ईश्वर सब देखता है
इंग्लैण्डके एक महानगरमें शेक्सपियरका कोई नाटक चल रहा था। बहुत वर्षों पहले सज्जनोंके लिये नाटक देखना पाप समझा जाता था और पुरोहितोंके नाटक देखनेका तो सवाल ही नहीं था। एक पादरी नाटक देखनेका लोभ संवरण नहीं कर सका। उसने थियेटरके मैनेजरको लिखकर पूछा- ‘क्या आप पिछले
द्वारसे मेरे प्रवेशका इन्तजाम कर पायेंगे, ताकि मुझे कोईआते हुए देख न सके।’
मैनेजरका जवाब आया-खेद है, यहाँ कोई ऐसा दरवाजा नहीं है, जो ईश्वरको नजर न आता हो।’ सत्यके प्रवेशके लिये पीछेका कोई द्वार नहीं है। परमात्मा सब द्वारोंपर खड़ा है। [ श्रीबंकटलालजी आसोपा ]
god sees all
A Shakespeare play was going on in a metropolitan city of England. Many years ago it was considered a sin for gentlemen to watch plays and there was no question of priests watching plays. A priest could not resist the temptation to watch the play. He wrote to the manager of the theater and asked, ‘Are you
Will be able to arrange for my entry through the door, so that no one can see me coming.’
The manager’s answer came – I am sorry, there is no such door here, which is not visible to God. There is no back door for truth to enter. God is standing at all the doors. [Shribankatlalji Asopa]