बुद्धिर्यस्य बलं तस्य
किसी वनमें चन्द्रसरोवर नामका एक तालाब था। उसके किनारे खरगोशोंका एक समूह रहा करता था। खरगोश किनारेपर उगी कोमल हरी घास खाते और आनन्दपूर्वक क्रीडा किया करते थे। उनमें विजय नामका खरगोश बहुत बुद्धिमान्, वाक्पटु तथा नीतिनिपुण था। इसलिये सारे खरगोश उसे अपना राजा मानने लगे।
एक दिन हाथियोंका एक समूह उस सरोवरके किनारे आया और सरोवरमें घुसकर जलक्रीड़ा करने लगा। उनकी जलक्रीडासे सरोवरका जल मलिन हो गया और उसमें खिले कमल भी नष्ट हो गये। जलक्रीडाके पश्चात् हाथी तालाबसे बाहर निकलकर इधर-उधर घूमने लगे। उन मतवाले हाथियोंकि पैरंकि नीचे आकर अनेक खरगोश काल-कवलित हो गये। यह देख बचे हुए खरगोश भाग करके अपने राजा विजयके पास गये और उससे हाथियोंकि उपद्रवकी बात बतायी।.
विजयने विचार किया कि इन मदमस्त हाथियोंको शारीरिक बलसे पराजित तो किया नहीं जा सकता, अतः इन्हें यहाँसे भगानेके लिये कूटनीति और बुद्धि-बलका आश्रय लेना होगा। ऐसा सोचकर वह हाथियोंके राजा चतुर्दन्तके पास गया और बोला- गजेन्द्र एक स्थानपर साथ-साथ रहनेसे मैत्री भाव उत्पन्न हो जाता है और एक मित्रको दूसरे मित्रकी हित-कामना करनी चाहिये। यह चन्द्रसरोवर भगवान् चन्द्रदेवका निवास स्थान है और हम लोग उनकी प्रजा हैं। आपके साथियोंने भगवान् चन्द्रदेवके इस निवास-स्थानको मलिन कर दिया है और उनके प्रजा-रूप खरगोशोंको मार डाला है। इसलिये चन्द्रदेव आपसे क्रुद्ध हो गये हैं; क्योंकि प्रजाके अपराधका दण्ड राजाको ही भोगना पड़ता है।
यह सुनकर चतुर्दन्त भयसे व्याकुल हो गया। उसने विजयसे विनयपूर्वक कहा, ‘तुम ठीक ही कहते हो।चन्द्रदेव मेरे आदरणीय हैं, मुझे उनके दर्शन करा दो। मैं उनसे क्षमा माँगकर यहाँसे चला जाऊँगा।’ बुद्धिमान् विजयने रात्रिमें सरोवरके जलमें चन्द्र-प्रतिबिम्ब दिखाते हुए चतुर्दन्तसे कहा—‘देखो! क्रोधके कारण चन्द्रदेवकी भृकुटि टेढ़ी हो गयी है, अतः शीघ्र क्षमा-याचनाकर इस वनसे चले जाओ।’
चतुर्दन्तने घुटने टेककर चन्द्रदेवको प्रणाम किया और अपने अपराधके लिये क्षमा माँगी। तदनन्तर वह अपने सभी साथियोंको लेकर उस वनसे दूर चला गया।
इस प्रकार विजयकी बुद्धिमानीसे खरगोशॉपर आया हुआ संकट दूर हो गया। हाथियोंने पुनः कभी उस वनकी ओर दृष्टि भी नहीं डाली। अन्य खरगोशों तथा वनके दूसरे छोटे प्राणियोंने उस खरगोशकी बुद्धिकी प्रशंसा की। इसलिये बुद्धिबलको अन्य बलोंकी अपेक्षा श्रेष्ठ माना गया है।
[ पंचतन्त्र, काकोलूकीयम्, कथा 1]
buddhiryasya balam tasya
There was a pond named Chandrasarovar in some forest. There used to be a group of rabbits on its side. The rabbits used to eat the soft green grass growing on the bank and play happily. Among them the rabbit named Vijay was very intelligent, eloquent and ethical. That’s why all the rabbits started considering him as their king.
One day a group of elephants came to the bank of that lake and started doing water sports by entering the lake. Due to their water sports, the water of the lake became dirty and the lotuses blooming in it were also destroyed. After the water sports, the elephants came out of the pond and started roaming here and there. Many rabbits fell down on the feet of those intoxicated elephants. Seeing this, the remaining rabbits ran away and went to their king Vijay and told him about the nuisance of elephants.
Vijay thought that these intoxicated elephants cannot be defeated by physical force, so to drive them away from here, they will have to resort to diplomacy and intellectual power. Thinking like this, he went to Chaturdanta, the king of elephants and said – Gajendra, living together at one place creates a feeling of friendship and one friend should wish for the welfare of another friend. This Chandrasarovar is the abode of Lord Chandradev and we are his subjects. Your companions have defiled this abode of Lord Chandradev and killed his subjects, the rabbits. That’s why Chandradev has become angry with you; Because only the king has to bear the punishment for the crimes of the subjects.
Hearing this, Chaturdant was distraught with fear. He politely said to Vijay, ‘You are right. Chandradev is my respecter, let me see him. I will leave here after apologizing to them.’ Wise Vijay, showing the moon-reflection in the water of the lake at night, said to Chaturdanta – ‘Look! Due to anger, Chandradev’s brow has become crooked, so quickly apologize and leave this forest.’
Chaturdanta knelt down and bowed down to Chandradev and apologized for his crime. After that he went away from that forest with all his companions.
In this way, due to the wisdom of Vijay, the crisis that had come on the rabbit was removed. The elephants never even looked at that forest again. Other rabbits and other small creatures of the forest praised the rabbit’s intelligence. That’s why the power of intellect has been considered superior to other forces.
[Panchatantra, Kakolukiyam, Story 1]