विदेहनन्दिनी सीताके जीवनमें आनेवाले विरह-दुःखका बीज
एक दिन सीता सखियोंके साथ उद्यानमें खेल रही थीं। वहाँ उन्हें दो तोते बैठे दिखायी दिये, जो बड़े ही सुन्दर थे। वे दोनों पक्षी एक वृक्षकी डालपर बैठे-बैठे एक बड़ी मनोहर कथा कह रहे थे—’इस पृथ्वीपर श्रीराम नामसे प्रसिद्ध एक बड़े सुन्दर राजा होंगे। उनकी महारानीका नाम सीता होगा। श्रीरामचन्द्रजी बड़े बुद्धिमान् और बलवान होंगे तथा समस्त राजाओंको अपने अधीन करके सीताके साथ ग्यारह हजार वर्षोंतक राज्य करेंगे। धन्य हैं जानकी देवी और धन्य हैं श्रीराम, जो एक दूसरेको पाकर इस लोकमें आनन्दपूर्वक विहार करेंगे।’ तोतेके मुँहसे ऐसी बातें सुनकर सीताने सोचा, ‘ये दोनों पक्षी मेरे ही जीवनकी कथा कह रहे हैं। इन्हें पकड़कर सभी बातें पूछें। ऐसा विचारकरउन्होंने सखियोंसे कहा- ‘यह देखो, इस पर्वतके शिखरपर जो वृक्ष है, उसकी डालीपर दो पक्षी बैठे हुए हैं। ये दोनों बहुत सुन्दर है। तुम लोग चुपकेसे जाकर इनको पकड़ लाओ।’ सखियाँ उस पर्वतपर गयीं और दोनों पक्षियोंको पकड़कर लायीं। सीताने उन्हें हाथमें लेकर प्यार किया और आश्वासन देते हुए कहा-‘देखो, डरना नहीं; तुम दोनों बड़े सुन्दर हो। मैं यह जानना चाहती हूँ कि तुम कौन हो और कहाँसे आये हो? राम कौन हैं और सीता कौन हैं, तुम्हें उनकी जानकारी कैसे हुई ?’ सीताके इस प्रकार प्रेमपूर्वक पूछनेपर उन पक्षियोंने कहा- ‘देवि । वाल्मीकि नामसे प्रसिद्ध एक बहुत बड़े महर्षि हैं। हमलोग उन्हींके आश्रममें रहते हैं। महर्षिने एक बड़ा मधुर काव्य बनाया है। जिसका नाम है रामायण । उसकी कथा मनको बहुत प्रिय लगती है। महर्षि अपने शिष्योंको रामायण पढ़ाते हैं और सदा उसके पद्योंका चिन्तन करते रहते हैं। प्रतिदिन सुनते सुनते हमें भी उसकी बातें बहुत कुछ मालूम हो गयी हैं। हम तुम्हें रामका परिचय देते हैं, सुनो-अयोध्याके महाराज दशरथ महर्षि ऋष्यश्रृंगको बुलाकर उनसे पुत्रेष्टि यज्ञ करायेंगे। उस यज्ञके प्रभावसे भगवान् विष्णु उनके यहाँ चार शरीर धारण करके प्रकट होंगे। वे चारों भाई क्रमशः श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्नके नामसे प्रसिद्ध होंगे। देवांगनाएँ भी उनकी उत्तम लीलाओंका गान करेंगी। श्रीराम महर्षि विश्वामित्रके साथ मिथिला पधारेंगे और राजा जनकके यहाँ रखा हुआ शिवजीका धनुष तोड़कर लक्ष्मीस्वरूपा सीताके साथ विवाह करेंगे। उनके अन्य तीन भाइयोंका विवाह भी मिथिलामें ही होगा। सुन्दरी! ये तथा और भी बहुत-सी बातें हमने महर्षि वाल्मीकिके आश्रम में सुनी हैं। तुमने जो कुछ पूछा था, हमने वह बता दिया। अब हमें छोड़ दो। हम दूसरे वनमें जाना चाहते हैं।’
