भक्त परमात्मा को अनेकों भावों से मनाता हैं। परमात्मा की विनती करते हुए कहता हैं कि हे परमात्मा तुम मेरे स्वामी हो। मै तुम्हारे चरणों की दासी हूं ।सांस सांस से सिमर लुगी। दिल मे बिठा लुगी। नैनो में समा लुगी। तुम्हारी ज्योति रोम रोम में समाई है। तुम ही राम हो तुम ही कृष्ण हो। हे भगवान् तुमने अनेक रूप धारण कर रखे हैं। तुम सत्य स्वरूप हो जिसका न आदि हैं न अन्त है। तुम प्रकाश का पूंज परम पिता परमात्मा हो। तुम मात पिता बन्धु और सखा हो। मेरे स्वामी मेरे हाथ को थामे रखना। मुझे केवल आस तुम्हारी। तुम मेरे प्राण अधार हो। ये सब भाव हमारे अन्दर प्रेम, भक्ति, विनय और शान्ति स्थापित करते हैं। परमात्मा की विनती से हमारा हृदय आनंद से भर जाता है।
इन भावों में भक्त के अन्दर से धीरे धीरे संसार छुटने लगता है । हमे परमात्मा के नाम का जब भी समय मिले चिन्तन करते रहना चाहिए।हम चाहें भगवान् शिव का नाम ले राम कहे, कृष्ण कहकर पुकार लगाए। भगवान् के नाम की पुकार उठते-बैठते, खाते हुए, जल पिते हुए, चलते हुए, कार्य करते हुए, सुख में, दुख में प्रभु प्राण नाथ का नाम लेते रहें। दुख आने पर घबराये नहीं दिल में सोचे प्रभु मुझ पर कृपा कर रहे हैं। इसीलिए ये परिस्थिति दे रहे हैं। रात दिन सांस सांस से मेरे भगवान् को पुकारूगा। परमात्मा के नाम की पुकार हमारे विकारों की जङ को जङ से खत्म कर देती है। मनुष्य जीवन में भजन, सिमरन, कीर्तन, नाम जप, भगवान् की प्रार्थना, वन्दना के द्वारा जन्म जन्मानतर से बंधी हुई गांठे खुलने लगती है।भगवान् को जब बार बार ध्याते हैं। तब भगवान भक्त पर कृपा करके भक्ति मार्ग देते हैं। भक्त के भाग्य का उदय हो जाता है। भक्त भगवान् की शिश झुकाकर वन्दना करता है। परमात्मा जी को हाथ जोड़ कर अन्तर्मन से प्रणाम करता है। नैनो में नीर समा जाता है। वाणी गद गद हो जाती है। भक्त नैन बन्द करके जहाँ कहीं प्रभु प्राण नाथ से बात कर लेता है। प्रभु प्रेम के लिए वाणी गोण है। शरीर भी गोण है। भक्ति मार्ग में आने पर हर घङी आन्नद है। भक्त आनंद सागर में गहरा गोता लगाता है। उसका चलना चलना नहीं रहता, सोना सोना नहीं रहता भक्त की क्रिया और कर्म दोनों बदल जाते हैं। भक्त का आनंद संसार और परिवार के माध्यम का आनंद नहीं है। भक्त का आनंद अन्तर्हृदय में परम प्रभु का आनंद है। भक्त बहता हुआ झरना है। भक्त की भक्ति से अनेकों जीव तर जाते हैं। भक्त का भगवान हर चीज में समाया है। मै परमात्मा बोलती हूं तब मेरे दिल में आन्नद समा जाता है। जैसे भगवान अनेक लीला कर रहे हो मै खो जाती हूं। पल पल परम पिता परमात्मा आन्नद प्रेम शान्ति से तृप्त कर जाते हैं। अब मै कुछ भी नहीं करती मेरे भगवान् आकर सब करते हैं। मेरे भगवान् दिल मे विराजमान हो जाते हैं। भगवान के दिल में आने पर अन्दर बाहर भगवान् ही है।जय श्री राम अनीता गर्ग
Devotees celebrate God with many expressions. While praying to God, he says that O God, you are my master. I am the slave of your feet. I will keep it in my heart. Will be included in Nano. Your light is present in every pore. You are Ram, you are Krishna. Oh God, you have taken many forms. You are the true form which has neither beginning nor end. You are a bundle of light, the Supreme Father, the Supreme Soul. You are mother, father, brother and friend. My lord, hold my hand. I only hope for you. You are my life support. All these feelings establish love, devotion, humility and peace within us. Our heart is filled with joy by praying to God.
In these feelings, the world slowly starts leaving the devotee. We should keep thinking about the name of God whenever we get time. We may call the name of Lord Shiva as Ram or call him Krishna. Invoking the name of God: While getting up, sitting, eating, drinking water, walking, working, in happiness and sorrow, keep chanting the name of Lord Pran Nath. Don’t be afraid when sadness comes, think in your heart that God is blessing me. That is why they are giving this situation. I will call out to my God day and night with every breath. Calling upon the name of God eliminates the roots of our disorders. In human life, through bhajan, simran, kirtan, chanting of name, prayer and worship of God, the knots tied from birth to birth start getting untied. When we meditate on God again and again. Then God blesses the devotee and gives him the path of devotion. The fortune of the devotee rises. The devotee worships God by bowing his head. With folded hands he bows to God from his heart. Neeraj gets absorbed in nano. Speech becomes like mud. The devotee closes his eyes and talks to Lord Pran Nath wherever he is. Speech is important for love of God. The body is also secondary. When you come on the path of devotion, every moment is bliss. The devotee dives deep into the ocean of bliss. His walking ceases to be walking, sleeping ceases to be sleeping, both the actions and deeds of the devotee change. The happiness of a devotee is not the happiness of the world and family. The joy of a devotee is the joy of the Supreme Lord in the heart. A devotee is a flowing waterfall. Many living beings are nourished by the devotion of the devotee. The devotee’s God is present in everything. When I speak God, joy fills my heart. As if God is performing many acts, I get lost. Every moment the Supreme Father Almighty satisfies us with joy, love and peace. Now I don’t do anything, my God comes and does everything. God resides in my heart. When God comes into the heart, there is God inside and out.