चित्तकी वासनाओंसे मुक्तिका उपाय
हम अकसर यह सोचते हैं कि भजन करनेसे पूर्व हमारा चित्त पूर्णरूपसे निर्द्वन्द्व हो जाय और चित्तमें पूर्णरूपसे शुचिता व्याप्त हो जाय, तब हम भजन करेंगे। पर क्या कभी आपने सोचा है कि चित्तको पूर्णरूपसे संस्कारों, कुसंस्कारोंसे मुक्ति दिलाना सरल नहीं है। यह अचारके उस बर्तन के समान हैं, जो अचारके पूर्णरूपसे खाली होनेके पश्चात् भी अपनी गन्ध नहीं छोड़ता, चाहे जितना उसे धो लिया जाय। अतः चित्तशुद्धिका उपाय क्या है? अन्तःकरणकी खटपटके चलते इसे गन्धमुक्त करना हो, तो हमें उसमें नामजपरूपी अधिक सुवासित द्रव्य रखकर उसे सुगमतासे शोधित करना चाहिये। यह विषयाभिलाषरूपी गन्धको दरकिनार कर | देगा। अतः नामजपकी उपादेयता हर समय ही स्वतः सिद्ध
Remedy to get rid of the desires of the mind
We often think that before doing bhajan, our mind becomes completely free from conflict and complete purity prevails in the mind, then we will do bhajan. But have you ever thought that it is not easy to completely free the mind from the sanskars and bad sanskars. It is like a pickle vessel, which does not leave its smell even after the pickle is completely empty, no matter how much it is washed. So what is the method of purification of the mind? If we want to make it smell free due to heartburn, then we should purify it easily by keeping more fragrant liquid like chanting in it. bypassing the smell of sensuality. Will give Hence the usefulness of chanting is self-evident at all times.
Yes [Rajkumar Shamlalji Bagadia]