बच्चा छोटा है, पर पूरा है
कहीं एक बड़ी मनोवैज्ञानिक लघुकथा पढ़ी थी, जो प्रत्येक अभिभावक, प्रत्येक शिक्षकको न केवल पढ़नी चाहिये, बल्कि रोजमर्राकी घटनाओंमें अमलकी दृष्टिसे उसपर चिन्तन भी करना चाहिये ।
एक महिलाने अपने पति और छोटे बच्चेको भोजन परोसा और भोजनके उपरान्त दोनोंको एक-एक लड्डू दिया; पतिको पूरा लड्डू और बेटेको आधा लड्डू। बच्चा मचल गया और जिद करने लगा कि मुझे भी पूरा लड्डू दो। माँने बहुत समझाया कि देखो, पिताजी बड़े हैं, इसलिये उनका लड्डू पूरा है और तुम छोटे हो, इसलिये तुम्हारा लड्डू आधा है, लेकिन बच्चा नहीं माना और रोने लगा।
तब माँने कुछ सोचा। वह बच्चेका आधा लड्डू लेकर रसोईघरमें गयी और उसी आधे लड्डूको हाथसे पूरा गोल बना दिया।
बाहर आकर उसने जब वह लड्डू बच्चेको दिया तो बच्चेने बड़ी खुशीसे वह छोटा लेकिन पूरा लड्डू खा लिया।
बात यह कि ‘पिताजी पूरे, मैं आधा’, यह बात बच्चेको हजम नहीं हुई। हाँ, ‘पिताजी बड़े और मैं छोटा’ यह बात बच्चेको न्यायपरक लगी।
बच्चा छोटा है, लेकिन अपने-आपमें पूरा है और यह भाव वह अनुभव भी करता है, बस अनेक बार वह अपनी भावनाओंको शब्द नहीं दे पाता, लेकिन होशियार माँ उसकी अनकही बातको समझ जाती है।
उसकी छोटी-छोटी समस्याएँ (चाहे वह पेंसिल चोरीकी हों, या रबड़-खोनेकी) हमारे लिये छोटी भले ही हों, लेकिन आधी उपेक्षणीय कतई नहीं; क्योंकि उसके लिये वह समस्या उतनी ही बड़ी-पूरी है, जैसे कि हमारे लिये हजारोंकी चोरी।
और सबसे बड़ी बात, बच्चोंकी छोटी समस्याओंकी उपेक्षा करनेसे एक माँ उसका बेहद कीमती भरोसा भी खो सकती है और बच्चेकी समस्याको गम्भीरतासे लेकर हम उसका कीमती भरोसा अर्जित भी कर सकते हैं। विद्यालयमें यही दायित्व शिक्षकका भी होता है।
baby small but perfect
Had read somewhere a great psychological short story, which every parent, every teacher should not only read, but should also think about it from the point of view of implementation in everyday events.
A woman served food to her husband and a small child and after the meal gave a laddu to both of them; Whole laddu for husband and half laddu for son. The child got agitated and started insisting that he should also give me the whole laddu. Mother explained a lot that look, father is big, that’s why his laddu is full and you are small, that’s why your laddu is half, but the child did not agree and started crying.
Then mother thought something. She took half of the child’s laddu and went to the kitchen and made the same half of the laddu completely round with her hand.
When he came out and gave that laddu to the child, the child ate that small but whole laddu very happily.
The thing is that the child could not digest that ‘Father is whole, I am half’. Yes, ‘Father is elder and I am younger’, the child found this statement justified.
The child is small, but complete in itself and he also feels this feeling, just many times he cannot give words to his feelings, but the clever mother understands his unspoken words.
His small problems (be it pencil-stealing, or eraser-losing) may be small to us, but not half-ignoble at all; Because for him that problem is as big as the theft of thousands for us.
And above all, by neglecting the small problems of the children, a mother can lose her very precious trust and by taking the child’s problem seriously, we can also earn her precious trust. The teacher also has the same responsibility in the school.