ईश्वरीय विधान ही कल्याणकारी
एक छोटेसे गाँवमें एक व्यापारी था। उसके पास रुपयोंकी कुछ बहुतायत हो गयी उनसे उसने माल खरीदनेका तथा शेष रुपये एक साहूकारके यहाँ अमानत रखनेका विचार किया। दूसरे दिन खूब तड़के जाना है. ऐसा निश्चय करके वह रातको सो गया। रातको पेशाब करने उठा और अँधेरेमें सीढ़ीसे सरककर गिर गया। चोट लगी, पर प्राण बच गये। लेकिन इससे दूसरे दिन उसका शहरका जाना रुक गया।
उस गाँवमें एक विश्वासी भक्त रहता था और वह सेठके घर कभी-कभी आया-जाया करता था। जब सेठके गिरनेकी बात सुनी तो वह भक्त दूसरे दिन उसके घर गया। सेठने भक्तसे सारी बातें कहीं तो भक्तने कहा- ‘ईश्वर जो करता है, सब भलेके लिये।’ यह सुनते ही सेठको बड़ा क्रोध आया, परंतु क्रोधको कुछ दबाकर वह बोला ‘भगत। तुम तो एकदम गँवार ही हो, मुझे इतनी चोट लगी कि मेरा दूसरे गाँवका जाना रुक गया और मेरा जरूरी काम बिगड़ गया और तुम कहते हो कि ‘जो ईश्वर करता है, सब भलेके लिये।’ यह मैं कैसे मानूँ? अबतक तो ईश्वरने मेरा कोई भला किया हो, यह देखनेमें नहीं आया: बुरा किया है, सो तो प्रत्यक्ष है।’
प्रत्युत्तर देते हुए भगतने कहा-‘सेठ! तुम्हारी दृष्टि केवल वर्तमान कालको ही देख सकती है. भविष्यके गर्भ में तुम्हारी दृष्टि नहीं पहुँचती। इसीसे तुम ऐसा कह रहे हो, परंतु मैं तो अब भी कहता हूँ कि भगवान् जो करता है, वह हमारे हितके लिये ही होता है, भले ही हम उसे न देख सकें।’
कुछ दिनों बाद भगत सेठके यहाँ गया, तब सेठने उसके पैरोंमें पड़कर कहा-‘भगतजी! तुम्हारी सब बातें सच्ची हैं। यदि मैं उस दिन नहीं गिरा होता, तो मैं जरूर शहरकी ओर गया होता और मेरी मृत्यु हो गयी होती. तथा साथ ही बहुत-सा धन भी चला जाता। ठगोंको मेरे जानेकी खबर लग गयी थी और उन्होंने मुझे मारकर मेरा धन लूट लेनेकी पूरी साजिश की थी, परंतु ईश्वरने मेरी यात्रा रोककर मुझे बचा लिया। सूलीके कष्टको काँटा गड़ाकर ईश्वरने दूर कर दिया और मूर्ख काँटा गड़ जानेके कारण अपनी लापरवाहीको दोष देनेके बदले ईश्वरको दोष देने लगा।’
[ ब्रह्मलीन संत स्वामी श्रीचिदानन्दजी सरस्वती, सिहोरवाले]
divine law is good
There was a businessman in a small village. He got some abundance of money with him, he thought of buying goods and keeping the remaining money in trust with a moneylender. Have to go very early the next day. With this determination, he slept at night. Woke up to urinate at night and fell down the stairs in the dark. He was hurt, but his life was saved. But this stopped his going to the city the next day.
A faithful devotee lived in that village and he used to visit Seth’s house sometimes. When he heard about Seth’s fall, that devotee went to his house the next day. When Seth told all the things to the devotee, the devotee said – ‘Whatever God does, everything is for good.’ Seth got very angry on hearing this, but after suppressing his anger, he said ‘Bhagat. You are a complete idiot, I was hurt so much that I stopped going to another village and my important work got spoiled and you say that ‘what God does, all is for good’. How do I believe this? Till now I have not been able to see that God has done me any good: I have done bad, so it is visible.’
Responding, the devotee said – ‘Seth! Your vision can only see the present tense. Your vision does not reach the womb of the future. That’s why you are saying this, but I still say that whatever God does, it is for our benefit only, even if we cannot see it.’
After a few days Bhagat went to Seth’s place, then Seth fell at his feet and said – ‘ Bhagatji! All your words are true. If I had not fallen that day, I would have surely gone towards the city and would have died. And along with that a lot of money would also have gone away. The thugs had come to know about my departure and had hatched a complete conspiracy to kill me and loot my money, but God saved me by stopping my journey. God removed the pain of the crucifixion by inserting a thorn and instead of blaming his carelessness, the fool started blaming God for the thorn being inserted.’
[Brahmlin Saint Swami Shrichidanandji Saraswati, Sihorwale]