नदीने सिखाया
राजा कुमारसेन क्रूर और अभिमानी था। उसका मन्त्री सुमन्तसेन चतुर, व्यावहारिक और हाजिरजवाब था। एक दिन राजा कुमारसेनने मन्त्रीको बुलाकर कहा- ‘रथ तैयार करवाओ। आज हम समुद्रकी सैर करेंगे।’ मन्त्री सुमन्तसेनने रथ तैयार करवा दिया। राजा और मन्त्री निकल पड़े। खेत, जंगल पार करते हुए रथ समुद्रके तटपर पहुँचा। राजा रथसे उतरकर घण्टों समुद्रकी तरंगोंका आनन्द लेता रहा। अब राजाको प्यास लग आयी। उसने सोचा कि समुद्रमें तो बहुत पानी है, पलभरमें प्यास मिट जायगी। उसने अंजलि भरकर पानी मुँहमें भर लिया, पर अगले ही पल थू-थू करते हुए उसे थूक दिया। पानी खारा था। राजाने कहा-‘सुमन्त, महल चलो। बड़ी प्यास लगी है।’
दोनों रथपर सवार हो गये और राजमहलकी ओर चल पड़े। रास्तेके जंगलमें एक छोटी-सी नदी बह रही थी। नदीका जल निर्मल था। पानी देखकर राजाने रथ रुकवाया और नीचे उतरकर जी भरकर पानी पीया। बोला- ‘वाह! कितना मीठा पानी है। नदीका जो प्यास समुद्र न मिटा सका, उसे छोटी सी नदीने मिटा दिया। तभी सुमन्तसेन बोला * महाराज। विशालता सिर्फ देखनेकी हो होती है। नदी समुद्रसे छोटी है, किंतु उसका पानी मीठा होता है। नदी प्यासेको प्यास बुझाती है, दूसरोंको पानी बाँटती है। इसी कारण छोटी होकर भी नदी बड़ी है जबकि समुद्र सारा पानी खुद ही रखता है। इसलिये उसका पानी खारा है।’
सुमन्तसेनकी बात सुनकर कुमारसेन उदास हो गया। मन्त्रीने पूछा- ‘महाराज! आप उदास क्यों हो गये ?’ राजाने कहा- ‘तुमने बहुत गहरी बात कह दी। सचमुच मैं समुद्रकी तरह ही हूँ, जिससे प्रजाको कभी कोई सुख नहीं मिला। अपने अभिमानके कारण मैंने कुछ नहीं पहचाना। मैं भूल गया था कि नदीसे समुद्र बनता है। उसे बनानेवाली नदी ही है।’ उसी दिनसे कुमारसेन राज्य और प्रजाकी भलाईके लिये योजनाएँ बनाने लगा। उसका स्वभाव भी दयालु गया। हो
दया और दानसे छोटा भी बड़ा बन जाता है।
the river taught
King Kumarsen was cruel and arrogant. His minister Sumantasen was clever, practical and witty. One day King Kumarsen called the minister and said- ‘Get the chariot ready. Today we will take a trip to the sea.’ Minister Sumantasen got the chariot ready. The king and the ministers left. After crossing the fields and forests, the chariot reached the sea shore. The king got down from the chariot and kept enjoying the waves of the sea for hours. Now the king felt thirsty. He thought that there is a lot of water in the sea, the thirst will be quenched in a moment. He filled Anjali’s mouth with water, but spit it out the very next moment while spitting. The water was salty. The king said-‘ Sumant, come to the palace. Very thirsty.
Both of them got on the chariot and started towards the palace. A small river was flowing in the forest on the way. The water of the river was pure. Seeing the water, the king stopped the chariot and got down and drank water to his heart’s content. Said – ‘ Wow! Such sweet water. The small river quenched the thirst of the river which the ocean could not quench. That’s why Sumantasen said * Maharaj. Vastness is only to be seen. The river is smaller than the sea, but its water is sweeter. The river quenches the thirst of the thirsty, distributes water to others. That’s why the river is big even though it is small whereas the sea keeps all the water by itself. That’s why its water is salty.
Kumarsen became sad after listening to Sumantasen. The minister asked – ‘ Maharaj! Why are you sad?’ The king said – ‘ You have said a very deep thing. Truly I am like the ocean, from which the people never got any happiness. I didn’t recognize anything because of my pride. I had forgotten that the ocean is formed from the river. It is the river that makes it. From that day Kumarsen started making plans for the welfare of the state and the people. His nature also became kind. Are
Even small becomes big with kindness and charity.