्रमदित्य के काल में भारत का कपड़ा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे भारत में इतना सोना आ गया था कि विक्रमदित्य काल में सोने की सिक्के चलते थे।
Emperor Vikramaditya was a great personality and symbol of power but, today the absence of evidence related to him does not mean that King Vikramaditya did not exist. Whereas, even today there are some examples and proofs of them which are accepted by the whole world. The misfortune of the history related to Maharaja Vikramaditya was that it was necessary to prove to the Mughals and the British that the world was living in ignorance during that period. Vikramaditya was not only the king of Ujjaini, the ancient and religious city of India. Samrat is not a name but a title and that is why Vikramaditya is given the title of Samrat. Emperor means that person or the king who is the protector or king of most of the land in the whole world or on the whole earth. In fact, Vikramaditya’s rule extended to Arabia and Egypt and people all over the earth were familiar with his name. Vikramaditya was famous for his wisdom, valor and generosity.
Emperor Vikramaditya was a symbol of great personality and power but, it is the misfortune of our history that such a great personality was removed from the pages of history under conspiracies and conspiracies. The first conspiracy was that no one can be greater than Akbar, to establish this point, it was necessary to cut not only Vikramaditya but also many other history men from Indian history. This was the reason why Vikramaditya is not taught in history.
The detailed description of Maharaja Vikramaditya is also found in Bhavishya Purana and Skanda Purana. Vikramaditya was a contemporary of Jesus Christ and at that time his rule extended to Arab countries. Description about Vikramaditya is also found in ancient Arab literature. Navratnas used to live in the court of Maharaja Vikramaditya, so the tradition of nine gems starts from Vikramaditya only. Vikramaditya went to the forest for penance at the age of 5, where he did penance for 12 years. After coming back from penance, when his elder brother Raja Bhartrihari left the Rajpat and became a Yogi, then Vikramaditya took care of his Rajpat. Not only in Ujjaini, but in the whole world, he has brought laurels to the country with his bravery.
King Vikramaditya was considered to be the most knowledgeable and greatest king not only in Indian history but also in world history. Rather it can be said that there is an era named after Vikramaditya. During his reign, he started Vikram Samvat for the calculation of time, which is still used for the calculation of time. Vikramaditya was an ardent devotee of Goddess Harsiddhi. Vikramaditya had supernatural and divine powers. Reading the stories of Vikram-Betaal related to King Vikramaditya reveals about his powers. According to those stories, Vikramaditya attained supernatural natural powers by practicing Betal under the huge Siddhavat tree. According to the Vetal stories, Vikramaditya subdued Agnivetal by his heroic efforts. That’s why he used to help them to accomplish wonderful works invisibly. Vikramaditya destroyed many asuras, demons and miscreants with the help of Vetala. Many folk tales are associated with Vikramaditya. He offered his head to please Maa Harsiddhi.
A book named Jyotirvidabharana which was written in 34 BC confirms that Vikramaditya started Vikram Samvat in 3044 Kali i.e. 57 BC. According to the Nepali dynasty, during the time of King Anshuvarman of Nepal i.e. in the first century BC, the mention of King Vikramaditya of Ujjain coming to Nepal is found. That is, there have been many such scholars in the country, who consider Vikram Samvat to be initiated by King Vikramaditya of Ujjain.
King Vikramaditya had darshan of Lord Mahakal and Mata Harsiddhi with his devotion. Lord Mahakal and Mata Harsiddhi were so pleased with the devotion of Vikramaditya that Mata Harsiddhi gave many divine powers to Vikramaditya. At the same time, Lord Mahakal also gave him a boon. With his blessings, Vikramaditya became the greatest king of all the four ages. In Indian history, King Vikramaditya came as a synthesis of the memories of Lord Parshuram, Shri Ram and Shri Krishna and gave a supernatural place to love and reverence in the heart of the nation. The justice of King Vikramaditya was famous all over the world. The greatness of Maharaj Vikramaditya is proved by the fact that Devraj Indra himself also used to take advice from him. Devraj Indra presented Vikramaditya with thirty-two effigies and a throne decorated with gold, diamonds and gems. It is said that this throne had disappeared after Vikramaditya. But, Raja Bhoj regained this throne on the strength of penance and tried to sit on it during his reign but, the divine powers sitting in the throne allowed him to sit on it only after testing the merit of Raja Bhoj . There are also stories related to this in ‘Singhasan Battisi’. It is said that in Ujjain, in front of the Harsiddha Mata temple, there are still some gems in Rudrasagar, which are said to be the remains of the throne of King Vikramaditya.
Remembering that glorious past of Emperor Vikramaditya, even today the heart of Indians swells with pride. Chakravarti Samrat Maharaj Vikramaditya, who started a new era in Indian history about 2070 years ago, is considered the great king of the universe. Many times even gods used to come to get justice from him, in Vikramaditya’s time every rule was made according to the theology, justice, rule all were run on the rules of theology, Vikramaditya’s period is considered to be the best rule after Ram Raj, where the people Was rich and following religion. In the eyes of the gods, King Vikramaditya was the greatest and most just king in the earth. That’s why all the deities had appeared to him.
The name of Maharaj Vikramaditya, the pioneer of Vikram Samvat, has been continuously flowing inspiration for Indians for 20 centuries. He not only built a powerful state but also protected religion by promoting literature and art.
The great emperor Vikramaditya, who is also mentioned in the Puranas, such a great king is considered only a fictional person by some historians, whereas he is such a part of our history, due to which this country and its culture exist today. Is. Apart from texts like Ramayana and Mahabharata, our other texts were also almost on the verge of being lost. In such a situation, Maharaj Vikramaditya got him discovered and established. Built temples of Vishnu and Shiva and saved Sanatan Dharma. One of the 9 gems of Vikramaditya, Kalidas wrote ‘Abhigyan Shakuntalam’, which contains the history of entire India. Had it not been for King Vikramaditya, we might have lost the history of India today, along with Lord Krishna and Rama. Hindu calendar has also been established by Vikramaditya, whatever astrological calculation is done today like, Hindi Samvant, Vaar, Tithiyan, Rashi, Nakshatra, Gochar etc. is the gift of Vikramaditya period only.
Maharaj Vikramaditya not only saved religion, he also made the country a golden bird economically. His rule is called the golden rule of India. During Vikramaditya’s time, foreign traders used to buy Indian cloth by the weight of gold.