व्रजभूमि में जन्म लेने वाले जीवों में से, चाहे वे गोप गोपियों के रूप में हों अथवा जड़ चेतन पशु पक्षी वृक्षलता वनस्पति के रूप में हो, कोई भी साधारण नहीं हैं।ये सब न जाने कितने देवी देवता, ऋषि मुनि, सिद्ध पुरूष और नारियाँ हैं, जो युगों युगों से भगवान को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या कर रहे थे।किसी ने भगवान को पुत्र रूप में प्राप्त करने लिए, किसी ने प्रभु की संतान बनने के लिए तो किसी ने भगवान को अपना पति बनाने के भाव से तपस्या की।त्रेता युग में भगवान ने मर्यादा पुरूषोत्तम रूप में अवतरण किया था, वे अपनी निश्चित मर्यादा में बँधे होने के कारण अपने सभी भक्तों की सारी इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर सके।अत: युगों युगों से तपस्या कर रहे अपने इन भक्तों की कठोर तपस्या का फल देने के लिए, उनकी सभी अधूरी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए भगवान ने द्वापर युग में सोलह कला परिपूर्णतम रूप से अवतरण किया।
श्रीकृष्ण जब यशोदा और नंदबाबा के पुत्र बन कर व्रज में आये तब व्रज की सभी गोपियों के हृदय में ममत्व और वात्सल्य की अजस्त्र धारा बह निकली।उन गोप गोपियों को श्री कृष्ण को पुत्रवत् सुख देना था।ये गोपियाँ श्रीकृष्ण को वात्सल्य भाव से भजतीं थीं।श्रीकृष्ण की साँवली छटा, मोहिनी मुस्कान, अलौकिक सौंदर्य गोपियों को प्रतिक्षण पागल बनाये रखती और वे नन्हें शिशु की एक झलक पाने के लिये, अपना ममत्व वात्सल्य सब कुछ उस पर वार देने के लिये बार बार यशोदाजी के घर जातीं, बालक की एक झलक दिखा देने के लिए यशोदा जी के निहोरे करतीं-
‘यशोदा तेरौ चिरंजीवै नंदलाल’
‘नैंक सी झलक दिखा दै नंदरानी’
और अपने प्यारे नन्हें बालकुँवर की एक हल्की सी झलक के दर्शन करके ही वे ममता और वात्सल्य से ओतप्रोत गोपियाँ, नैसर्गिक सुख का अनुभव करतीं और अपने भाग्य को सराहतीं।श्रीकृष्ण की अन्य और बाल सु़लभ लीलाओं में, विशेषकर माखन चोरी लीला में इन्हीं गोपियों ने और अधिक पुत्रवत् सुख पाया।
श्रीकृष्ण ने नन्हें नटखट माखन चोर बन कर प्रत्येक गोपी के साथ खूब शरारतें की और उन्हें मातृ सुख प्रदान किया।गोपियाँ बढ़िया से बढ़िया माखन जमा कर, उसे श्रीकृष्ण की पहुँच के अंदर ही छीके पर टाँग कर, छिप कर अपने नन्हें माखनचोर के आने की बाट जोहा करतीं थीं कि कब मेरा नन्हा लला आये और मेरा माखन चुरा कर खाये।
श्री कृष्ण के बराबर की गोपियाँ, जो उनसे एक ढेड़ साल पहले जन्मी अथवा उनके कुछ दिन बाद जन्मी, वे नन्हीं नन्हीं बालिकायें श्रीकृष्ण के साथ ही खेलती कूदती, लड़ती झगड़ती, रूठती मनाती ….. फिर जरा बड़े होने पर श्रीकृष्ण से अपनी मटकी तुड़वाती, श्रीकृष्ण का पीताम्बर खींचतीं, इन्ही सब बालसुलभ क्रिया कलापों के साथ श्रीकृष्ण के साथ साथ ही, धीरे धारे बड़ी होने लगी।बचपन के जाने और किशोर अवस्था के आने की वय संधि पर, जैसा कि साधारण तौर पर अधिकाँशत बालिकायें अच्छा पति पाने की अभिलाषा से देवी के व्रत रखतीं हैं, इन्होंने भी श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कात्यायनी देवी के व्रत रखे।भक्त की भक्ति भगवान कैसे न स्वीकार करें।भक्ति स्वीकार हुई और इन बालिकाओं को रास लीला का आमंत्रण मिला।
