महर्षि गौतमके आश्रम में कई शिष्य रहते थे। वे आश्रममें विद्याध्ययन करते हुए गुरुकी गृहकार्यमें मदद भी करते थे। इसी कारण हर विद्यार्थीको गुरुजीके आश्रमकी हर बात पता थी। एक दिन नरेन्द्र नामके एक विद्यार्थीने गुरुके घरसे कुछ खानेकी चीजें चुरा लीं। उसके एक साथीने उसे रँगे हाथों पकड़ लिया। बात धीरे-धीरे महर्षिके कानतक भी पहुँची, परंतु
उन्होंने इस घटनाको सुनी-अनसुनी कर दिया। इधर नरेन्द्रकी हिम्मत इससे और बढ़ गयी। अब वह जब भी मौका पाता कुछ-न-कुछ वस्तु चुरा लिया करता । एक दिन उसके एक अन्य साथीने फिर उसे चोरी करते हुए पकड़ लिया। सारे विद्यार्थियोंने इस बार बड़ा शोरगुल किया। वे तुरंत ही महर्षि गौतमके | पास उसकी शिकायत करने पहुँचे।
सारी बात सुनकर गौतम हँसे, बोले- ‘नरेन्द्रने ऐसा किया? ठीक है।’ विद्यार्थी समझे कि गुरुजी सोच-विचारकर कुछ दण्ड देंगे, परंतु गुरुजीने फिर भी उसको कुछ नहीं कहा तो सारे विद्यार्थियोंमें रोष फैल गया। गुरुजीके इस रवैयेपर सब चकित थे। दूसरे दिन सब नरेन्द्रको पकड़ करके गुरुजीके पास ले गये और बोले—’गुरुदेव ! आपकी यह बात हमारी जरा भी समझमें नहीं आती है। इस चोरको इसी समय आश्रमसे निकाल देना चाहिये।’
विद्यार्थी कह ही रहे थे तभी महर्षि गौतमने
बात काटकर कहा—तुम्हारा कहना ठीक हो सकता है कि चोरको आश्रममें नहीं रखना चाहिये, पर नरेन्द्र नहीं जायगा। वह यहींपर रहेगा। विद्यार्थियोंने यह सुनते ही हो-हल्ला मचाना शुरू कर दिया। गौतमजीने थोड़ी देर बाद उन्हें शान्त होनेको कहा तो वे एक साथ चिल्लाने लगे- ‘तो गुरुदेव ! आप अपने लाड़ले नरेन्द्रको ही रखिये अपने पास। हम सब आश्रम छोड़ देंगे आज ही।’
गौतमजीने सबको शान्त होनेको कहा और बोले— “तुम सब समझदार हो। क्या उचित है, क्या अनुचित है-इसकी परख तुम्हें है। यदि नरेन्द्र यह नहीं समझता है तो क्या हमें उसे सिखाना नहीं चाहिये ? यदि वह जानता तो ऐसा बार-बार करता ही क्यों ? फिर मैं भी उसे भगा दूँ, तो इसे क्या उचित है और क्या अनुचित है, आखिर कौन सिखायेगा ? मैं उसे यह सिखलाऊँगा ही। यह तो यहीं रहेगा, तुम लोग चाहो तो जा सकते हो।’ यह सुनकर नरेन्द्रकी आँखों में आँसू आ गये। उसने दौड़कर गुरुजीके पैर पकड़ लिये। बादमें सभी दोस्तोंसे क्षमा माँगकर वह भी अन्य विद्यार्थियोंकी तरह रहने लगा।
Many disciples used to live in Maharishi Gautam’s ashram. While studying in the ashram, he also used to help the teacher in his homework. That’s why every student knew everything about Guruji’s ashram. One day a student named Narendra stole some eatables from the Guru’s house. One of his companions caught him red-handed. The matter slowly reached Maharishi’s ear as well, but
He made this incident unheard of. Here Narendra’s courage increased further. Now whenever he got a chance he used to steal something or the other. One day another of his companions again caught him stealing. All the students made a big noise this time. They immediately Maharishi Gautam’s | Reached near to complain about him.
Gautam laughed after hearing the whole thing, said- ‘Narendra did this? Ok.’ The students thought that Guruji would give some punishment after careful thought, but Guruji still did not say anything to him, so anger spread among all the students. Everyone was amazed at this attitude of Guruji. The next day everyone caught Narendra and took him to Guruji and said – ‘Gurudev! We don’t understand your point at all. This thief should be thrown out of the ashram right now.’
The students were just saying, then Maharishi Gautam
After cutting the matter, you may be right to say that thieves should not be kept in the ashram, but Narendra will not go. He will be here. The students started making hue and cry as soon as they heard this. After a while Gautamji asked them to calm down, they started shouting together – ‘So Gurudev! You keep your dear Narendra only with you. We will all leave the ashram today itself.’
Gautamji asked everyone to calm down and said – “You are all intelligent. What is right, what is wrong – it is up to you. If Narendra does not understand this, should we not teach him? If he knew, he would have done this again and again. Why? Even if I drive him away, then who will teach him what is right and what is wrong? I will definitely teach him this. He will stay here, you can go if you want.’ Tears welled up in Narendra’s eyes on hearing this. He ran and held Guruji’s feet. Later, after apologizing to all his friends, he too started living like other students.