सरजू अपनी पत्नी और मां-बाप के साथ एक गांव में रहता था। गांव में वह पिता के साथ मिलकर एक छोटी सी जमीन पर खेती करता था । खेत में काम करने पर उनको ज्यादा कमाई नहीं होती थी। बहुत ही मुश्किल से घर का गुजारा होता था। एक दिन अचानक सरजू के पिता की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। अब तो घर का गुजारा करना और भी मुश्किल हो गया। खेत से जो आमदनी होती थी अब तो वह भी आनी बंद हो गई । एक दिन सरजू अपनी मां अपनी पत्नी को लेकर शहर आ गया। शायद शहर में कोई काम मिल जाए। शहर आकर उन्होंने एक छोटा सा घर किराए पर लिया। सरजू को कपड़े के कारखाने में रंगाई करने का काम मिल गया । घर में सरजू की मां और पत्नी अचार और पापड़ बनाने का काम करने लगी। शहर में इन चीजों को बढ़ा पसंद किया जाता था। सरजू जहां काम करता था वहां कारखाने में एक आदमी सरजू का बड़ा अच्छा मित्र बन गया। वह ठाकुर जी का बड़ा भक्त था और सरजू को रोज नई नई ठाकुर जी की लीलाएं गाकर सुनाता था। सरजू को ठाकुर जी की लीलाएं सुनकर बड़ा आनंद आता था। हर रोज ठाकुर जी की कथाएं सुन सुन कर सरजू पर भी भक्ति का रंग चढ़ने लगा। वह घर आकर जो भी कुछ अपने मित्र से सुनता वह सब कुछ अपनी मां और पत्नी को सुनाता था । मां और पत्नी ठाकुर जी की लीला सुनकर बड़ी आनंदित होती थी। एक दिन सरजू ने अपने मित्र से कहा तुम जिस ठाकुर जी की कथा मुझे सुनाते हो वह दिखने में कैसे लगते हैं। मुझे तो उनकी सूरत का भी पता नहीं उनके दर्शन कब करवाओ गे। ऐसा सुनकर उसके मित्र ने अगले दिन ठाकुर जी का एक चित्रपट लाकर उसे दे दिया। वह बड़ा ही मधुर बाल गोपाल का चित्रपट था। बाल गोपाल जी बड़े मोहक थे। कानों में बड़े-बड़े कुंडल, गले में बड़े-बड़े हार, मोतियों की माला, हाथ में बाजू बंद, पांव में पायल डालकर आलती पालथी मारकर बैठे हुए थे। पास में एक माखन की बड़ी मटकी रखी हुई थी जो हीरे मोतियों से जड़ी हुई थी। माखन की मटकी माखन से भरी हो जाने के कारण बाहर की तरफ माखन गिरता हुआ दिखाई देता था। और ठाकुर जी दो उंगलियों को माखन में डुबोकर पूरे मुंह पर माखन लगाकर खा रहे थे। और मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। इतनी आकर्षक मूर्ति को देख कर सरजू अपनी सुध बुध खो बैठा। वह चित्रपट को लेकर अपने घर गया और एक अपने घर के कोने को साफ करके उस जगह पर कपड़ा बिछाकर चित्रपट को वहां रख दिया। और अपनी पत्नी से बोला यह देख मै जिस बाल गोपाल की कथा तुझे सुनाता हूं , वे यही लड्डू गोपाल है। पत्नी को बड़ी प्रसन्नता हुई वह भी लगन से ठाकुर जी की सेवा करने लगी। सरजू का बेटा 2 साल का हो गया था। वह सही से खाना नहीं खाता था ।