महारास में सम्मिलित होने वाली गोपियाँ कोई साधारण स्त्रियाँ नही थीं, अपितु वेद की ऋचाऐं …. वेद की एक लाख ऋचाऐं, जिनमें 80 हजार कर्मकांड, 16 हजार उपासना कांड और चार हजार ज्ञान कांड की हैं, जिन्होंने श्रीकृष्ण प्राप्त करने लिये कठोर तपस्या की थी। कुछ दण्डक वन के ऋषि मुनि थे, जो युगों युगों से भगवान को प्राप्त करने के लिए कठिन तप कर रहे थे।कुछ आसुरी कन्यायें थीं जो श्रीकृष्ण को पति रूप में पाना चाहतीं थीं एवं प्रभु के वे भक्त थे जिन्होंने प्रभु की अराधना कर गोपियों की देह प्राप्त की थी। महारास में भगवान ने अपने दिये हुये वचन के अनुसार इन सभी को आमन्त्रित किया और अपना वचन निभाया।महारास में एक गोपी केवल एक बार ही आमंत्रित की गई।हर बार महारास में नई नई गोपियाँ आमंत्रित की गई।भगवान को तो सबकी तपस्या का फल देना था, सबका बारी बारी से मोक्ष करना था।इसलिए केवल श्रीराधा के अतिरिक्त किसी और गोपी की कभी पुनरावृत्ति नहीं हुई।
रासलीला देह लीला नहीं, विदेह लीला है।सब नारियाँ-बालिकाएँ अपने गृहों में हैं और मानसिक रूप से श्रीकृष्ण से एकाकार होकर वे सब दौड़ी भी आ रही हैं। सब किशोरियाँ हैं, न बालिकाएँ और न तरुणियाँ।
रासलीला अवतार लीला नहीं है।अवतार लीला के रूप में श्रीकृष्ण नंदगृह में मैया के समीप शैय्या पर ही बने रहे। वे वन में गये ही नहीं रात्रि को। गोपियाँ भी सब पार्थिव देह से अपने घरों में ही रहीं। रासलीला तो दिव्य लीला है दिव्य देहों से हुई। अन्यथा रास के समय श्रीकृष्ण की आयु आठ वर्ष एक मास, बाईस दिन की थी। श्रीराधा इनसे केवल कुछ महीने,एक वर्ष से भी कम,बड़ी है। उनकी सखियों में भी कोई उनसे दो वर्ष से अधिक बड़ी नहीं हैं।
महारास-महामिलन है आत्मा और परमात्मा का। इस महामिलन में न तो काम है, न गोपियों में परस्वार्थ ईर्ष्या है, न कुछ पाने की इच्छा है।यह कामना रहित प्रेम का शुद्धतम रूप है जो भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्ति करने वाले भक्त पर प्रभु की अपरिमित कृपा है। भक्त से भगवान, आत्मा से परमात्मा, नर से नारायण के मिलन का नाम महारास है।
महारास भगवान कृष्ण और गोपियों की अद्भुत अविभूत कर देने वाली नृत्य संगीत की अनुपम लीला है जिसमें सदेह होकर विदेह का वर्णन मिलता है- चेतना का परम चेतना से मिलन, भक्ति की शुद्धतम अवस्था है यह। भक्त का भगवान से, जीव का ब्रह्म से, साकार का निराकार से, ज्योति का परम ज्योति से, अस्तित्व का महा अस्तित्व से महामिलन। महारास, एक ऐसा परम दिव्य सौंदर्य माँ कालिन्दी के तट पर बिखरा कि प्रकृति भी हतप्रभ रह गई, कल कल करता कालिन्दी का नीर भी अपनी लहरों को विस्मृत कर उस अविस्मरणीय छटा को निहारता रहा-
वंशी की धुन गूँजी
नीलवरन हुई श्वाँस राधा की।
बाबरी हुई आँखें
श्याम रंग है राती
पूजा के दीये सी
देह हुई है बाती
हँसतीं ही रहती है
फूलों की छुई श्वाँस राधा की।
वह नख से शिख तक
पूनों का रास हुई
नव कदम्ब के सुमनों सी
मदमाती सुबास हुई
यमुना का जल बहका
छूकर जल कुई श्वाँस राधा की।
Among the living beings born in Vrajbhoomi, whether they are in the form of gopes or gopis or in the form of non-living animals, birds, trees, plants, no one is ordinary. There are many gods and goddesses, sages, sages, perfect men and women. There are those who were doing severe penance for ages to get God. Some did penance to get God as a son, some to become God’s child and some to make God their husband. In the Treta Yuga, the Lord incarnated as Maryada Purushottam, he could not fulfill all the desires of all his devotees due to being bound by certain limits. To give fruits, to fulfill all their unfulfilled desires, the Lord incarnated in the form of sixteen celestial degrees in Dwapara Yuga.