पक्षियोंकी बातें सीताके कानोंमें अमृतकी वर्षा कर रही थीं। उन्होंने कुछ और सुननेके लिये पूछा ‘श्रीरामचन्द्रजी कैसे हैं? उनके गुणोंका वर्णन करो। तुम्हारी बातें मुझे बड़ी प्रिय लगती हैं।’ सीताके प्रश्न सुनकर तोतेकी स्त्रीने समझ लिया कि ये ही जनकनन्दिनी हैं; फिर वह उनके चरणोंपर गिर पड़ी और बोली ‘श्रीरामचन्द्रजीका मुख कमलके समान सुन्दर है। नेत्र बड़े-बड़े तथा खिले हुए पंकजकी शोभा धारण करते हैं। नासिका ऊँची, पतली और मनोहारिणी है। दोनों भौंहें सुन्दर ढंगसे परस्पर मिली हुई हैं। भुजाएँ घुटनोंतक लम्बी और मनको लुभानेवाली हैं। गला शंखके समान हैं, विशाल वक्षःस्थलमें श्रीवत्सका चिह्न सुशोभित होता है। उनका कटिभाग, जंघा तथा घुटने अत्यन्त मनोहर हैं। चरणारविन्दकी शोभा वर्णनसे परे है। श्रीरामचन्द्रजीका रूप कितना मनोहर है, इसका वर्णन मैं क्या कर सकती हूँ! जिनके सौ मुख हैं, वे भी उनके गुणोंका बखान नहीं कर सकते। जिनकी झाँकी देखकर लावण्यमयी लक्ष्मी भी मोहित हो गर्यो, उनका दर्शन करके दूसरी कौन स्त्री है, जो मोहित न हो? मैं श्रीरामका कहाँतक वर्णन करूँ। वे सब प्रकारके ऐश्वर्यमय गुणोंसे युक्त हैं। जनककिशोरी सीता धन्य हैं, जो रघुनाथजीके साथ हजारों वर्षोंतक प्रसन्नतापूर्वक रहेंगी; किंतु सुन्दरी! तुम कौन हो ? जो इतने प्रेमके साथ श्रीरामचन्द्रजीके गुणोंका वर्णन सुनती हो ।’
जानकी बोलीं- ‘तुम जिसे जनकनन्दिनी सीता कहती हो, वह मैं ही हूँ। श्रीरामने मेरे मनको अभीसे लुभा लिया है। वे यहाँ आकर जब मुझे ग्रहण करेंगे, तभी मैं तुम दोनोंको छोडूंगी। तुमने अपने वचनोंसे मेरे मनमें रामको पानेका लोभ उत्पन्न कर दिया है; अतः मेरे घरमें सुखसे रहो और मीठे-मीठे पदार्थोंका भोजन
करो।’ सीताकी यह बात सुनकर सुग्गी अनिष्टकी आशंकासे काँप उठी और विनती करती हुई बोली ‘साध्वी! हम वनके पक्षी हैं। पेड़ोंपर रहते हैं और स्वच्छन्द विचरा करते हैं। तुम्हारे घरमें हमें सुख नहीं मिलेगा। मैं गर्भिणी हूँ। अपने स्थानपर जाकर बच्चे पैदा करूँगी। उसके बाद फिर तुम्हारे पास आ जाऊँगी।’ तोतेने भी ये ही बातें कहकर प्रार्थना की; किंतु सीता उस सुग्गीको छोड़नेके लिये उद्यत न हुई। दोनों पक्षी बहुत रोये, गिड़गिड़ाये; किंतु उन्होंने बालकोचित हटके कारण उसे नहीं छोड़ा। वे वनवासी विहंगमोंकी हार्दिक वेदनाका अनुभव न कर सकीं। सुग्गीके लिये पतिका वियोग असह्य हो गया। वह बोली-‘अरी! मुझ दुखिनीको इस अवस्थामें तू पतिसे अलग कर रही है, अतः तुझे भी गर्भिणीकी दशामें पतिसे विलग होना पड़ेगा।’ यों कहकर ‘राम राम’ का उच्चारण करते हुए सुग्गीने अपने प्राण त्याग दिये। उसे लेनेके लिये एक सुन्दर विमान आया और वह दिव्य रूप धारण करके उस विमानके द्वारा भगवान्के धामको चली गयी। पत्नीके वियोगमें तोतेने भी देह त्याग दिया। वही इस वैरका बदला लेनेके लिये अयोध्यामें धोबीके रूपमें प्रकट हुआ। इस प्रकार विदेहनन्दिनी सीताके जीवनमें आनेवाले विरह-दुःखका बीज उसी समय पड़ गया।
