एक अतिश्रेष्ठ व्यक्ति थे ! एकदिन उनके पास एक निर्धन आदमी आया और बोला कि मुझे अपना खेत कुछ साल के लिये उधार दे दीजिये मैं उसमे खेती करूँगा और खेती करके कमाई करूँगा वह अतिश्रेष्ठ व्यक्ति बहुत दयालु थे ! उन्होंने उस निर्धन व्यक्ति को अपना खेत दे दिया और साथ में पांच किसान भी सहायता के रूप में खेती करने को दिये और कहा कि इन पांच किसानों को साथ में लेकर खेती करो, खेती करने में आसानी होगी,
इस से तुम और अच्छी फसल की खेती करके कमाई कर पाओगे !
वो निर्धन आदमी ये देख के बहुत खुश हुआ कि उसको उधार में खेत भी मिल गया और साथ में पांच सहायक किसान भी मिल गये!
लेकिन वो आदमी अपनी इस ख़ुशी में बहुत खो गया और वह पांच किसान अपनी मर्ज़ी से खेती करने लगे और वह निर्धन आदमी अपनी ख़ुशी में डूबा रहा और जब फसल काटने का समय आया तो देखा कि फसल बहुत ही ख़राब हुई थी उन पांच किसानो ने खेत का उपयोग अच्छे से नहीं किया था न ही अच्छे बीज डाले जिससे फसल अच्छी हो सके !
जब उस अतिश्रेष्ठ दयालु व्यक्ति ने अपना खेत वापस माँगा तो वह निर्धन व्यक्ति रोता हुआ बोला कि मैं बर्बाद हो गया मैं अपनी ख़ुशी में डूबा रहा और इन पांच किसानो को नियंत्रण में न रख सका न ही इनसे अच्छी खेती करवा सका !
अब यहाँ ध्यान दीजियेगा -…
वह अतिश्रेष्ठ दयालु व्यक्ति है – ‘मेरे सतगुरु’
निर्धन व्यक्ति है – ‘हम’
खेत है – ‘हमारा शरीर’
पांच किसान है ‘हमारी इन्द्रियां’ – आँख,कान,नाक,जीभ और मन !
प्रभु ने हमें यह शरीर रुपी खेत अच्छी फसल ( कर्म ) करने को दिया है और हमें इन पांच किसानो को अर्थात इन्द्रियों को अपने नियंत्रण में रख कर कर्म करने चाहिये जिससे जब वो दयालु प्रभु जब ये शरीर वापस मांग कर हिसाब करें तो हमें रोना न पड़े ..!!
मेरे_श्याम…………
मेरे सांवरे नजर नहीं आते फिर भी,
इन्तजार क्यों है………..
तुम ही बताओ तुमसे हमें
इतना_प्यार क्यों है………!!
रिश्ता तेरा मेरा कान्हा ……….!!