When Shri Krishna came to Vraj as the son of Yashoda and Nandbaba, then in the hearts of all the gopis of Vraj, the unlimited stream of affection and affection flowed. Those gopis had to give the happiness of a son to Shri Krishna. These gopis used to worship Shri Krishna with affection. Shri Krishna’s dark complexion, seductive smile, supernatural beauty used to drive the gopis crazy every moment and they used to go to Yashodaji’s house again and again to get a glimpse of the little baby, to shower their love and affection on him, a glimpse of the child. To show off, she used to gaze at Yashoda ji.
‘Yashoda Teru Chiranjeevi Nandlal’
‘Nank Si Jhalak Dikha The Nandrani’
And just by seeing a glimpse of their beloved little child, the Gopis, who are full of love and affection, feel natural happiness and appreciate their fortune. Got more son’s happiness.
Shri Krishna disguised himself as a mischievous butter thief and played a lot of mischief with each of the gopis and gave them motherly happiness. Used to wait when my little son would come and steal my butter and eat it.
Gopis equal to Shri Krishna, who were born a year and a half before him or a few days after him, those little girls used to play with Shri Krishna, jump, fight, fight, sulk….. then when they grow up, they make Shri Krishna break their pots. With all these child-friendly activities, along with Shri Krishna, she slowly started growing up. At the age of leaving childhood and coming into adolescence, as in general, most of the girls desire to get a good husband. Since then, she kept fast to Goddess Katyayani to get Shri Krishna as her husband. How can God not accept the devotion of the devotee.
The Gopis participating in the Maharas were not ordinary women, but the hymns of the Vedas. There are one lakh hymns of Vedas, in which 80 thousand rituals, 16 thousand worship rituals and 4 thousand knowledge rituals, which had done severe penance to get Shri Krishna. Some were sages of the Dandak forest, who had been doing severe penance for ages to attain God. Some were demonic girls who desired to have Sri Krishna as their husband and were devotees of the Lord who worshiped the Lord and killed the gopis. Had received the body. In Maharas God invited all of them according to his promise and kept his promise. A gopi was invited only once in Maharas. Every time new gopis were invited in Maharas. It was to be given, everyone had to get salvation in turn. That’s why no other Gopi was ever repeated except Shriradha.
Raasleela is not body leela, it is videh leela. All the women and girls are in their homes and mentally united with Shri Krishna, all of them are also running. All are teenagers, neither girls nor young women.
Rasleela is not Avatar Leela. In the form of Avatar Leela, Shri Krishna remained on the bed near Maiya in Nandgriha. He did not go to the forest at night. The gopis also remained in their homes from their earthly bodies. Raasleela is a divine leela performed with divine bodies. Otherwise, Shri Krishna’s age at the time of Raas was eight years, one month, twenty-two days. Shriradha is only a few months, less than a year older than him. None of her friends is more than two years older than her.
Maharas-mahamilan is the meeting of the soul and the Supreme Soul. There is no work in this Mahamilan, no selfish jealousy in the Gopis, no desire to get anything. This is the purest form of desireless love which is the infinite grace of the Lord on the devotee who does undivided devotion to Lord Krishna. Maharas is the name of meeting of devotee with God, soul with divine, male with Narayan.
Maharas Lord Krishna and Gopis’ amazing wonderful dance is a unique leela of music in which the description of Videha is found in the body – the union of consciousness with the supreme consciousness, this is the purest state of devotion. The union of the devotee with the Lord, of the soul with the Brahman, of the corporeal with the formless, of the light with the supreme light, of existence with the great existence. Maharas, such a supreme divine beauty was scattered on the banks of Maa Kalindi that even nature was stunned, yesterday the water of Kalindi, forgetting its waves, kept gazing at that unforgettable shade-
Vanshi’s tune echoed
Radha’s breath became blue.
sunken eyes
night is dark
worship lamps
the body is the wick
keeps smiling
Radha’s breath touched the flowers.
from fingernail to toenail
Poon’s Raas Hai
Like the summons of Nava Kadamba
intoxicating smell
Yamuna water flowed
Radha’s breath touched the water.