मायाका मुखौटा
(स्वामी श्री अमरानन्दजी )
रामपुर नामक गाँव नगरसे कुछ मीलकी दूरीपर स्थित था। दिसम्बरका उत्तरार्ध चल रहा था। हर सालकी तरह इस साल भी हरि रामपुरमें आया हुआ था। वह बहुरूपियेका काम करता था। प्रतिदिन अपराह्नके समय वह विभिन्न प्रकारके वेश धारण करके गाँवमें निकलता किसी दिन संन्यासीका, तो किसी दिन भिखारीका, किसी दिन राजाका तो किसी दिन सिपाहीका। विशेषकर बच्चोंमें उसका अभिनय बड़ा ही लोकप्रिय था। वह अपने पास तरह-तरहके पोशाक, मुखौटे तथा रंग रखता था ।
दिसम्बर माहके अन्तिम रविवारको रामपुरके दो प्रमुख स्कूलों-मॉडल स्कूल और आदर्श स्कूलके बीच क्रिकेट मैच आयोजित हुआ था। दोनों टीमें तगड़ी थीं और मैचके सम्भावित नतीजेको लेकर छात्रोंमें बड़ी उत्सुकता फैली हुई थी। मैचमें बच्चोंका इतना आकर्षण देखकर उस दिन हरिने भी छुट्टी मनानेकी सोची।
आखिरकार मैच समाप्त हुआ। मॉडल स्कूलकी जीत हुई थी। तबतक संध्याका धुंधलका भी घिरने लगा था। मॉडल स्कूलके छात्र अपनी टीमकी सफलतापर फूले नहीं समा रहे थे। उनमें से कुछ लड़के अँधेरा हो जानेतक मैदानमें खुशी मनाते रहे। विपिन बाकी बच्चोंसे थोड़ा बड़ा था। उसने बच्चोंको घर लौट जानेकी सलाह दी। बच्चे तब भी मैचकी ही चर्चा में मशगूल होकर मैदानके कोनेकी एक झाड़ीके पाससे होकर गुजर रहे थे।
सहसा विपिनने देखा कि चमकीली आँखों और बड़े बड़े पंजोंवाला एक धारीदार बाघ झाड़ियोंमें छिपा बैठा है। वह चिल्ला उठा- ‘ठहरो! बाघ है!’ निश्चय ही वह किसी असावधान राहगीरको पकड़नेके लिये वहाँ घात लगाये बैठा है। कुछ लड़के सहमकर वहीं बैठ गये, कुछ भागने लगे और कुछ वहीं जड़ीभूत होकर खड़े रह गये
उस पूरी टोलीमें यतीन सबसे साहसी था। वह सबके पीछे-पीछे आ रहा था, इसलिये उसने थोड़ी दूरीसे सारा वाकया देखा। उसे सूर्यास्तके बाद इतनी जल्दी बाघका निकलना थोड़ा अस्वाभाविक-सा लगा। अपनी सुरक्षित दूरीसे उसने ध्यानपूर्वक उस जानवरका निरीक्षण किया। उसने देखा कि बाघके पाँवोंके पीछे मनुष्यके हाथ-पाँव छिपे हुए हैं। साहस जुटाकर वह तत्काल झाड़ीके पास जा पहुँचा और हरिसे अपना मुखौटा उतार देने को कहा। झाड़ीकी ओरसे जोरकी हँसीकी आवाज आयी। अब सभी बच्चोंने हरिका खेल समझ लिया था। अब उन्हें पूरी घटना इतनी मजेदार लग रही थी कि हँसते-हँसते उनके पेटमें बल पड़ गये। हरिका खेल पूरा हो चुका था। अब लड़कोंको और डराना सम्भव नहीं था, इसलिये वह चलता बना।
यही खेल मायाका है, एक बार यदि हम मायाका खेल समझ जायँ, तो वह हमें दुबारा बुद्ध नहीं बना सकती।
mayaka mask
(Swami Shri Amaranandji)
A village named Rampur was located a few miles away from the city. It was late December. Like every year, this year also Hari had come to Rampur. He used to work as an impersonator. Every day in the afternoon, he used to come out in the village wearing different types of clothes, some day as a monk, some day as a beggar, some day as a king and some day as a soldier. His acting was very popular especially among children. He used to keep different types of costumes, masks and colors with him.
On the last Sunday of December, a cricket match was organized between two prominent schools of Rampur – Model School and Adarsh School. Both the teams were strong and there was a lot of curiosity among the students regarding the likely outcome of the match. Seeing so much attraction of the children in the match, Hari also thought of taking a holiday that day.
Eventually the match ended. Model School had won. By then the twilight of the evening had also started gathering. The students of Model School could not contain their excitement over the success of their team. Some of the boys kept rejoicing in the field till it got dark. Vipin was a little older than the rest of the children. He advised the children to return home. Even then, the children were passing by a bush in the corner of the ground engrossed in the discussion of the match.
Suddenly Vipin saw that a striped tiger with bright eyes and big claws was hiding in the bushes. He shouted – ‘Stop! There is a tiger!’ Surely he is lurking there to catch an unwary passer-by. Some boys sat there fearfully, some started running and some remained standing there motionless.
Yatin was the bravest of the whole group. He was following everyone, so he saw the whole incident from a little distance. He found it a bit unusual for the tiger to come out so soon after sunset. He carefully inspected the animal from his safe distance. He saw that man’s hands and feet were hidden behind the tiger’s feet. Mustering courage, he immediately went to the bush and asked Hari to remove his mask. Loud laughter came from the side of the bush. Now all the children had understood Harika’s game. Now he was finding the whole incident so funny that he felt strong in his stomach while laughing. Harika’s game was over. It was not possible to scare the boys anymore, so he kept on walking.
This is Maya’s game, once we understand Maya’s game, it cannot make us Buddha again.