एक दिन उसकी मां ने उससे कहा देखो बाल गोपाल भी कैसे मजे से माखन खा रहे हैं तुम भी ऐसे ही खाया करो। बेटे ने पूछा मां यह कौन है मां ने कहा यह हमारे कान्हा प्रभु है । सरजू का बेटा बड़ा ही खुश हुआ और उसने कहा कि कान्हा प्रभु मैं भी आपके साथ माखन खाऊंगा। उसकी मां ने कहा ठीक है मैं तुम्हें रोटी से माखन खिलाऊंगी और उसने रोटी का टुकड़ा भगवान के चित्रपट की मटकी पर लगा दिया और बड़े चाव से अपने बेटे को खिलाने लगी मानो जैसे वह वाकई में ही माखन रोटी खिला रही हो। उसकी ऐसी सामर्थ्य नहीं थी कि वह बाजार से माखन लाकर अपने बेटे को खिला सके। बेटा बड़े चाव से रोटी खाने लगा जैसे वाकई में ही माखन रोटी खा रहा हो। अब ऐसा हर रोज ही होने लगा । वह रोज अपने बेटे को रोटी का कौर माखन की मटकी के ऊपर लगाती और उसे खिला देती इस तरह बच्चा रोटी भी खा लेता और उसे ऐसा लगता जैसे उसने वाकई में ही माखन रोटी खाई हो। सरजू का बेटा रोज ही ठाकुर जी से बातें करता और उनसे कहता कि आप सारा माखन खा लोगे क्या मुझे नहीं दोगे ऐसा कहकर वो रसोई में से एक कटोरी लाकर उनके आगे रख देता और इधर उधर हो जाने के बाद दोबारा आ कर देखता तो कटोरी माखन से भरी मिलती। वह बड़ा खुश हो जाता माखन खा जाता और कटोरी वापस लाकर रसोई में रख देता। सरजू की पत्नी जब बर्तन मांज रही होती तो चिकनी कटोरी देखकर बच्चे से पूछ बैठी। अरे यह कटोरी इतनी चिकनी क्यों है? तब उसका बेटा कहता कि आज तो गोपाल जी ने मुझे बहुत सारा माखन खिलाया। पर उसको कोई बात समझ में नहीं आती ।और बच्चा समझकर उसे टाल देती। लेकिन आश्चर्य में पड़ी रहती की कटोरी रोज चिकनी कैसे हो जाती है।
एक दिन कारखाने में सरजू पर चोरी का इल्जाम लगाया गया। उसके मालिक ने उसे कारखाने से निकाल दिया । सरजू को बड़ा पश्चाताप हुआ। वह वापस घर आया और चुपचाप लेट गया। पत्नी ने जब पूछा कि क्या बात है तब सरजू ने बताया कि आज उसकी नौकरी चली गई उस पर झूठा चोरी का इल्जाम लगाया गया। सरजू फूट-फूट कर रोने लगा पत्नी बोली तुम्हारे यह ठाकुर जी है ना यह सब ठीक कर देंगे। सरजू की पत्नी का मन पूरी तरह से ठाकुर जी में लग गया था। वह सारे घर के काम करती और आते जाते बाल गोपाल के दर्शन करती , उन्हें प्यार करती जैसे वह अपने बच्चे को करती थी ।उसे पूरा विश्वास था कि ये जो परेशानी आई है यह सब ठाकुर जी ठीक कर देंगे। उसने मन ही मन ठाकुर जी की तरफ देखा और प्रार्थना की कि ठाकुर जी इस संकट से हमें उबा रो। अगले दिन सुबह एक आदमी दरवाजे पर आया । सरजू की मां ने दरवाजा खोला तो देखा कि गांव से एक आदमी आया है जो उनके पड़ोस में रहता था । वह बोला कि कि आपके पति ने हमारे पास वाली जमीन को खरीद लिया था लेकिन अचानक ही उनकी मृत्यु हो गई इस कारणवश मैं उनके पैसे ना दे सका आज मैंने वह जमीन बेच दी है उसका पैसा मैं आपको देने आया हूं । यह आप का हिस्सा है। कुल पांच लाख रूपए है। आपके हैं आप रख लीजिए। सरजू की मां को बड़ा आश्चर्य हुआ। क्योंकि उनके पति ने कभी कोई जमीन ली थी ऐसा तो उन्होंने कभी बताया नहीं ।पर वह आदमी नहीं माना और पांच लाख रुपए हाथ पर रख कर चला गया। जाते जाते अपना नाम मुंशीलाल बता गया । सरजू और उसकी पत्नी ने भगवान का आशीर्वाद समझ कर पैसे रख लिए। और ठाकुर जी को बड़ा धन्यवाद दिया कि अपने हमें बड़े भारी संकट से उबार लिया। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। लेकिन आश्चर्य बना रहा कि क्या पिताजी ने कोई जमीन खरीदी और हमें नहीं बताया ऐसा कैसे हो गया। उस पैसे से सरजू ने पास में ही एक दुकान खरीद ली। और आचार और पापड़ का बिजनेस शुरू कर दिया। काम इतना बढ़ा कि कुछ ही दिनों बाद ही सरजू बहुत अच्छे पैसे कमाने लगा। अब उसकी दुकान में बहुत सारे नौकर थे ।घर में हर तरीके का आराम हो गया। सरजू जो पहले एक कारखाने में नौकर था अब उसकी दुकान में ही बहुत सारे नौकर उसके नीचे काम करते थे।
एक दिन सरजू के पास एक आदमी काम मांगने आया सरजू ने उससे पूछा कहां से आए हो उसने कहा पास के ही गांव से आया हूं तुम्हारे गांव का हूं। यहां काम की तलाश में आया था ।तब सरजू ने उसे कहा कि भैया हमारे गांव के एक मुंशीलाल है जो अभी कुछ दिनों पहले ही मुझे बहुत सारा पैसा दे गए और बता रहे थे कि हमारे पिताजी ने कोई जमीन खरीदी थी। वह जमीन बेच कर हमारे हिस्से का पैसा हमें देने आए थे। इस पर वह आदमी बड़ा आश्चर्य करने लगा ।बोला कौन से मुंशीलाल की बात कर रहे हो वही जो तुम्हारे पड़ोसी हैं । अरे भैया उन्हें तो गए हुए बहुत साल हो गए वह कैसे आ सकते हैं पैसा देने। उन्हें तो स्वर्ग सिधारे हुए बहुत साल हो चुके हैं। अब तो सरजू के होश गुम हो गए उसने उस आदमी से कहा भैया ऐसे कैसे हो सकता है , मुंशीलाल तो हमारे पड़ोसी रहे हैं ।और अभी कुछ दिन पहले ही वह मुझे ₹500000 दे गए तब वह आदमी बोला भैया मुंशीलाल को मरे हुए बहुत साल हो गए। जिस जमीन की तुम बात कर रहे हो उसकी कीमत तो इतनी भी नहीं है। 500000 तो बहुत बड़ी बात है।
अब तो सरजू एकदम हक्का-बक्का रह गया । वह भागा भागा घर गया। और अपनी पत्नी को यह बात बताई। पत्नी को भी बड़ा आश्चर्य हुआ। मां को भी बड़ी हैरानी हुई। तीनों ने मिलकर ठाकुर जी के चित्रपट की तरफ देखा तो क्या देखते हैं कि ठाकुर जी के चित्रपट के सारे गहने गायब है। ठाकुर जी के कानों के कुंडल, सोने की माला, मटकी में जितने भी हीरे जवाहरात लगे थे वह सब खाली हैं ठाकुर जी बिना गहने और बिना आभूषणों के बैठे हैं ।ऐसा देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ वह सब अपना सर पीटने लगे ।उनकी आंखों से आंसू की धारा बहने लगी। तीनो सर पीट पीट कर रोने लगे कि हमारे ठाकुर जी ने हमारे लिए इतना उपकार किया। अपने सारे गहने आभूषण बेच दिए और किसी मुंशीलाल को भेज दिया जो कि अब इस दुनिया में भी नहीं है उस मुंशीलाल के रूप में खुद आकर हमें ₹500000 दे गए। सरजू जोर जोर से रोने लगा और कहने लगा , ठाकुर जी आप अपने भक्तों का दुख ना देख पाते हो अपने भक्तों का दुख दूर करने के लिए आपने अपने गहने तक बेच डालें । मैं धन्य हो गया। मैंने तो आपकी कोई भक्ति भी ना की। फिर भी आपने इतनी कृपा मुझ पर की। मैं धन्य हो गया कान्हा जी, मैं धन्य हो गया। बे तीनों ठाकुर जी के चरणों में समर्पित हो गए। सरजू की पत्नी जो ठाकुर जी को ही अपना पुत्र मानती थी। तो आज ठाकुर जी ने पुत्र होने का मोल चुका दिया।
हे गिरिधर हे गोपाल। जय हो माखन चोर की।
बोलो राधे राधे #🌸