विदेहनन्दिनी सीताके जीवनमें आनेवाले विरह-दुःखका बीज
एक दिन सीता सखियोंके साथ उद्यानमें खेल रही थीं। वहाँ उन्हें दो तोते बैठे दिखायी दिये, जो बड़े ही सुन्दर थे। वे दोनों पक्षी एक वृक्षकी डालपर बैठे-बैठे एक बड़ी मनोहर कथा कह रहे थे—’इस पृथ्वीपर श्रीराम नामसे प्रसिद्ध एक बड़े सुन्दर राजा होंगे। उनकी महारानीका नाम सीता होगा। श्रीरामचन्द्रजी बड़े बुद्धिमान् और बलवान होंगे तथा समस्त राजाओंको अपने अधीन करके सीताके साथ ग्यारह हजार वर्षोंतक राज्य करेंगे। धन्य हैं जानकी देवी और धन्य हैं श्रीराम, जो एक दूसरेको पाकर इस लोकमें आनन्दपूर्वक विहार करेंगे।’ तोतेके मुँहसे ऐसी बातें सुनकर सीताने सोचा, ‘ये दोनों पक्षी मेरे ही जीवनकी कथा कह रहे हैं। इन्हें पकड़कर सभी बातें पूछें। ऐसा विचारकरउन्होंने सखियोंसे कहा- ‘यह देखो, इस पर्वतके शिखरपर जो वृक्ष है, उसकी डालीपर दो पक्षी बैठे हुए हैं। ये दोनों बहुत सुन्दर है। तुम लोग चुपकेसे जाकर इनको पकड़ लाओ।’ सखियाँ उस पर्वतपर गयीं और दोनों पक्षियोंको पकड़कर लायीं। सीताने उन्हें हाथमें लेकर प्यार किया और आश्वासन देते हुए कहा-‘देखो, डरना नहीं; तुम दोनों बड़े सुन्दर हो। मैं यह जानना चाहती हूँ कि तुम कौन हो और कहाँसे आये हो? राम कौन हैं और सीता कौन हैं, तुम्हें उनकी जानकारी कैसे हुई ?’ सीताके इस प्रकार प्रेमपूर्वक पूछनेपर उन पक्षियोंने कहा- ‘देवि । वाल्मीकि नामसे प्रसिद्ध एक बहुत बड़े महर्षि हैं। हमलोग उन्हींके आश्रममें रहते हैं। महर्षिने एक बड़ा मधुर काव्य बनाया है। जिसका नाम है रामायण । उसकी कथा मनको बहुत प्रिय लगती है। महर्षि अपने शिष्योंको रामायण पढ़ाते हैं और सदा उसके पद्योंका चिन्तन करते रहते हैं। प्रतिदिन सुनते सुनते हमें भी उसकी बातें बहुत कुछ मालूम हो गयी हैं। हम तुम्हें रामका परिचय देते हैं, सुनो-अयोध्याके महाराज दशरथ महर्षि ऋष्यश्रृंगको बुलाकर उनसे पुत्रेष्टि यज्ञ करायेंगे। उस यज्ञके प्रभावसे भगवान् विष्णु उनके यहाँ चार शरीर धारण करके प्रकट होंगे। वे चारों भाई क्रमशः श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्नके नामसे प्रसिद्ध होंगे। देवांगनाएँ भी उनकी उत्तम लीलाओंका गान करेंगी। श्रीराम महर्षि विश्वामित्रके साथ मिथिला पधारेंगे और राजा जनकके यहाँ रखा हुआ शिवजीका धनुष तोड़कर लक्ष्मीस्वरूपा सीताके साथ विवाह करेंगे। उनके अन्य तीन भाइयोंका विवाह भी मिथिलामें ही होगा। सुन्दरी! ये तथा और भी बहुत-सी बातें हमने महर्षि वाल्मीकिके आश्रम में सुनी हैं। तुमने जो कुछ पूछा था, हमने वह बता दिया। अब हमें छोड़ दो। हम दूसरे वनमें जाना चाहते हैं।’
