एक बार श्रीसूरदासजी बादशाह अकबरके दरबारमें विराज रहे थे। उनसे पूछा गया कि ‘कविता सर्वोत्तम किसकी है, निष्पक्ष भावसे बतलाइये।’ श्रीसूरदासजीने कहा – ‘कविता मेरी सर्वोत्तम है।’ इसपर बादशाहको संतोष न हुआ। उसने आश्चर्यसे पूछा- ‘मैं समझ नहीं सका। आपने अपनी कविताको सबसे उत्तम कहा भी कैसे ? क्या इसमें कोई रहस्य है? गोस्वामी तुलसीदासजीकीकविताके सम्बन्धमें आपका क्या मत है ?’ श्रीसूरदासजीने हँसकर कहा – ‘गोस्वामीजीकी कविता तो कविता है ही नहीं, मैं तो उसे सर्वोत्तम महामन्त्र मानता हूँ। मैंने जो अपने काव्यकी श्लाघा की सो तो इसलिये कि उसमें सर्वत्र भगवन्नामयश अङ्कित है।’ इसके बाद सूरदासजीने गोस्वामीजीका पूरा परिचय तथा बड़ी प्रशंसा सुनायी।
Once Shrisurdasji was sitting in the court of Emperor Akbar. He was asked, ‘Whose poem is the best, tell me in a fair way.’ Shri Surdasji said – ‘My poem is the best.’ The king was not satisfied with this. He asked in surprise – ‘I could not understand. How did you call your poem the best? Is there any secret in this? What is your opinion regarding the poetry of Goswami Tulsidas? Shrisurdasji laughed and said – ‘Goswamiji’s poem is not a poem at all, I consider it the best Mahamantra. When I praised my poetry, it is because Bhagwannamayesh is written everywhere in it. After this, Surdasji narrated Goswamiji’s full introduction and great praise.