एक भगवद्भक्त कहीं यात्रा करने निकले थे। पर्वतकी एक गुफाके सम्मुख उन्होंने बहुत बड़ी भीड़ देखी। पता लगा कि गुफामें ऐसे संत रहते हैं जो वर्षमें केवल एक दिन बाहर निकलते हैं। वे जिसे स्पर्श कर देते हैं उसके सब रोग दूर हो जाते हैं। आज उनके बाहर निकलनेका दिन है। रोगियोंकी भीड़ वहाँ रोगमुक्त होनेकी आशामें एकत्र है।
भगवद्भक्त वहीं रुक गये। निश्चित समयपर सं गुफामेंसे निकले। सचमुच उन्होंने जिसका स्पर्श किवह तत्काल रोगमुक्त हो गया। जब सब रोगी लौट रहे थे स्वस्थ होकर तब भक्तने संतकी चद्दरका कोना पकड़ लिया और बोले- ‘आपने औरोंके शारीरिक रोगोंको दूर किया है, मेरे मनके रोगोंको भी दूर कीजिये ।’
संत जैसे हड़बड़ा उठे और कहने लगे- ‘ छोड़ जल्दी मुझे। परमात्मा देख रहा है कि तूने उसका पल्ला छोड़कर दूसरेका पल्ला पकड़ा है।’
अपनी चद्दर छुड़ाकर वे शीघ्रतासे गुफामें चले गये।
A Bhagavad devotee had gone out to travel somewhere. He saw a huge crowd in front of a cave in the mountain. It was found that such saints live in the cave who come out only one day in a year. Whoever they touch, all his diseases go away. Today is his exit day. Crowds of patients gather there in the hope of getting cured.
Bhagwad devotees stopped there. San came out of the cave at the appointed time. Truly, the one whom he touched became free from disease immediately. When all the patients were returning after getting cured, the devotee caught hold of the corner of the saint’s blanket and said – ‘You have removed the physical diseases of others, also remove the diseases of my mind.’
The saint got agitated and started saying – ‘Leave me quickly. God is seeing that you have left his side and taken the other’s side.’
After getting rid of his cloak, he quickly went to the cave.