पक्षियोंकी बातें सीताके कानोंमें अमृतकी वर्षा कर रही थीं। उन्होंने कुछ और सुननेके लिये पूछा ‘श्रीरामचन्द्रजी कैसे हैं? उनके गुणोंका वर्णन करो। तुम्हारी बातें मुझे बड़ी प्रिय लगती हैं।’ सीताके प्रश्न सुनकर तोतेकी स्त्रीने समझ लिया कि ये ही जनकनन्दिनी हैं; फिर वह उनके चरणोंपर गिर पड़ी और बोली ‘श्रीरामचन्द्रजीका मुख कमलके समान सुन्दर है। नेत्र बड़े-बड़े तथा खिले हुए पंकजकी शोभा धारण करते हैं। नासिका ऊँची, पतली और मनोहारिणी है। दोनों भौंहें सुन्दर ढंगसे परस्पर मिली हुई हैं। भुजाएँ घुटनोंतक लम्बी और मनको लुभानेवाली हैं। गला शंखके समान हैं, विशाल वक्षःस्थलमें श्रीवत्सका चिह्न सुशोभित होता है। उनका कटिभाग, जंघा तथा घुटने अत्यन्त मनोहर हैं। चरणारविन्दकी शोभा वर्णनसे परे है। श्रीरामचन्द्रजीका रूप कितना मनोहर है, इसका वर्णन मैं क्या कर सकती हूँ! जिनके सौ मुख हैं, वे भी उनके गुणोंका बखान नहीं कर सकते। जिनकी झाँकी देखकर लावण्यमयी लक्ष्मी भी मोहित हो गर्यो, उनका दर्शन करके दूसरी कौन स्त्री है, जो मोहित न हो? मैं श्रीरामका कहाँतक वर्णन करूँ। वे सब प्रकारके ऐश्वर्यमय गुणोंसे युक्त हैं। जनककिशोरी सीता धन्य हैं, जो रघुनाथजीके साथ हजारों वर्षोंतक प्रसन्नतापूर्वक रहेंगी; किंतु सुन्दरी! तुम कौन हो ? जो इतने प्रेमके साथ श्रीरामचन्द्रजीके गुणोंका वर्णन सुनती हो ।’
जानकी बोलीं- ‘तुम जिसे जनकनन्दिनी सीता कहती हो, वह मैं ही हूँ। श्रीरामने मेरे मनको अभीसे लुभा लिया है। वे यहाँ आकर जब मुझे ग्रहण करेंगे, तभी मैं तुम दोनोंको छोडूंगी। तुमने अपने वचनोंसे मेरे मनमें रामको पानेका लोभ उत्पन्न कर दिया है; अतः मेरे घरमें सुखसे रहो और मीठे-मीठे पदार्थोंका भोजन
करो।’ सीताकी यह बात सुनकर सुग्गी अनिष्टकी आशंकासे काँप उठी और विनती करती हुई बोली ‘साध्वी! हम वनके पक्षी हैं। पेड़ोंपर रहते हैं और स्वच्छन्द विचरा करते हैं। तुम्हारे घरमें हमें सुख नहीं मिलेगा। मैं गर्भिणी हूँ। अपने स्थानपर जाकर बच्चे पैदा करूँगी। उसके बाद फिर तुम्हारे पास आ जाऊँगी।’ तोतेने भी ये ही बातें कहकर प्रार्थना की; किंतु सीता उस सुग्गीको छोड़नेके लिये उद्यत न हुई। दोनों पक्षी बहुत रोये, गिड़गिड़ाये; किंतु उन्होंने बालकोचित हटके कारण उसे नहीं छोड़ा। वे वनवासी विहंगमोंकी हार्दिक वेदनाका अनुभव न कर सकीं। सुग्गीके लिये पतिका वियोग असह्य हो गया। वह बोली-‘अरी! मुझ दुखिनीको इस अवस्थामें तू पतिसे अलग कर रही है, अतः तुझे भी गर्भिणीकी दशामें पतिसे विलग होना पड़ेगा।’ यों कहकर ‘राम राम’ का उच्चारण करते हुए सुग्गीने अपने प्राण त्याग दिये। उसे लेनेके लिये एक सुन्दर विमान आया और वह दिव्य रूप धारण करके उस विमानके द्वारा भगवान्के धामको चली गयी। पत्नीके वियोगमें तोतेने भी देह त्याग दिया। वही इस वैरका बदला लेनेके लिये अयोध्यामें धोबीके रूपमें प्रकट हुआ। इस प्रकार विदेहनन्दिनी सीताके जीवनमें आनेवाले विरह-दुःखका बीज उसी समय पड़ गया।