अहंकारी नहीं, विनम्र बनें
रूसके एक महान् विचारक हुए हैं-‘आस्पेन्स्की ‘सत्यका सिद्धान्त’ नामक उनकी एक कृतिको श्रेष्ठतम कृतियोंमें स्थान प्राप्त हुआ। एक बार वे विचारक गुरजिएफके पास पधारे और अपना जिज्ञासु भाव प्रकट किया। गुरजिएफ जानते थे कि यह एक महान् संत हैं सीधी बात करनेसे कुछ प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा। एक कोरा कागज देते हुए गुरजिएफने कहा- ‘आस्पेन्स्की, जो कुछ तुम जानते हो और जो नहीं जानते हो, वह दोनों इस कागजपर लिख दो। जो तुम जानते हो, उसकी चर्चा करना व्यर्थ होगा। जो तुम नहीं जानते, उस विषयपर वार्ता होगी।
बात तो बहुत सरल थी, परंतु बड़ी कठिनाई हो गयी। आस्पेन्स्की चक्करमें पड़ गये। जिसका उन्हें ज्ञानाभिमान था, वह सब चूर हो गया। आत्मा-परमात्माके विषयकी खूब जानकारी थी उन्हें, परंतु आत्मा क्या है,
परमात्मा क्या है, यहाँ कभी दृष्टि ही नहीं गयी। विभिन्न तत्वोंके विषयमें खूब लिखा था उन्होंने. परंतु तत्त्वका स्वरूप क्या है. यह बात कभी सोची ही नहीं। उन्होंने गुरजिएफके चरणोंमें कोरा कागज रख दिया और कहा “महाराज! मैं कुछ नहीं जानता, आपने मेरी आँखें खोल दो।” विनम्रतासे गुरजिएफ बोले- ‘ठीक है, अब तुमने जाननेयोग्य पहली बात जान ली कि तुम कुछ नहीं जानते। यह ज्ञानकी पहली सीढ़ी है अब तुम्हें कुछ सिखाया बताया जा सकता है।
वास्तविकता यह है कि हम कुछ नहीं जानते हैं, किंतु सर्वज्ञ होनेका भार ढोये चले आ रहे हैं। हमारी स्थिति तो कूपमण्डूकके जैसी ही है। अहंकारके कारण व्यक्ति स्वकेन्द्रित हो जाता है, अपने भीतर सिमटता है, बाहर आता है तो सबपर हावी होनेके लिये। [ श्रीबंकटलालजी आसोपा ]
don’t be arrogant be humble
There has been a great thinker of Russia – ‘Ospensky’ one of his works named ‘Principle of Truth’ got a place in the best works. Once he came to thinker Gurdjieff and expressed his curiosity. Gurdjieff knew that this is a great saint, no purpose would be achieved by speaking directly. Giving a blank paper, Gurdjieff said- ‘Ospensky, whatever you know and whatever you don’t know, write both on this paper. It would be futile to discuss what you know. What you do not know, there will be a discussion on that topic.
The matter was very simple, but it became very difficult. Ouspensky got confused. Whatever he had pride in his knowledge, all that got shattered. He had a lot of knowledge about the soul-God, but what is the soul,
What is God, the vision never went here. He had written a lot about various elements. But what is the nature of the element. Never thought about this. He put the blank paper at Gurdjieff’s feet and said, “Your Majesty! I don’t know anything, you open my eyes.” Gurdjieff politely said – ‘Okay, now you know the first thing to be known is that you know nothing. This is the first step to knowledge, now you can be taught something.
The reality is that we do not know anything, but have been carrying the burden of being omniscient. Our condition is like that of a well. Due to ego, a person becomes self-centered, gets confined within himself, comes out only to dominate everyone. [Shribankatlalji Asopa]