अनीति
श्रुतायुधके पास शंकरजीके वरदानसे प्राप्त एक अमोघ गदा थी। उसके तपसे प्रसन्न होकर भगवान्ने यह उपहार उसे इस शर्तपर दिया था कि वह उसका अनीतिपूर्वक प्रयोग न करे, यदि करेगा तो लौटकर वह उसका ही विनाश कर देगी।
महाभारतयुद्धमें श्रुतायुधको अर्जुनसे लड़ना पड़ा। युद्ध प्रबल वेगसे होने लगा और दोनों ही अपना | रणकौशल दिखाने लगे।
सारथीका काम करते हुए कृष्णको श्रुतायुधकी अनीतिपर हँसी आ गयी। यह हँसी उसे तीरकी तरह चुभी और आवेशमें आकर उसने अपनी अमोघ गदा श्रीकृष्णपर फेंक चलायी। उसे यह भी ध्यान नहीं रहा कि उसके | साथ क्या शर्त जुड़ी हुई है।
गदा कृष्णतक न पहुँची और बीचसे ही वापस लौटकर श्रुतायुधपर गिर पड़ी। उसका शरीर क्षत विक्षत होकर भूमिपर गिर पड़ा।
धृतराष्ट्रको यह समाचार सुनाते हुए संजयने कहा- ‘राजन्! मनुष्यको समस्त शक्तियाँ श्रुतायुधकी गदाकी तरह सदुपयोगके लिये मिली हैं, जो उन्हें अनीतिपूर्वक प्रयोग करते हैं, वे उलटे अपने-आपसे ही आहत होकर इसी तरह विनाशको प्राप्त होते हैं।’ [श्री ओमप्रकाशजी छारिया ]
immorality
Shrutayudh had an infallible mace obtained from Shankarji’s boon. Pleased with his penance, God gave him this gift on the condition that he should not use it unethically, if he does, she will return and destroy him.
In the Mahabharata war, Shrutayudha had to fight with Arjuna. The war began to take place with great speed and both their own. They started showing their battle skills.
While working as a charioteer, Krishna laughed at Shrutayudha’s immorality. This laughter pierced him like an arrow and in a fit of rage he hurled his infallible mace at Shri Krishna. He didn’t even notice that his What is the condition attached with.
The mace did not reach Krishna and returned midway and fell on Shrutayudha. His body mutilated and fell on the ground.
Telling this news to Dhritarashtra, Sanjay said – ‘ Rajan! Man has got all the powers for good use like the mace of Shrutayudha, those who use them unethically, on the contrary, get hurt by themselves and get destroyed in the same way.’ [Shri Omprakashji Chharia]