लंदनके साउथवार्कवाली गलियोंमें गरीबोंकी बस्ती थी। उसमें मजदूरों और श्रमिकोंके लिये छोटे-छोटे मकान बने हुए थे। दिनभर कारखानोंमें मजदूरी कर वे रातको इन्हीं गंदी गलियोंमें विश्राम करते थे।
एक दिन यह निश्चय किया गया कि छुट्टी मनाने तथा मनबहलाव के लिये छोटे-छोटे बच्चोंको देहाती क्षेत्रमें भेजा जाय। इस निश्चयके अनुसार बच्चोंको गाड़ी में बैठा दिया गया। बच्चोंके गरीब माता-पिता गाड़ी छूटनेके समय उन्हें देखने आये थे। प्लेटफार्मपर बड़ी भीड़ थी; गरीबोंकी भीड़ ऐसी लगती थी मानो दरिद्रताने चलता-फिरता रूप धारण कर लिया हो।
बच्चोंके लिये खाने-पीनेके सामान गाड़ीमें रखे जा रहे थे। विस्तरे बिछाये जा रहे थे। माँ-बाप अपने-अपने बच्चोंको जलपान आदिके लिये पैसे दे रहे थे। सब-के सब प्रसन्न थे। अचानक उन महिलाओंमेंसे किसी एककी दृष्टि छोटी-सी कोमल बच्चीपर पड़ी जो उदास थी, जिसके चेहरेपर दरिद्रताकी रेखाएँ अङ्कित थीं और आँखोंमें दुःखके काले-काले बादल थे। बच्ची देखने में बड़ी प्यारी लगती थी। वह महिला उस बच्ची के पास गयी जो गाड़ीमें एक किनारेपर दुबकी-सी बैठी हुई थी। ‘बेटी! तुम्हारे माँ-बाप कहाँ हैं? वे यहाँतक पहुँचाने क्यों न आ सके ? तुम्हारे बहन-भाई आदि कहाँ हैं?’ महिलाने अपने हृदयकी वत्सलता-ममताउड़ेल दी। बच्चीकी आँखोंमें अश्रुकण थे, वह कुछ न बोल सकी। उसके पास जलपान आदिके लिये पैसे भी नहीं थे। पता लगानेपर महिलाको यह बात विदित हो सकी कि उसका पिता मर चुका है। परिवारमें केवल माँ है जो मजदूरी करके पेट पालती है; वह इसलिये उसे पहुँचाने नहीं आ सकी कि भय था कहीं मजदूरीके पैसे न कट जायें। महिलाका हृदय भर आया। वह करुणाका वेग समेटकर लोगोंके देखते देखते किसी ओर चली गयी।
थोड़ी देरमें गाड़ीने सीटी दी। वह खुलनेवाली ही थी कि महिला प्लेटफार्मपर आ पहुँची।
‘जल्दी कीजिये।’ गार्डने सावधान किया। महिलाने बच्चीको मिठाईकी एक टिकिया दी और | उसके हाथमें कुछ पैसे रखकर स्नेहभरी दृष्टिसे देखा । बच्चीका कुम्हलाया चेहरा खिल उठा; उसके लाल लाल ओंठोंकी लालिमा बढ़ गयी।
कौन जानता था कि छोटी बच्चीकी मुसकराहटके लिये उस गरीब महिलाने-जिसके शरीरका अलंकार काली ओढ़नी और शालके सिवा और कुछ भी नहीं था, अपनी शाल बेच दी होगी।
गाड़ी चल पड़ी और वत्सलताकी सजीव मूर्ति सी प्लेटफार्मपर खड़ी होकर खिड़कीसे झाँकती बच्चीको ही देखती रहीं। – रा0 श्री0
The streets of Southwark in London had slums. Small houses were built in it for laborers and workers. After working in the factories all day, they used to rest in these dirty streets at night.
One day it was decided that small children should be sent to the countryside for holiday and recreation. According to this determination, the children were made to sit in the car. The poor parents of the children came to see them at the time of departure of the train. There was a huge crowd on the platform; The crowd of the poor looked as if poverty had taken a walking form.
Food and drink items for the children were being kept in the car. The beds were being laid. Parents were giving money to their children for refreshments etc. Everyone was happy. Suddenly one of those women’s eyes fell on a small tender girl who was sad, whose face was marked with lines of poverty and there were dark clouds of sorrow in her eyes. The baby girl looked very cute. The woman went to the girl who was sitting crouched on one side of the car. ‘daughter! where are your parents? Why couldn’t they come to reach here? Where are your sisters and brothers etc.? The woman poured out her heart’s affection. There were tears in the eyes of the child, she could not say anything. He didn’t even have money for refreshments etc. On inquiry, the woman came to know that her father is dead. There is only mother in the family who earns her livelihood by working; She could not come to deliver him because there was a fear that the wages might be deducted. The woman’s heart was filled. She gathered the speed of compassion and went somewhere in front of the people.
After a while the car whistled. It was about to open when the woman reached the platform.
‘Make it fast.’ Garden cautioned. The woman gave a cake of sweets to the girl and Keeping some money in his hand, looked at him with loving eyes. The withered face of the girl blossomed; The redness of his red lips increased.
Who knew that for the sake of the little girl’s smile the poor woman – whose body was adorned with nothing but a black odhani and a shawl – would have sold her shawl.
The car started moving and Vatsalat stood on the platform like a living statue and kept looking at the little girl peeping through the window. – Ra0 Mr.0